उपन्यासकार नरेन का निधन
... उपन्यासकार नरेन का निधन हिन्दी-बांग्ला साहित्य व नालंदा के लिए बड़ी क्षति ..... जागरण संवाददाता बिहारशरीफ नालंदा जिले के मूल बाशिदे ख्यात उपन्यासकार नरेन का 19 नवम्बर को निधन हो गया। उनका निधन हिदी-बांग्ला साहित्य व नालंदा के लिए बड़ी क्षति है। उनकाचांदनी रात का जहरजैसा कालजयी उपन्यास हमेशा याद किया जाएगा। नरेन हिदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार कथाकार तथा जन-सांस्कृतिक आन्दोलन और पत्रकारिता की उपज थे। फिल्मकार उत्पलेंदु चक्रवर्ती की यूनिट में वे बहैसियत निजी सचिव एवं वरिष्ठ सहायक निर्देशक लगभग
नालंदा। नालंदा जिले के मूल बाशिदे ख्यात उपन्यासकार नरेन का 19 नवम्बर को निधन हो गया। उनका निधन हिदी-बांग्ला साहित्य व नालंदा के लिए बड़ी क्षति है। उनका'चांदनी रात का जहर'जैसा कालजयी उपन्यास हमेशा याद किया जाएगा।
नरेन हिदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कथाकार तथा जन-सांस्कृतिक आन्दोलन और पत्रकारिता की उपज थे। फिल्मकार उत्पलेंदु चक्रवर्ती की यूनिट में वे बहैसियत निजी सचिव एवं वरिष्ठ सहायक निर्देशक लगभग 8-9 वर्षों तक सक्रिय रहे।
बताया गया कि गुरुवार की रात के 10 बजे उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई और हॉस्पिटल ले जाने के क्रम में उनका निधन हो गया। उनका आवास पटना के चांदमारी रोड में था।
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मजदूर के बेटे का साहित्यिक सफर नालंदा जिले के एक पिछड़े गांव से आए नरेन का बचपन कोलकाता के खिदिरपुर डॉक (बंदरगाह) पर गुजरा था, जहां उनके पिता मजदूर थे। इसी जीवन से उन्होंने साहित्य और संस्कृति के सरोकार विकसित किए। स्वर्गीय नरेन जी एक समाज सन्दर्भित, सहृदय, संवेदनशील, लोकोपहारी, आदरणीय व्यक्तित्व थे। वे हिन्दी-बांग्ला साहित्य के शीर्षस्थ पुरुष थे। हिदी के अलावा बांग्ला और अंग्रेजी पर उनका समान अधिकार था।
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नालंदा के मैजरा-नोनीडीह के मूल बाशिदे थे नरेन नरेन जी का जन्म 1 जनवरी 1959 को बिहार राज्य के तत्कालीन पटना जिला (वर्तमान नालंदा जिला) के मैजरा-नोनीडीह गांव में अति सामान्य किसान परिवार में हुआ था। नरेन जी के निधन से हिन्दी साहित्य में युग का अवसान हो गया है। उनका नहीं होना हिन्दी जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। नालंदा ने अपना एक बहुमूल्य रत्न को खो दिया है।
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ये हैं नरेन की प्रमुख कृतियां नरेन का उपन्यास 'गांव चलो'एवं उनके दो कहानी-संकलन'बाघ शिकार'तथा'प्रसव'खूब पढ़े गए। उन्होंने लगभग 250 क्लासिक बांग्ला एवं विदेशी कहानियों का अनुवाद किया। इसाक वॉशेविक सिगर, असकिन कॉडवेल, हावर्ड फास्ट तथा गैब्रियेल गार्सिया मार्वेश की हिन्दी में अनुदित चुनिदा कहानियों के अलग-अलग संकलन। सम्प्रति : स्वतन्त्र संचार सलाहकार के रूप में यूनिसेफ एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ सहयोग-बिहार एवं झारखण्ड के वरिष्ठ मीडिया कर्मियों खासकर वरिष्ठ पत्रकारों के एक सक्रिय मंच एवं समाजशास्त्रीय शोध संस्थान जय-प्रभा अध्ययन एवं अनुसन्धान केन्द्र पटना के सचिव थे। उपन्यास 'गाँव चलो', 'चांदनी रात का जहर' ने उन्हें साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान दिलायी।
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शंखनाद के बैनर तले दी गई श्रद्धांजलि शनिवार को साहित्यिक संस्था शंखनाद के बैनर तले नरेन को श्रद्धांजलि दी गई। इस मौके प्रो लक्ष्मीकांत, राकेश बिहारी शर्मा, डॉ. सच्चिदानंद प्रसाद वर्मा, प्रोफेसर डॉ. विश्राम प्रसाद, नवनीत कृष्ण, तुफैल अहमद खां सूरी, प्रियारत्नम, केदार प्रसाद मेहता, धीरज कुमार, अरुण बिहारी शरण, संजय कुमार शर्मा, संतोष कुमार सहित दर्जनों लोगों ने भाग लिया। श्रद्धांजलि सभा के अंत में लोगों ने दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।