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बिहार का ये है अनोखा गांव, यहां पुलिस ने अबतक नहीं रखा है कदम, जानिए वजह

बिहार में एक अनोखा गांव है जो बांका जिले में है। इस गांव में अबतक पुलिस नहीं पहुची है वजह ये है कि यहां के लोग पंचायत में विश्वास करते हैं और पंच परमेश्वर में लोगों की आस्था है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 27 Sep 2019 11:23 AM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 02:37 PM (IST)
बिहार का ये है अनोखा गांव, यहां पुलिस ने अबतक नहीं रखा है कदम, जानिए वजह

बांका [राहुल कुमार]। कथा शिल्पी प्रेमंचद ने कालजयी पंच परमेश्वर कहानी में आपसी विवादों को सुलझाकर लोगों को न्याय दिलाने वाले पंचों को परमेश्वर की उपाधि से नवाजा है। पंचायती राज व्यवस्था में आज भी बांका जिले के नक्सल प्रभावित बेलहर प्रखंड के जमुआ गांव के पंच परमेश्वर की भूमिका अदा कर रहे हैं। वे आपसी विवादों की सुनवाई कर लोगों को दूध का दूध और पानी का पानी सदृश्य न्याय दिला रहे हैं।

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इस पंचायत की वजह से ग्रामीणों को एक ओर जहां न्यायालय के खर्च से मुक्ति मिल रही है, वहीं वहां पुलिस को भी जाने की जरूरत नहीं पड़ती हैं। 

जमुआ गांव की मारपीट से लेकर जमीन व पारिवारिक विवाद तक के सारे मामले वहां की पंचायत में ही सुलझाए जा रहे हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि गांव के लोगों को थाना व न्यायालय जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। गांव के लोगों के ऐसे समझदारी पूर्ण कदम के कारण पुलिस को भी किसी विवाद को सुलझाने के लिए वहां कदम रखने की जरूरत नहीं पड़ती है।

पंच परमेश्वर की भूमिका का आलम यह कि अबतक इस गांव से किसी व्यक्ति के खिलाफ एक भी हत्या, मारपीट, भूमि संबंधी विवाद आदि का मुकदमा न्यायालय में दायर नहीं हुआ है। इतना ही नहीं किसी के खिलाफ कोई प्राथमिकी भी दायर नहीं हुई है। 

पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही परंपरा 

गांव का अधिकांश परिवार खेती-बारी से जुड़े हैं। ऐसे में यहां की पंचायत में विशेषत: भूमि एवं पारिवारिक झगड़े से जुड़े मामले ही आते हैं। पंचों द्वारा दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद उनका न्यायपूर्ण समाधान कर दिया जाता है।

जानकारी के अनुसार पूर्व में यहां के रामधनी सिंह, जनार्दन सिंह, केदार सिंह, राघवेंद्र सिंह आदि सरपंचों की टीम सामूहिक तौर पर विवादित मामलों को निपटाती थी। वहीं आज नई पीढ़ी के शैलेंद्र, मिथिलेश, पंकज आदि युवाओं की टीम इस काम को आगे बढ़ा रही है। 

विद्यालय में बैठते हैं पंच परमेश्वर

युवा पंचों की टीम विवाद का निपटारा एक समिति के माध्यम से करती है। कोई मामला सामने आने पर पहले उस पक्ष से आवेदन लिया जाता है। फिर गांव के विद्यालय में बैठक कर आपसी विचार-विमर्श से उसे सुलझा लिया जाता है। दोनों पक्षों द्वारा पंच के फैसले को स्वीकार कर लिए जाने के बाद उसका लिखित कागजात तैयार किया जाता है। जरूरत पडऩे पर उसमें पंच और सरपंच को भी बुलाया जाता है। लेकिन, किसी मामले को ग्राम कचहरी से नहीं जोड़ा जाता है। इससे जुड़े शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि गांव में तरह तरह के विवाद होते रहते हैं।

कई बार पुलिस तक जाने की भी नौबत आ जाती है। लेकिन, पंचों की यह टोली सक्रिय होकर अभी तक हर मामले को थाना पहुंचने से बचाती रही है। यहां की पंचायत व्यवस्था पर गांव वालों को गर्व है। लोग भी आर्थिक खर्च और परेशानी से बच रहे हैं।  

केस स्टडी- एक

गांव में मनोज कुमार सिंह और दिनेश प्रसाद सिंह के बीच जमीन विवाद चल रहा था। उसके कारण दोनों के मकान निर्माण के कार्य रुक गए थे। मामला सीओ तक पहुंचा। कई दिनों तक अमीन ने लगातार जमीन की मापी की। उस दौरान दोनों पक्षों के बी मारपीट की नौबत भी आई। इसके बाद पंचायत में मामला लाया गया तो पंचों ने सक्रियता पूर्वक दोनों पक्षों को बिठाकर मामले को सुलझा दिया।

केस स्टडी- दो

मुगल ङ्क्षसह का दो पुत्रों प्रमोद और दिलीप के बीच विवाद चल रहा था। इसमें बेटे ने पिता के साथ मारपीट भी की थी। विवाद की वजह से बेटों ने पिता का खाना-पीना बंद कर दिया था। यह विवाद पंचायत में आने पर पंचों की टीम ने सक्रियता दिखाकर दोनों बेटों में आपस में मेल करा दिया। अब वे पिता के साथ ही रह रहे हैं। 

जमुई जिले के बेलहर थाने के जमुआ गांव में पंचायत से विवाद सुलझाना अच्छी बात है। सरकार की भी ऐसी ही सोच है। इससे पुलिस को भी सुविधा होती है। युवा पीढ़ी भी अगर पंचायत व्यवस्था को आगे बढ़ा रही है तो यह बड़ी बात है। 

अरविंद कुमार गुप्ता, एसपी 


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