Move to Jagran APP

बिहार का एक गांव, जो हर साल पैदा कर रहा IITians

बिहार के गया ज़िले के बुनकरों की बस्ती पटवा टोली की खास बात यह है कि वहां के बच्चों में इंजीनियर बनने का खास क्रेज है। 1992 से लगातार यहां के बच्चे आइआइटियंस बन रहे हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 13 Jun 2016 01:28 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jun 2016 08:04 AM (IST)
बिहार का एक गांव, जो हर साल पैदा कर रहा IITians

पटना [काजल]। बिहार के गया जिले में एक छोटा-सा गांव है मानपुर। इसकी एक बस्ती है पटवा टोली। बुनकरों की इस बस्ती की एक खासियत इसे देश में खास बनाती है। अभावों में जी रही इस बस्ती की नई पौध सपने देखती है तथा उन्हें पूरा करने का हुनर भी जानती है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि यहां हर साल आइआइटियंस पैदा हो रहे हैं। वर्ष1992 से शुरू हुआ यह सिलसिला आज तक जारी है।

loksabha election banner

यहां से इस साल भी 11 बच्चों ने आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में अच्छी रैंकिंग पाई है। पटवा टोली के बच्चों ने इस साल भी अपना रिकॉर्ड कायम रखा है। इससे इलाके में खुशी का माहौल है।

पढ़ेंः JEE IIT: मोबाइल पर फिजिक्स के सवाल हल कराते हैं आइजी अंकल

पिछले साल भी यहां से 17 छात्र आइआइटी के लिए चुने गए थे। बीते छह वर्षों से हर साल यहां से करीब 10 छात्र आइआइटी के लिए चुने जा रहे हैं। दो दशक से अधिक से यहां के छात्र लगातार भारत के अन्य नामी इंजीनियरिंग संस्थानों में भी दाखिला पा रहे हैं।

इलाके के निवासी व श्रीदुर्गाजी पटवाय जातीय सुधार समिति के सभापति गोपाल पटवा बताते हैं, ‘‘यह सिलसिला 1992 में शुरु हुआ था। अब तक यहां के कम से कम 150 छात्र आईआईटी के लिए चुने गए हैं।’’

पढ़ेंः JEE ADVANCE 2016 : बिहार के टॉपर ईशान ने कहा-सफलता का शॉर्टकट नहीं होता

पावरलूम की ठक-ठक के बीच निकलते इंजीनियर

पटवा टोली की तंग गलियों से गुजरते हुए पावरलूम के ठक-ठक का शोर हमेशा आपके कानों से टकराता रहता है। मानपुर के पटवा टोली में करीब डेढ़ हजार बुनकर परिवार बमुश्किल से आधा किलोमीटर के दायरे में रहते हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक 90 के दशक के आस-पास तक गांव का मुख्य पेशा बुनकरी ही बना रहा। लेकिन, इसी दौरान आई मंदी के बाद बुनकर परिवार अपने बच्चों को पढ़ाने पर भी ध्यान देने लगे। इसके बाद से अभाव में रहने वाले यहां के बच्चे इंजीनियर बन देश में पटवा टोली का नाम रोशन कर रहे हैं। राजा मान सिंह ने बसाया था गांव स्थानीय लोगों के मुताबिक मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह ने यह मोहल्ला बसाया गया था। लोगों का कहना है कि मान सिंह जब गया से जयपुर वापस जाने लगे तो कुछ बुनकर यहीं रह गए जिन्होंने मानसिंह गांव बसाया और पटवा टोली की स्थापना की। पटवा टोली के सबसे पहले डॉक्टर ने कहा पटवा टोली से पहले डॉक्टर बनने वाले सीताराम प्रसाद बताते हैं, ‘‘तब मिल के कपड़ों की मांग बढ़ने और बिजली संकट के कारण यहां मंदी छाई थी। ऐसे में लोगों का झुकाव पढ़ाई की ओर बढ़ा और यहां के लोग भी अपनेे बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान देने लगे। एेसे हुई शुरूआत पेशे से शिक्षक कृष्णा प्रसाद बताते हैं, ‘‘1985 से ही टोली में स्थित सामुदायिक भवन में श्रीदुर्गा पुस्तकालय की स्थापना कर बच्चों को मदद और उनका मार्गदर्शन किया जाने लगा था।1992 में पटवा टोली के जितेंद्र प्रसाद पहले छात्र थे, जो आइआइटी पहुंचने में सफल रहे। वे नौकरी करने अमेरिका गए।’’ कृष्णा प्रसाद के अनुसार जितेंद्र की सफलता ने यहां के छात्रों को प्रेरित किया। इसके साथ ही पटवा टोली के बच्चों के सुनहरे सफर की शुरुआत हुई। खुले स्टडी सेंटर्स जितेंद्र की सफलता से पटवा टोली में जो माहौल बना, उसे बनाए रखने और आगे बढ़ाने के लिए पटवा समाज आगे आया। यहां से आइआइटीयंस की फौज खड़ी करने में मगध विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर रहे अनंत कुमार का भी अहम योगदान रहा है। ‘नवप्रयास’ की कोशिश

