अधिकांश पीएचसी व एपीएचसी में ड्यूटी से कतराते हैं चिकित्सक व कर्मी
बिना लेडीज डॉक्टर व ड्रेसर के सहारे अस्पताल बिन्द पीएचसी अस्पताल में डॉक्टर के कुल आठ पद हैं जँहा अभी चार डॉक्टर कार्यरत हैं और बाकी के शेष चार डॉक्टर का पद खाली है। अस्पताल में महिला डॉक्टर की संख्या एक भी नहीं है। जिससे खासकर महिलाओं को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।
जागरण टीम : सरकार भले ही मरीजों को स्वास्थ्य सेवा बेहतर दिलाने की दिशा में नित्य नई-नई योजनाओं को धरातल पर उतार रही है। पर हकीकत में कुछ और ही देखने को मिल रहा है। सदर व अनुमंडलीय अस्पताल को छोड़ दें तो जिले के अधिकांश पीएचसी व एपीएचसी की हालत काफी दयनीय है। समय से चिकित्सकों का नहीं आना। ड्यूटी के नाम पर खानापूरी करना। मरीजों से बेहतर व्यवहार करना तो दूर उनकी पीड़ा सुनने को भी कोई तैयार नहीं है। बीते एक सप्ताह से सिविल सर्जन डॉ राम सिंह ने जिले के कई पीएचसी व एपीएचसी की खुद जांच की तो व्यवस्थागत खामियों की कलई एक-एक कर सामने आने लगी हैं। हद तक तब हो गई जब 10 बजे तक सरमेरा प्रखंड स्थित एपीएचसी इसुआ में ताला लटका था। सीएस ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए सभी चिकित्सक व कर्मियों की वेतन निकासी पर रोक लगाते हुए 15 दिन के भीतर सारी व्यवस्था में सुधार लाने के साथ ससमय ड्यूटी करने की हिदायत दी है। सीएस ने कहा कि लोगों से मिल रही शिकायत के बाद करीब एक दर्जन से अधिक पीएचसी व एपीएचसी का निरीक्षण किया लेकिन कहीं भी संतोषजनक स्थिति नहीं पाई गई। जो चिता का विषय है।
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प्रसव मरीजों को अधिकांश पीएचसी व एपीएचसी में नहीं मिलता नाश्ता हाल के दिनों में सरमेरा पीएचसी, इसी प्रखंड के इसुआ, सारे पीएचसी के अलावा नगरनौसा पीएचसी व एपीएचसी के निरीक्षण में इस बात का खुलासा हुआ कि यहां प्रसव कराने आने वाली महिलाओं को मीनू के अनुसार नाश्ता नहीं मिलता है। निरीक्षण में पीएचसी व एपीएचसी की बदहाल स्थिति देख सीएस भी भौंचक रह गए। उन्होंने कई चिकित्सा पदाधिकारियों को चेतावनी देते हुए सुधर जाने की नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि सीमित संसाधन में बेहतर काम करना ही हम चिकित्सकों का दायित्व है। सरकार ने जिस काम के लिए हमें यहां पर बैठाया है, इसमें किसी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं होगी।
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बिद पीएचसी में नहीं है महिला चिकित्सक एक तरफ सरकार मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने का दावा करती है वहीं हकीकत यह है कि सरकारी अस्पताल पहुंचने पर मरीजों का दर्द कम होने के बजाए और भी बढ़ जाता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिद में हर दिन 200 से 250 मरीजों का आगमन होता है। लेकिन आपको सुन कर हैरानी होगी, यहां पर एक भी महिला चिकित्सक नहीं है। ऐसे में प्रसव के लिए आए महिलाओं का इलाज किस प्रकार होता होगा इसके बारे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी तरह बेन पीएचसी के अलावा कई ऐसे एपीएचसी हैं जहां अस्पताल तो खुली है पर डॉक्टर के आने का कोई समय सीमा नहीं होता है।
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कई एपीएचसी में नर्स ही करातीं हैं डिलीवरी महिला चिकित्सक के नहीं रहने के कारण कई पीएचसी व एपीएचसी में नर्स ही डिलीवरी करातीं हैं। थोड़ी सी परेशानी होने पर तत्काल रेफर कर दिया जाता है। बहरहाल जिले के सरकारी अस्पतालों की हालत काफी दयनीय है। हालांकि नए सीएस डॉ राम सिंह इस व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए अपने स्तर से लगातार मॉनीटरिग कर इसमें सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं। पर ऐसा तभी संभव हो पाएगा जब सभी डॉक्टर व कर्मी ईमानदारी से अपने कार्य का निर्वहन कर सकेंगे।