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बिहार में 95 फीसद अपार्टमेंट सोसायटी अवैध, विधान सभा में भी उठा मुद्दा

बिहार में बमुश्किल करीब पांच फीसद अपार्टमेंट में ही सोसाइटियों का निबंधन है। बाकी 95 फीसद में बनी ही नहीं है या निबंधित नहीं हैं। जिसके कारण बिल्डरों व दबंग फ्लैट मालिकों की मनमानी चलती है । विधान सभा में भी यह मामला गूंजा है।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Tue, 23 Mar 2021 03:57 PM (IST)Updated: Tue, 23 Mar 2021 03:57 PM (IST)
बिहार में 95 फीसद अपार्टमेंट सोसायटी अवैध, विधान सभा में भी उठा मुद्दा
पटना में अपार्टमेंट की सांकेतिक तस्‍वीर ।

पटना, अरविंद शर्मा ।  बिहार में छोटे-बड़े दस हजार से ज्यादा अपार्टमेंट हैं, जिनमें लाखों परिवारों का बसेरा है। किंतु मुश्किल है कि करीब पांच फीसद अपार्टमेंट में ही सोसाइटियों का निबंधन है। बाकी 95 फीसद में बनी ही नहीं है या निबंधित नहीं हैं। ऐसा इसलिए है कि कॉपरेटिव एक्ट के तहत सोसाइटियों के निबंधन में आरक्षण के नियमों का अनुपालन जरूरी है परंतु फ्लैटों की बिक्री आरक्षण के हिसाब से नहीं होती है। इसलिए निबंधन ठप है। नतीजा है कि ऐसे अपार्टमेंटों में बिल्डरों की मनमानी चलती है या दमदार फ्लैट मालिकों की दादागिरी। इसका फायदा वैसे फ्लैट मालिकों को मिल जाता है, जो मेंटेनेंस नहीं देते हैं। इससे आम निवासी परेशान होते हैं। इंसाफ के लिए उन्हें पुलिस का चक्कर लगाना पड़ता है।

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विधान सभा में भी उठा मामला

नियमों के तहत अपार्टमेंटों में ऑनर्स वेलफेयर एसोसिएशन का गठन और निबंधन जरूरी है। रेरा एक्ट में कम से कम आठ फ्लैट का भी अपार्टमेंट है तो सोसाइटी बनाना जरूरी होता है। इससे आम निवासियों को राहत मिलती है, क्योंकि प्रत्येक कॉलोनी में औसतन 10 से 20 फीसद लोग ऐसे होते हैं, जो नियम-कायदे से बाहर रहते हैं। सोसाइटी के निबंधन नहीं होने से उनपर कार्रवाई नहीं की जा सकती है, जबकि निबंधित सोसाइटियों में ऐसे लोगों पर नियंत्रण के लिए दंड की व्यवस्था होती है। निवासियों को परेशानी अलग है। सोसाइटी के निबंधित नहीं होने से बैंक खाता नहीं खुल पाता है। पैन नंबर नहीं मिल पाता है। फ्लैट मालिक अपने पैन नंबर के जरिए निजी खाता खुलवाता है, जिससे इनकम टैक्स के दायरे में आ जाता है। यह बड़ा झंझट है। इस गंभीर मसले को नौ मार्च को विधानसभा में उठाया जा चुका है। विधायक समीर महासेठ के ध्यानाकर्षण पर सरकार ने जवाब देने के लिए समय मांगा है।

क्यों नहीं हो पाता निबंधन

बिहार में दो एक्ट के तहत अपार्टमेंट सोसाइटियों का निबंधन होता है। कंपनी एक्ट और कॉपरेटिव एक्ट। दिक्कत दोनों में है। सबसे बड़ी दिक्कत कॉपरेटिव एक्ट में है। इसमें निबंधन के लिए आरक्षण नियमों का पालन करना पड़ता है। आरक्षण को ध्यान में रखकर फ्लैट की बिक्री तो होती नहीं है। फिर सोसाइटी की मैनेजिंग कमेटी के लिए आरक्षित वर्ग के लोगों को जुगाड़ कैसे होगा। कंपनी एक्ट के तहत निबंधन होता है परंतु दिक्कत है कि यह अपार्टमेंट एक्ट से मेल नहीं खाता है। अपार्टमेंट एक्ट में अध्यक्ष, सचिव एवं कोषाध्यक्ष जैसे ऑफिस बियरर होते हैैं, परंतु कंपनी एक्ट में काम-धाम बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के जरिए होता है। दोनों का तरीका अलग है। संतुलन नहीं बन पाता। इसके अतिरिक्त कंपनी के ऑडिट एवं रिटर्न फाइल करने में भी लफड़े होते हैं। ऐसे में सोसाइटी को सीए या वकील चलाने लगते हैं, जिन्हें अलग से पैसे देने पड़ते हैैं।

कड़े नियमों से ही नियंत्रण

प्रदेश में प्रत्येक साल सैकड़ों अपार्टमेंट बन रहे हैं। रेरा के मुताबिक 2016 के बाद से अकेले पटना में ही 12 सौ से ज्यादा अपार्टमेंट की मंजूरी मिल चुकी है। अपार्टमेंट के रख-रखाव की जवाबदेही नगर निकायों की भी होनी चाहिए, क्योंकि फ्लैटों से टैक्स लिया जाता है। ऐसे में सफाई, जल निकासी जैसी समस्याओं की जवाबदेही निगमों की भी होनी चाहिए, जो नहीं होती। जाहिर है, इसमें कड़े नियम की जरूरत है, ताकि बिहार में भी फ्लैट कल्चर विकसित हो सके।

रियल इस्‍टेट रेग्‍यूलेटरी अथॉरिटी के सदस्य आरबी सिन्‍हा का कहना है कि बिहारआठ फ्लैट से ज्यादा के अपार्टमेंट में सोसाइटी का गठन जरूरी होता है। 51 फीसद बुकिंग पर बिल्डर को पहल करके सोसाइटी बनवाना होता है। बिहार में निबंधन पर नीति स्पष्ट नहीं है। दिल्ली में आधे घंटे में ही निबंधन हो जाता है।


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