पटवा टोली की खासियत यह है कि यहां के सफल छात्र परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों की हर तरह से मदद करते हैं, उनका हौसला बढ़ाते हैं। साल 2000 से अमेरिका में बसे जितेंद्र प्रसाद की पहल पर बने संस्थान 'नवप्रयास' के बैनर तले छात्रों का मार्गदर्शन किया जा रहा है। नवप्रयास में मार्गदर्शन करने वाले आकाश कुमार ने बताया, ‘‘हम छात्रों को ग्रुप स्टडी में मदद करते हैं, पढ़ाते हैं। 10वीं के बाद अचानक 11वीं में पढ़ाई का बोझ बहुत बढ़ जाता है। ऐसे में हम हर साल एक वर्कशॉप कर उन्हें बताते हैं कि इस दवाब में कैसे योजनाबद्ध तरीकें से पढ़ें।’’

बच्चों की सहायता के लिए चल रहे पांच स्टडी सेंटर

अभी पटवा टोली में पांच स्टडी सेंटर चल रहे हैं। यहां के बच्चों के सफलता के पीछे उनकी काबिलियत और मेहनत के साथ-साथ ऐसे सेंटर्स का भी अहम योगदान है। यहां पढने वाले छात्रों का कहना है, ‘‘यहां पढ़ाई करते हुए एक रुचि पैदा होती है। एक प्रतियोगी माहौल मिलता है। इससे पढ़ाई में निखार आता है।’’

एक अन्य छात्र ने बताया, ‘‘मंहगे कोचिंग संस्थानों की जरूरत तो महसूस होती थी, लेकिन वहां पढ़ना हम जैसे अभाव में रहने वाले छात्रों के लिए मुमकिन नहीं होता। ऐसे में अगर ये सेंटर्स नहीं होते तो हम कभी सफल नहीं हो पाते।’’

आज पटवा टोली के सफल छात्र माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकल, सैमसंग, हिंदुस्तान एयरनॉटोकिल लिमिटेड जैसी प्रमुख देशी-विदेशी कंपनियों में काम कर रहे हैं।

अब नजरें सिविल सेवा पर भी

आइआइटी इंजीनियर बनने के बाद अब पटवा टोली के छात्र यूपीएससी की सिवलि सेवा परीक्षा में परचम लहराने की तमन्ना रखते हैं। पिछले साल यहां के तीन प्रतियोगी सिविल सेवा की परीक्षा के साक्षात्कार में शामिल हुए थे। उनमें एक पीतांबर कुमार को 754वीं रैंक मिली थी। ऐसे में अब यहां के लोगों की ख्वाहिश है कि आने वाले सालों में पटवा टोली ‘आइआइटी विलेज’ के साथ-साथ ‘आइएएस विलेज’ के रूप में भी जाना जाए। इस साल पटवा टोली के आइआइटी में सफल छात्र

- सुमित कुमार (जेनरल रैंक 6771, ओबीसी रैंक 1251)

- अमन कुमार (जेनरल रैंक 21544, ओबीसी रैंक 4964)

- ईशू कुमार (जेनरल रैंक 9100)

- सत्यम कुमार (जेनरल रैंक 3189, ओबीसी रैंक 527)

- अर्पित राज (जेनरल रैंक 1410, ओबीसी रैंक 2915)

- केदार नाथ (जेनरल रैंक 17715, ओबीसी रैंक 3865)

- कन्हैया लाल (जेनरल रैंक 18877, ओबीसी रैंक 4196)

- विशाल कुमार (जेनरल रैंक 8252, ओबीसी रैंक 1553)

- रोहित कुमार (ओबीसी रैंक 7234)

- राहुल कुमार (ओबीसी रैंक 7500)

- शनि कुमार (जेनरल रैंक 23122, ओबीसी रैंक 5441)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.