अंतरराज्यीय ऑनलाइन सम्मेलन में कवियों ने बांधा समां
जासं नवादा रविवार को जुटान के ऑनलाइन सांस्कृतिक मंच पर देश के बहुचर्चित और जनसरोका
जासं, नवादा : रविवार को जुटान के ऑनलाइन सांस्कृतिक मंच पर देश के बहुचर्चित और जनसरोकार से जुड़े गजलकार अमरोहा यूपी से रामकुमार कृषक , सुल्तानपुर यूपी से डॉ. डीएम मिश्र और फरीदाबाद हरियाणा से हरेराम समीप ने दुष्यंत और अदम गोंडवी के परम्परा का निर्वाह करते हुए सामयिक गजलों से शाम-ए-गजल को उद्देश्यपूर्ण बना दिया । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामकुमार कृषक ने जनसरोकार की गजलों को भाषा साहित्य का आवश्यक अंग बताया । उपस्थित सभी गजलकारों की गजलियत को वर्तमान समय में प्रतिरोध का मीठा हथियार बताया । गजल पाठ को प्रारम्भ करते हुए हरेराम समीप ने ''हमको सोने की कलम चांदी की स्याही चाहिए, शेर कहने के लिए साकी सुराही चाहिए '' के माध्यम से आज के गजल का तेवर बता दिया। डॉ. डी एम मिश्र ने '' अंधेरा है घना फिर भी गजल फूलों की कहते हो, फटे कपड़े नहीं तन पर गजल रेशम की कहते हो '' कहकर परंपरावादी इश्किया गजल पर चोट किया और जनसरोकार के गजल को महत्वपूर्ण बताया। रामकुमार कृषक ने शेर पढ़ते हुए कहा कि '' रोटियों का मुद्दआ दिल्ली से सुलझेगा नहीं ''। उन्होंने दुष्यंत कुमार को कोट करते हुए वर्तमान गजल लेखन की धारा को नई पीढ़ी में पैवस्त करने की वकालत की । शम्भु विश्वकर्मा ने'' शेर थे हल्के वजन में आ गए, कांच के सिक्के चलन में आ गए '' जैसे आसार से वर्तमान व्यवस्था की पोल खोल दी तो संचालक अशोक समदर्शी ने '' अब क्या सुनाएं हाल हम अपने अजीज के, वे दाम लगाने लगे मेरी ही चीज के '' शेर से शुरुआत कर तरन्नुम में शाम-ए-गजल को रंगीन और उद्देश्यपूर्ण बना दिया । अंत में संयोजक शम्भु विश्वकर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित कर कर्यक्रम का समापन किया ।