दिन आ गए बिहार की लंबी छलांग के
बिहार में राजनीति ने एक बार फिर करवट बदली है। एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और एनडीए के गठबंधन की सरकार बनी है। बिहार एक बार फिर नई राह पर चल पड़ा है जो विकास की राह होगी
पटना [एसए शाद]। पिछड़े राज्यों की श्रेणी से बाहर निकलने को प्रयासरत बिहार के लिए आखिरकार वह मौका आ ही गया जब विकास के मोर्चे पर उसे केंद्र सरकार के मजबूत हाथों का सहारा मिलेगा। 23 वर्षों बाद ऐसी स्थिति आई है कि केंद्र एवं राज्य में अब एक जैसी ही सरकार है।
इस राजनीतिक स्थिति ने बिहार के लोगों की आर्थिक मोर्चे पर भी अपेक्षाएं बहुत बढ़ा दी है। वर्ष 2004 में केंद्र में जब यूपीए सरकार सत्ता में आई तब बिहार में राजद की सरकार थी। राजद उस समय यूपीए का हिस्सा था। यह स्थिति ज्यादा दिनों तक नहीं रही।
अगले ही वर्ष नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में राजग सरकार का गठन हुआ। तेज विकास दर के कारण जब बिहार को अर्थशास्त्रियों ने करिश्माई राज्य की उपाधि से अलंकृत किया, तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह कहा था-'विभिन्न मानकों पर बिहार को राष्ट्रीय औसत तक आने के लिए एक लंबी छलांग की जरूरत है। यह तभी संभव है जब बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा।
केंद्र सरकार से उनकी यह मांग लगातार जारी रही और 2014 में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग की सरकार आई तब उस समय नीतीश कुमार राजग का साथ छोड़ चुके थे। अब जो ताजा राजनीतिक परिस्थिति बनी है, विशेष दर्जा से लेकर प्रधानमंत्री का विशेष पैकेज, मेट्रो रेल, नया एम्स, निजी निवेश और सड़क एवं पुल पुलिया तक को अचानक याद किया जाने लगा है।
भले ही विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने की प्रक्रिया के तकनीकी पक्ष को ध्यान में रख तत्काल इस मांग के पूरा किए जाने को लेकर चर्चा कम होगी, लेकिन प्रधानमंत्री का 1.25 लाख करोड़ का विशेष पैकेज फोकस में रहेगा। राज्य सरकार के मुताबिक, पैकेज की घोषणा को तीन साल हो चुके हैं लेकिन अबतक मात्र 11,000 करोड़ की राशि ही मिल पाई है।
सूत्रों ने बताया कि पैकेज की अधिकांश राशि पुलों एवं एनएच निर्माण के लिए मिलनी है। बिहार में राजग सरकार के गठन होने के बाद इस पैकेज की राशि तत्काल मिलने की अब संभावना बढ़ गई है। यह भी उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार अब मेट्रो के प्रोजेक्ट को भी बिना समय नष्ट किए राशि प्रदान कर देगी।
मुजफ्फरपुर में एम्स और भागलपुर में केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की दिशा में भी तेजी आने की उम्मीद की जा रही है।
केंद्र सरकार ने पिछले दिनों अपने एक फैसले में सीमा पर सड़क बनाने की योजना में राशि देने से हाथ खींच लिए थे। इससे बिहार में महत्वपूर्ण सड़कों का निर्माण कार्य प्रभावित हुआ है। संभावना है कि केंद्र सरकार बदली परिस्थिति में अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करेगी।
वहीं, पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष(बीआरजीएफ) के 12,000 करोड़ में से बिहार को अबतक करीब 5500 करोड़ की राशि नहीं मिल पाई है। बिहार सरकार उम्मीद करेगी कि केंद्र सरकार अब यह राशि उसे जल्द ही दे दे।
बिहार के लंबी छलांग लगाने के लिए आवश्यक यह भी है कि यहां अधिक से अधिक निजी निवेश हो। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा हमेशा रही है कि राजद के सरकार में शामिल रहने के कारण निजी निवेशक बिहार का रुख करने से परहेज कर रहे थे।
अब जबकि नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई है, निजी निवेशकों के बिहार आने की संभावना बढ़ गई है। यह चर्चा भी सबकी जुबान पर है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीतिक एवं आर्थिक फ्रंट पर समान 'वेवलेंथ' रखते हैं।
नीतीश कुमार की उनसे नजदीकी बिहार के लिए एक प्रकार से बोनस साबित होगी। नतीजतन, विकास के विभिन्न मानकों पर बिहार अन्य विकसित राज्यों के साथ दौड़ लगा सकेगा।