राजनीति की तपती धूप में साहित्य की घनी छांव थे आचार्य बद्रीनाथ वर्मा और डॉ सच्चिदानंद सिन्हा
रविवार को स्थानीय श्री हिदी पुस्तकालय सोहसराय करुणाबाग-बिहारशरीफ में साहित्यिक मंडली नालंदा शंखनाद के तत्वावधान में साहित्यपत्रकारिता और राजनीति के आदर्श पुरुष थे बदरीनाथ वर्मा की 117 वीं व शिक्षाविद्स बिहार राज्य निर्माता डॉ0 सच्चिदानंद सिन्हा की 14वी जयंती मनाई गई।
जागरण संवाददाता, बिहारशरीफ : रविवार को स्थानीय श्री हिदी पुस्तकालय सोहसराय, करुणाबाग-बिहारशरीफ में साहित्यिक मंडली 'शंखनाद' के तत्वावधान में साहित्य, पत्रकारिता और राजनीति के आदर्श पुरुष बदरीनाथ वर्मा की 117 वीं और शिक्षाविद् डॉ सच्चिदानंद सिन्हा की 148 वीं जयंती तथा ह•ारत मुहम्मद साहब का जन्म दिवस पर याद समारोह मनाया गया। अध्यक्षता गीतकार, साहित्यकार डॉ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने की। समारोह में उपस्थित लोगों ने दोनों शिक्षाविदों के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ0 हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने कहा कि अपने समय के महान साहित्यसेवी, पत्रकार, प्राध्यापक, स्वतंत्रता सेनानी और बिहार के प्रथम शिक्षामंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा का व्यक्तित्व और चरित्र अत्यंत प्रेरणास्पद और अनुकरणीय रहा। वे राजनीति में एक सशक्त साहित्यिक हस्तक्षेप थे। दूसरी ओर महान शिक्षाविद् डॉ सच्चिदानंद सिन्हा तो बिहार के जनक थे। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने साहित्यिक और राजनीतिक स्वार्थ में डूबा देश उन्हें भूलता जा रहा है। साहित्यिक मंडली 'शंखनाद' के सचिव साहित्यसेवी राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि संस्कृत, हिदी, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेजी के गम्भीर ज्ञाता बदरीनाथ वर्मा जी को सम्पूर्ण'गीता'कंठस्थ थी। बदरीनाथ वर्मा जी का जीवन सरलता, स्वच्छता, सच्चरित्रता व साहस से भ्रा रहा। बदरी बाबू पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और महान राजनीति शास्त्री चाणक्य का गहरा प्रभाव था। उन्होंने चाणक्य के जीवन से यह सीखा था कि, राजकोष के धन का निजी कार्य में, एक बूंद तेल के लिए भी व्यय नहीं करना चाहिए। उन्होंने राज्य के शिक्षा विभाग समेत अन्य विभागों के मंत्री रहते हुए इसका अक्षरश: पालन किया। उन्होंने शासन का कुछ भी लेना स्वीकार नही किया। मीठापुर स्थित अपने अत्यंत साधारण खपरैल घर में रहे, कितु सरकारी आवास नहीं लिया। ठीक उसी तरह, जिस तरह, एकीकृत विशाल भारत के अर्थशास्त्री व कूटनीति-शास्त्र के ज्ञाता आचार्य चाणक्य एक गुफानुमा अति साधारण घर में रहा करते थे। मगही-पाली भाषा के विकास के लिए 06 जनवरी 1957 को शुकदेव विद्यालय एकंगरसराय स्थित प्रांगण में भिक्खु जगदीश कश्यप की अध्यक्षता में मगही सम्मेलन किया गया था, जिसका उद्घाटन सूबे के प्रथम शिक्षामंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा ने किया था। इस सम्मेलन में देश-प्रदेश के हजारों मगही-पाली भाषा सेवी साहित्यकार जुटे थे।
