धूर्त समाज में ठगा जाता है सीधा व्यक्ति
मौजूदा वक्त में समाज का रूप काफी बदल गया है
पटना। मौजूदा वक्त में समाज का रूप काफी बदल गया है। धूर्त समाज में एक सीधे व्यक्ति का जीना मुश्किल हो गया है। सीधे व्यक्ति को हमेशा अपने ठगे जाने का डर लगा रहता है और आये दिन ऐसा होते भी रहता है। बुधवार की शाम कालिदास रंगालय के मंच पर कुछ ऐसी ही तस्वीर देखने को मिली। मौका था परिवेश पूर्ण जागरण संस्थान की ओर से रवींद्र नाथ टैगोर लिखित नाटक 'बैकुंठ का पौधा' के मंचन का।
इस नाटक में दिखाने की कोशिश की गई है कि किस तरह से एक चालाक इंसान सीधे-साधे इंसान को अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसा लेता है और जब वह इंसान उसकी बातों में आ जाता है तो उसे ठग लिया जाता है। 'बैकुंठ का पौधा' में बैकुंठ एक वृद्ध बाबू है। उन्हें अलग-अलग प्राचीन विषयों पर लिखना बहुत पसंद है। एक बार उनके घर में केदार नाम का एक व्यक्ति अपनी साली से बैकुंठ बाबू के छोटे भाई अविनाश का ब्याह कराने की इच्छा से आता है, और फिर उनके घर पर कब्जा कर लेता है। इस नाटक में हास्य-व्यंग्य के माध्यम से एक चालाक और सीधे व्यक्ति के बीच की खींचातानी को बेहद ही शालीनता के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है। नाटक लोगों के मनोरंजन के साथ समाज की सच्चाई से रूबरू भी कराता है। नाटक का निर्देशन अनिमेष कुमार सिंह ने किया है। मधुर सौरभ, रंजन ठाकुर, आदर्श वैभव, शशांक कुमार, ब्रजेश कुमार, बिकेस साह ने शानदार अभिनय से दर्शकों को खूब मनोरंजन किया। मंच की प्रकाश सज्जा और अन्य व्यवस्था ने भी प्रभावित किया।