दिल्ली को रवाना हुई ट्रेन महीनों से घर में कैद कामगारों के चहरे पर आई मुस्कान
बीते एक जून से अनलॉक वन के फर्स्ट फेज के पहले दिन सोमवार से देश भर के कई राज्यों में करीब दो माह से ठप पड़ी गतिविधियां धीरे-धीरे शुरू हो गई हैं। जिसमें 100 जोड़ी ट्रेनें शुरू होने से सूने पड़े स्टेशनों पर रेलयात्रियों की चहल पहल से रौनक लौटने लगी है।
संवाद सहयोगी, राजगीर: बीते एक जून से अनलॉक के फर्स्ट फेज के पहले दिन सोमवार से देश भर के कई राज्यों में करीब दो माह से ठप पड़ी गतिविधियां फिर से पटरी पर आती दिखी। एक साथ 100 जोड़ी ट्रेनें शुरू होने से सुने पड़े स्टेशनों पर रेलयात्रियों की चहल-पहल बढ़ गई। इस क्रम में राजगीर रेलवे स्टेशन से नई दिल्ली को जाने वाली अतिमहत्वपूर्ण श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन को सोमवार से नई दिल्ली स्पेशल ट्रेन के नाम से शुरू किया गया है। जिसमें सवार हो लॉकडाउन के दौरान फंसे लोग अब अपने काम पर नई दिल्ली व एनसीआर के विभिन्न क्षेत्रों को लौट रहे हैं। वहां काम करने वाले श्रमिकों और रोजगार करने वालों रेलयात्रियों के चेहरे पर खुशी की लहर है। जो काफी वर्षों से वहां रोजी रोटी कमा रहे थे। वहीं लॉकडाउन की अवधि तक दिल्ली में छूट गए अपने परिवार और ईष्ट मित्रों से महीनों बाद, मिलने की खुशी भी उनके चेहरे पर झलक रही थी। चेहरे पर मुस्कान लिए उनकी खुशी देखने लायक थी। ट्रेन शुरू करने को लेकर उन्होंने सरकार को धन्यवाद दिया। दैनिक जागरण ने यात्रियों की खुशियों को अपने कैमरे में कैद भी किया तथा उनसे बातचीत भी की। उनसे बातचीत के अंश :
-------------------------------------------------------------------------- मो फखरूद्दीन: पिछले 15 सालों से नई दिल्ली के नांगलोई स्थित प्रेमनगर में चुड़ियां बनाकर बेचने का काम कर रहे हैं। जहां किराए पर अपनी छोटी सी दुकान भी खोल रखी है। रोजाना करीब 5 से 6 सौ रुपए की कमाई हो जाती है। पैसे कमाकर बीते माह मार्च में होली के कुछ दिन पूर्व, गया जिले के अपने गांव झरना सरेन परिवार से मिलने आया था। लेकिन लॉक डाउन लागू होते ही यहां फंस गया। जिससे परिवार में शामिल पांच बच्चों के साथ जीविकोपार्जन की स्थिति बिगड़ गई। मगर अब अपनी दुकान और काम को फिर से चालू करने का मौका मिला है।
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विनोद कुमार: दिल्ली के बुराड़ी में करीब 40 वर्षों से टेलरिग शॉप में कपड़े सीलने का काम कर रहे हैं। जहां प्रतिदिन के हिसाब से 5 सौ रुपए कमा लेते हैं। और बीते 29 फरवरी को वहां से अपने दोस्त के बेटे की शादी में शरीक होने आए थे। और दोस्त ने कुछ दिन के लिए रोक लिया। मगर लॉक डाउन लगते हीं वे फंस गए। जिससे उनकी आय का जरिया ठप हो गया। और अपने काम तथा भविष्य की चिता में घुल रहा था। मगर दोस्त ने ऐसी स्थिति में मदद की। अब जबकि नई दिल्ली के लिए सरकार ने स्पेशल ट्रेन शुरू कर दी है। तो अपने काम पर लौट सकूंगा।
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हीरालाल सिंह: दिल्ली के नोएडा सेक्टर 20 में डेरा तथा सेक्टर 4 में पिछले 26 साथ से चाय नाश्ते की दुकान चलाकर अपने परिवार का जीविकोपार्जन कर रहे हैं। जिसमें रोजाना 7 से 8 सौ रुपए की आमदनी हो जाती है। लेकिन बीते 12 मार्च को बड़ी बहन का निधन हो गया। और उनकी अंत्येष्टि में अपना काम छोड़कर आना पड़ा। और लॉक डाउन में फंसे गया। इतने दिनों में सारे पैसे भी खत्म हो गए थे। खाने पीने को लाले हो गए। मगर इस ट्रेन के शुरू होने से नए उमंग के साथ अब अपने दुकान खोल सकूंगा।