इस मौके पर मंडली में सक्रिय भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक, साहित्यकार, प्रो डॉ आनंद वर्द्धन, इतिहासकार तुफैल अहमद खां सूरी, कमल प्रकाश,मगही कवि उमेश प्रसाद उमेश,समाजसेवी धीरज कुमार,संजय कुमार पाण्डेय, साधना कुमारी, राजीव कुमार शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ संजय कुमार पाण्डेय ने सरस्वती-वंदना से किया।
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बंग-भंग कर बिहार को अलग अस्तित्व दिलाया
डॉ सच्चिदानंद सिन्हा ने “बिहार'' को अलग राज्य बनाने की मांग उठाई, उसके लिए संघर्ष किया, जिसने बंग-भंग कराकर “बिहार'' को अलग अस्तित्व दिलाया। संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद और डॉ सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष थे। 9 दिसंबर 1946 को वे इसके अध्यक्ष निर्वाचित हुए। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने डॉ सिन्हा से ही पदभार ग्रहण किया था। बिहार को बंगाल से पृथक राज्य के रूप में स्थापित करने वाले लोगों में उनका नाम सबसे प्रमुख है। 1910 के चुनाव में चार महाराजों को परास्त कर वे केन्द्रीय विधान परिषद में प्रतिनिधि निर्वाचित हुए। प्रथम भारतीय जिन्हें एक प्रान्त का राज्यपाल और हाउस ऑफ लार्डस का सदस्य बनने का श्रेय प्राप्त है।
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अंग्रेजी के शिक्षक रहते हुए बदरी बाबू ने हिदी के लिए बहुत किया
साहित्यिक मंडली 'शंखनाद' के अध्यक्ष डॉक्टर लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि अंग्रेजी के प्राध्यापक होते हुए भी बदरी बाबू ने हिदी के लिए जो किया वह स्वर्णाक्षरों में अंकित है। ये ऐसे महापुरुष थे, जो अपनी आखिरी साँस तक राष्ट्र और राष्ट्रभाषा का सौभाग्य संवारने के लिए सतत सचेष्ट रहे। गांधी-युग के हिदी-सेवी देशभक्तों में बदरी बाबू का स्थान बहुत ऊंचा है। उनका निरहंकार व्यक्तित्व, उनकी सदाशयता, सहृदयता, सादगी और सर्व-हित-कामना सचमुच मनुष्य-जाति के लिए गौरव का विषय है। राष्ट्रीय एकता की उद्बोधिका राष्ट्रभाषा हिदी की जो आकार-कल्पना की गई है, बदरी बाबू मनसा-वाचा-कर्मणा उसके मूर्त रूप थे। वहीं सच्चिदानंद सिन्हा एक महान शिक्षाविद, पत्रकार, राजनेता और परिवर्तनकारी थे। पटना में सिन्हा पुस्तकालय की स्थापना 1924 में कराई। इस पुस्तकालय का मूल नाम'श्रीमती राधिका सिन्हा संस्थान एवं सच्चिदानन्द सिन्हा पुस्तकालय'है। 1955 में राज्य सरकार ने इसे सुरक्षित रखने के लिए अपने अधीन कर लिया।
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जितने अच्छे संपादक, उतने ही अच्छे थे व्याख्याता
शायर बेनाम गिलानी ने ह•ारत मोहम्मद साहब के जीवनकाल पर विस्तार से प्रकाश डाला। आचार्य बदरीनाथ वर्मा में बताते हुए कहा कि आचार्य वर्माजी हिन्दी ही नही, बल्कि उर्दू और अंग्रेजी के भी विद्वान थे। वे जितने अच्छे संपादक थे उतने ही अच्छे व्याख्याता भी थे। उन्होंने दैनिक पत्र 'भारत मित्र', राष्ट्रीय साप्ताहिक 'देश' के अतिरिक्त पटना से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक 'सर्च लाइट' के संयुक्त संपादक के रूप में उल्लेखनीय यश प्राप्त किया। वे साहित्य सम्मेलन से प्रकाशित पत्रिका 'साहित्य' का भी वर्षों तक संपादन किया।