आजादी के बाद पहली बार संपर्क पथ से जुड़ा यह नक्सल प्रभावित गांव , खुद ग्रामीणों ने बना डाली सड़क
औरंगाबाद जिला में ग्रामीणों ने श्रमदान और चंदा कर चार हजार फीट पक्की सड़क का निर्माण किया। सड़क के आभाव में चार महीने पूरी तरह से कट जाता था गांव। बीमार को खाट पर लेकर जाते थे अस्पताल।
औरंगाबाद, मनीष कुमार। चुनावी साल में भी जन-प्रतिनिधियों ने देव प्रखंड की अति नक्सल प्रभावित दुलारे पंचायत के केवलहा गांव के ग्रामीणों की नहीं सुनी। दौड़-भाग कर थक चुके गांव वालों ने खुद ही चंदे से राशि जुटाई और श्रमदान कर सड़क का निर्माण कर लिया। नाराज ग्रामीण अनसुनी करने वाले नेताओं को चुनाव में सबक सिखाएंगे।
डेढ़ हजार ग्रामीणों को फायदा
सड़क का निर्माण होने से केवलहा गांव आजादी के बाद पहली बार संपर्क पथ से जुड़ा है। ग्रामीणों के प्रयास से वनविशुनपुर गांव जाने वाली पक्की सड़क से केवलहा गांव तक चार हजार फीट तक पक्की सड़क का निर्माण पूरा हुआ है। इस सड़क से केवलहा के अलावा वनमंझौली और दुरा गांव के बाशिंदों के लिए आवागमन आसान हो गया है। इससे डेढ़ हजार से ज्यादा ग्रामीण लाभान्वित होंगे। पहले सड़क की जगह कच्चा रास्ता था, जो बारिश होने पर कीचड़ में तब्दील हो जाता था।
प्रशासन ने भी किया निराश
सड़क निर्माण के लिए ग्रामीणों ने जनप्रतिनिधियों के अलावा जिलाधिकारी से भी फरियाद लगाई। कई आवेदन दिए, कई बार आश्वासन मिला। इसके बाद भी सड़क का निर्माण नहीं हुआ। हताश गांव वालों ने तब ठान लिया कि सड़क का निर्माण श्रमदान और चंदे से करेंगे। स्थानीय पैक्स अध्यक्ष बिजेंद्र यादव ने भी साथ दिया। एक लाख रुपये दिए और गांव वालों ने चंदा कर और राशि जुटाई। दो लाख रुपये एकत्रित होने के बाद ग्रामीणों ने मोरंग डाल सड़क का निर्माण कार्य शुरू किया। दस दिनों तक सैकड़ों ग्रामीणों ने पसीना बहाया और अंतत: सड़क तैयार हो गई।
राशन संग्रह करने की थी मजबूरी
ग्रामीण रामकृपाल यादव एवं सुरेंद्र यादव ने बताया कि केवलहा गांव तक सड़क का निर्माण नहीं कराया गया। पास के घुरनडीह गांव में दो किलोमीटर लंबाई वाली सड़क का निर्माण कराया गया। श्रमदान और चंदे के पैसे से सड़क निर्माण में ग्रामीण राजेंद्र यादव, रामाशीष यादव, देवनंदन यादव, उपेंद्र यादव, शिव यादव समेत दर्जनों ग्रामीणों ने सहयोग किया। यह सड़क जब नहीं बनी थी तो हम लोग बरसात के दिनों के लिए चार माह का राशन संग्रह कर लेते थे। गांव में अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसे अस्पताल ले जाने के लिए खाट के अलावा दूसरा कोई साधन नहीं था। एंबुलेंस गांव में नहीं आ पाती थी।