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संजय कुमार: नई दिल्ली के लक्ष्मीनगर में किराए के मकान में रहते हैं। और वहां 20 साल से एक सेठ की गाड़ी चलाते हैं। जहां दिहाड़ी मजदूरी के तौर पर 5 सौ रुपए रोजाना मिलता है। बीते 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के ठीक एक दिन पहले यानि 21 मार्च को शेखपुरा जिले के शेखोपुरडीह अपने घर लौटा था। और लॉक डाउन में घर पर हीं लॉक हो गया। कमाकर लाए गए सभी पैसे के खतम हो जाने से परिवार का पेट भरने की समस्या खड़ी हो गई । और मन कुंठित हो गया। आज इस ट्रेन से वापस काम पर लौटते वक्त मुझे फिर से एक नई उर्जा मिल रही है।
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राजीव कुमार- नई दिल्ली के बदरपुर में एक प्राईवेट कंपनी में 18 वर्षों से काम कर रहे हैं। जहां दैनिक मजदूरी साढ़े चार सौ रुपए मिलता है। राजगीर अनुमंडल गिरियक प्रखंड के पुरैनी गांव में अपने घर होली के कुछ दिन पहले लौटे थे। लेकिन लॉक डाउन में घर पर हीं फंस गए। और अपने काम पर नहीं लौट सके। इस दौरान घर में हीं रखें जमा पूंजी से अपना और पूरे परिवार का पेट पालना पड़ा। जो कुछ दिन में समाप्त हीं होने वाला था। मगर भला हो सरकार का। कि इस विशेष ट्रेन को चलाकर कामगारों को अपने काम पर लौटने का अवसर दिया।
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बृजमोहन कुमार: दिल्ली के सीएनजी कंपनी में 10 वर्ष से काम कर रहे हैं। और सुल्तानपुरी में डेरा लेकर पत्नि और बच्चों के साथ रहते हैं। पत्नि और दो बेटी को छोड़ बीते 21 मार्च को मोकामा के अजगरा गांव अपने घर, बीमार पिता के इलाज के लिए अपने छोटे पुत्र के साथ आए थे। और 24 मार्च को लागू लॉक डाउन में फंस गए। इस बीच दिल्ली के सुल्तानपुरी में पत्नि और बेटियों की चिता सताती रही। जिनके सलामती के लिए रोज घंटों मोबाइल पर बात कर दिलासा देता रहा। जिन्हें इस ट्रेन से अपनी वापसी की खबर दे दी है। काम और परिवार से मिलने की खुशी का हम सभी को ठिकाना नहीं है।
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सत्येंद्र कुमार- दिल्ली के मेरठ में लगेज बैग का जिप लाईन चेन बनाने वाली एक कंपनी में 13 साल से हेल्पर का काम कर रहे हैं। जहां 10 हजार रुपए महीने मिलता है। होली में पैसे और कपड़े लेकर पहले अपने ससुराल पटना जाकर पत्नि और बच्चों से मिला। फिर शेखपुरा के लक्ष्मीपुर अपने घर गया। और लॉक डाउन में रुकना पड़ा। सारे कमाकर लाए सारे पैसे भी खत्म हो गए थे। जिससे भूखमरी की नौबत आनपड़ी। अब फिर से अपने काम पर दिल्ली जाते वक्त खुशी हो रही है। जिससे अपने परिवार का भरण पोषण कर सकूंगा।
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शशिकांत: अपने पिता के साथ वर्षों से दिल्ली के शहादरा में फल के व्यवसाय में हाथ बंटाया और वहीं पिता के साथ रहकर पढ़ाई भी पूरी की। और पिछले 4 साल से शहादरा के एक धागा बनाने की फैक्ट्री में 12 हजार रुपए महीने पर काम करता हूं। बीते 16 मार्च को वेन प्रखंड के मनियावां गांव अपने नानी घर आया था। और लॉक डाउन में फंस गया। इस बीच पिताजी लगातार फोन पर कुशल क्षेम की खबर लेते रहे। धन्यवाद सरकार का। कि राजगीर-नई दिल्ली स्पेशल ट्रेन से अपने पिता के पास जा रहा हूं। सचमुच दिल्ली अब दूर नहीं।