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आठवीं के छात्र ने बनाई बुजुर्गों को दवा देने वाली मशीन, जानिए कैसे करेगी काम

आठवीं के एक छात्र ने एक ऐसी डिवाइस तैयार की है, जो बुजुर्गों को समय पर दवा देने में मददगार बनेगी। आइआइटी पटना में आयोजित हैकॉथन में इसका प्रेजेंटेशन किया गया।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 09 Sep 2018 10:14 AM (IST)Updated: Sun, 09 Sep 2018 10:09 PM (IST)
आठवीं के छात्र ने बनाई बुजुर्गों को दवा देने वाली मशीन, जानिए कैसे करेगी काम
आठवीं के छात्र ने बनाई बुजुर्गों को दवा देने वाली मशीन, जानिए कैसे करेगी काम

पटना [जयशंकर बिहारी]। आठवीं के छात्र सूर्य नारायण ने ऐसी डिवाइस बनाई है कि जो बुजुर्गों को समय से दवा लेने  में मदद करेगी। डिवाइस में दवा के नाम, डोज और समय फीड कर देने के बाद अलार्म बजेगा और मशीन की विंडो से तय दवा बाहर आएगी। दवा लेने के साथ ही अलार्म बजना बंद हो जाएगा। यदि बगैर दवा लिए अलार्म को बंद कर देंगे तो अलार्म सेट करने वाले व्यक्ति के पास दवा नहीं लेने का मैसेज चला जाएगा। मशीन में एक बार में 24 घंटे के लिए दवा फीड की जा सकती है। इस डिवाइस का प्रेजेंटेशन शनिवार को आइआइटी पटना में आयोजित 'हैकॉथन' में किया गया।

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डिवाइस बनाने वाला छात्र सूर्य नारायण 13 वर्ष का है। वह 'हैकॉथन' में सबसे कम उम्र का प्रतिभागी है। आइआइटी पटना के इन्क्यूबेशन सेंटर के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी के अनुसार डिवाइस में उपयोग किये गए सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर उन्नत तकनीक के हैं।

दादा को दवा लेने में हुई परेशानी तो आया आइडिया

सूर्य ने बताया कि उसके दादा अकेले रहते हैं। उन्हें समय पर दवा लेने में हमेशा परेशानी होती थी। इस डिवाइस को बनाने का आइडिया इसी बात को सोचते हुए चार माह पहले आया। बैट्री और अन्य सामग्री को असेंबल करने में दो माह का समय लगा। अब यह काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। कई बार इसे आजमाया गया है। हर बार परफेक्ट रिजल्ट आया है।

अमेरिकी तकनीक से सात गुना सस्ती

सूर्य के साथ आई उसकी मां और सहायक प्रोफेसर डॉ. लीना ने बताया कि डिवाइस को असेंबल करने में 450 से 500 रुपये का खर्च आता है। इसे बाजार में 600 रुपये में उपलब्ध कराया जाएगा, जबकि ऐसी डिवाइस की कीमत अमेरिका में 4000 से 5000 रुपये के बीच आती है। सारी तकनीक सूर्य ने खुद तैयार की है। इसे सोलर सिस्टम से भी चलाया जा सकता है।

घर में बना दी लैब

डॉ. लीना ने बताया कि चार साल की उम्र में ही सूर्य ने सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाने की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। उसके पिता रणजीत विटी स्वयं सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। बेटे की रुचि देख कर उन्होंने घर में ही लैब बना दी। दूसरी कक्षा से ही उसने डिवाइस बनाना शुरू कर दिया था। उसे स्कूल से भी काफी सपोर्ट मिलता है। आइआइटी पटना इन्क्यूबेशन सेंटर के एक्जीक्यूटिव मार्केटिंग आलोक कुमार के अनुसार वह इलेक्ट्रॉनिक असेंबलिंग में काफी दक्ष है।

574 में 15 टीमों का हुआ चयन

आइआइटी पटना में आयोजित 'हैकॉथन' में शामिल होने के लिए 574 टीमों के 1700 लोगों ने रजिस्ट्रेशन किया था। इसमें से 15 टीमों का चयन 6 से 9 सितम्बर को आयोजित प्रतियोगिता में हुआ। इसमें सूर्य नारायण भी हैं। रविवार को विजेता और दो उपविजेताओं का चयन किया जायेगा। इनको आइआइटी पटना के इन्क्यूबेशन सेंटर से जुड़कर अपने स्टार्टअप को दो साल तक अपग्रेड और मार्केटिंग करने का अवसर मिलेगा।


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