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37 लाख के रैन बसेरा में तीन साल से नहीं ठहरे एक भी मुसाफिर

वारिसलीगंज। आश्रय विहीन लोगों के लिए शहर में रात्रि विश्राम को लेकर वारिसलीगंज नगर परिषद द्वारा तीन वर्ष पूर्व करीब 37 लाख रुपये खर्च कर बनाया गया तीनमंजिला रैन बसेरा उपयोगिता हीन साबित हो रहा है। 2019 में शुभारंभ बाद आज तक एक भी व्यक्ति रैन बसेरा में नहीं ठहर सके हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 12:22 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 12:22 AM (IST)
37 लाख के रैन बसेरा में तीन साल से नहीं ठहरे एक भी मुसाफिर
37 लाख के रैन बसेरा में तीन साल से नहीं ठहरे एक भी मुसाफिर

वारिसलीगंज। आश्रय विहीन लोगों के लिए शहर में रात्रि विश्राम को लेकर वारिसलीगंज नगर परिषद द्वारा तीन वर्ष पूर्व करीब 37 लाख रुपये खर्च कर बनाया गया तीनमंजिला रैन बसेरा उपयोगिता हीन साबित हो रहा है। 2019 में शुभारंभ बाद आज तक एक भी व्यक्ति रैन बसेरा में नहीं ठहर सके हैं। राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन द्वारा संचालित रैन बसेरा के संचालन व रख रखाव पर प्रति माह 50 हजार रुपये सरकारी राशि खर्च हो रहा है।

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नगर मिशन प्रबंधक दीपक कुमार ने बताया कि मेरी नियुक्ति नवादा नगर परिषद में है। जबकि वारिसलीगंज व हिसुआ अतिरिक्त प्रभार में हूं। वारिसलीगंज का रैन बसेरा उपयोगिता विहीन होने की मुख्य वजह शहर से दूर और एकांत में भवन निर्माण होना है। रैन बसेरा को आबादी के निकट होना चाहिए था ताकि लोग रेलवे स्टेशन या फिर बस स्टैंड से देर रात भी उतरने पर आसानी से पहुंचकर आराम कर सकते। इसके ठीक विपरीत रेलवे स्टेशन से करीब दो किलोमीटर दूर माफी गढ़ मैदान में रैन बसेरा बनाया गया है। जहां शाम के बाद अनजान व्यक्ति के लिए पहुंचना कठिन कार्य है। फलत: रैन बसेरा अपने उद्देश्यों से भटक रहा है।

रैन बसेरा के संचालन को ले एक प्रबंधक एवं तीन केयर टेकर की नियुक्ति की गई है। रैन बसेरा की देख-रेख प्रबंधक खुशबू कुमारी तथा केयर टेकर पम्मी कुमारी, सन्नी देवी एवं कमल किशोर करते हैं।

------------------ क्या है ठहरने का नियम

-रात हो जाने पर ठहरने का सस्ता एवं सुलभ साधन है रैन बसेरा। आधार कार्ड एवं मोबाइल नंबर या अन्य कोई पहचान पत्र देकर मात्र 15 रुपया भुगतान कर रात भर यहां ठहरा जा सकता है। ------------------- भोजन की व्यवस्था

-रैन बसेरा में रुकने वाले व्यक्ति अगर चाहे तो प्रबंधक को मात्र 30 रुपये भुगतान कर भोजन कर सकते हैं। प्रबंधक खुशबू बताती है कि नियमानुसार जो व्यक्ति आश्रय स्थल पर विश्राम करते हैं उन्हें 30 रुपये में चावल, दाल, सब्जी या रोटी भोजन देना है। लेकिन अभी तक कोई व्यक्ति रुके ही नहीं है। फलत: भोजन बनाने की नौबत ही नहीं आई है। यह रैन बसेरा स्थायी है। जबकि प्रति वर्ष शहर में नगर परिषद द्वारा चलंत रैन बसेरा भी संचालित किया जाता है। पिछले तीन वर्षों से वारिसलीगंज पीएचसी परिसर में टेंट लगाकर चलंत रैन बसेरा संचालित किया जा रहा है। लेकिन कोरोना संक्रमण के भय से कोई व्यक्ति वहां नहीं ठहरते हैं।


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