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तालाब जमींदोज होने से तीन गांव की हरियाली गुम

नवादा। प्रखंड के तीन गांवों के किसानों के लिए कभी बरदान रहा तीन गछुली और अघुना तालाब अप

By Edited By: Published: Wed, 11 May 2016 09:13 PM (IST)Updated: Wed, 11 May 2016 09:13 PM (IST)
तालाब जमींदोज होने से तीन गांव की हरियाली गुम

नवादा। प्रखंड के तीन गांवों के किसानों के लिए कभी बरदान रहा तीन गछुली और अघुना तालाब अपने अस्तित्व बचाने के लिए किसी तारणहार की वाट जोह रहा है। गांव के किसान बताते हैं कि दो दशक पूर्व तक उक्त तालाब से सौर, राजापुर तथा दौलतपुर गांव के सैकड़ों एकड़ खेतों पटवन होता था। तालाब के पानी से गरमा फसल और सब्जी खेतों में लहलहाती थी। परन्तु तालबा खुद अपना अस्तित्व बचाने के लिए कराह रही है। करीब एक एकड़ भूमि पर फैली तीन गछुली पोखर का अस्तित्व अब महज तीन डिसमिल परती भूमि के रूप में बचा है। जबकि उक्त तीनों गांव के किसानों के लिए वरदान साबित होने वाले करीब दो एकड़ भूभाग में फैला अघुना तालाब संवेदक की लूट खसोट के कारण आज अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। हर वर्ष किसान तालाब के बांध को अपने खेत में मिलाते जा रहे हैं। उक्त पोखर अब महज दो कटठा भी नहीं बच रहा है। ग्रामीणों को अब निजी नलकूपों के सहारे या फिर इन्द्रदेव की कृपा पर निर्भर रहना पड़ रहा है। सौर, राजापुर तथा दौलतपुर गांव से दक्षिण अवस्थित इस पोखर को किसानों की खेत बढ़ाने की लालच ले लील लिया है। अतिक्रमण का दंश ने दोनों पोखर का अस्तित्व को लगभग समाप्त कर दिया है। पोखर के आस पास के किसान खेत बढ़ाने के चक्कर में धीरे धीरे पोखर की जमीन हड़प लिया है।

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किसी भागिरथी प्रयास की है जरूरत

-सौर पंचायत के किसानों की खेतों तक पोखर का पानी पहुंचाने के लिए दोनों पोखर को किसी भागिरथी प्रयास की जरूरत है। जमींदोज हो चुके पोखर की भूमि को पहले अतिक्रमण मुक्त करवाने की आवश्यकता है। तब उसके अच्छी तरह से सफाई करवा कर पुन: खेतों की हरियाली वापस लाई जा सकती है। ग्रामीण बताते हैं कि 2007-08 में उक्त तालाव की सफाई के लिए तत्कालीन मुखिया ने पंचायत मद की राशि से तालाब सफाई का कार्य शुरू किया गया था जो लूट खसोट का शिकार हो गया। राशि खर्च होने के बाद भी पोखर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है।

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किसानों को नहीं है जल संचय का साधन

-खरीफ फसलों की ¨सचाई के लिए सौर, राजापुर और दौलतपुर के किसानों को बरसाती पानी संचय करने का कोई साधन नहीं बचा है। फलत: जब बरसात मंद पड़ती है तो किसान ¨सचाई के लिए विकल्प खोजते हैं। क्योंकि किसानों के पास आहर भी नहीं है।

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क्या है किसानों कि व्यथा

- सौर ग्रामीण सह पूर्व मुखिया अक्षय कुमार उर्फ गोरेलाल ¨सह कहते है कि किसान अपने ¨सचाई के साधन को खुद अतिक्रमण कर विलुप्त किया है। पुर्व मुखिया ने सफाई के नाम पर राषि का वारा न्यारा किया है। पोखर का अस्तित्व अब लगभग समाप्त होने पर है। अगर अतिक्रमण इसी प्रकार होते रहा तो नई पीढ़ी को पोखर का नामोनिशान नहीं मिलेगा। काफी प्रयास के बाद सौर गांव में एक सरकारी टयूबेल लगवाया हूं लेकिन विभागीय अकर्मण्यता के कारण चालू नहीं हो सका है। गांव के किसानों के समक्ष ¨सचाई का मुद्दा मुंह बांए खड़ी है।

फोटो -गोरेलाल ¨सह

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-दौलतपुर ग्रामीण प्रदीप प्रसाद कहते हैं कि अघुना और तीन गछुली पोखर के विलुप्त होने से सौर गांव में सब्जी उत्पादन को काफी प्रभावित किया है। पोखर में बरसात बाद बचा पानी से गरमा सब्जी खेतो में लहलहाती थी। जो अब गुजरे दिनों की बात हो गई है। पानी का जब अभाव होता है तब किसानों को पोखर की आद आती है। कुछ किसान अपने स्वार्थ में पोखर को खेत बना कर अब ¨सचाई से बंचित हो रहे है।

फोटो -प्रदीप प्रसाद

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- ग्रामीण भोला ¨सह कहते है कि पोखर किसानों का प्रमुख संसाधन होता है। इसके समाप्ति बाद फसल लहलहाने वाली खेत उसर हो गए हैं। किसानों को वैक्लपिक साधन के बदौलत धान एवं गेहुं की फसल उपजाने में काफी पूंजी लगानी पड़ती है। पोखर क्या समाप्त हुई खेतों से उसकी हरियाली छिन गई है।

फोटो-भोला ¨सह, दौलतपुर।


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