नालंदा। स्वतंत्रता संग्राम की भाषा उर्दू सांझी संस्कृति की भाषा है जो बिहार राज्य की द्वितीय राजभाषा भी है। उर्दू प्रेमियों की उदासीनता और सरकार के सौतेलेपन के कारण प्रेम की यह भाषा लुप्त होने के कगार पर है। उक्त तथ्यों का उद्गार भाषाई संगठन आवामी उर्दू निफाज कमेटी बिहार के अध्यक्ष अशरफ अस्थानवी ने कहीं। परिसदन में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि मगध क्षेत्र उर्दू बहुल्य जिला है। लेकिन आवामी और सरकारी स्तर पर उर्दू का कार्यान्वयन बहुत कम है जो ¨चता की बात है। उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा मिले 38वर्ष हो चुका फिर भी सरकारी स्तर पर उर्दू का क्रियान्वयन समुचित नहीं हो पाया। 1995से नवगठित जिला अनुमंडल और प्रखंड मे उर्दू अनुवादक सहायक अनुवादक और टाइपिस्ट का पद सृजित नहीं होने के कारण उर्दू के क्रियान्वयन में कठिनाई हो रही है। इस मामले में राज्य सरकार ने 1765 उर्दू अनुवादक के पद सृजन की स्वीकृति मंत्रिमंडल मे भेजा था लेकिन राशी का आवंटन नही किया गया। उन्होंने कहा कि उर्दू मगध क्षेत्र का बाहुल्य इलाका है लेकिन साक्षरता दर अन्य जिलों की भांति बहुत कम है। बिहार मे 78 हजार प्राइवेट और मध्य विद्यालय में मात्र 32 हजार उर्दू शिक्षक कार्यरत हैं। फलस्वरूप उर्दू भाषी अपनी मातृभाषा छोड़कर अन्य भाषा पढ़ने को विवश है। जो संविधान और मौलिक अधिकारों के विपरीत है। उर्दू भाषा को जीवंत रखने के लिए उर्दू भाषियों को एकजुट होकर हर कार्यक्रम में उसका प्रयोग करने का संकल्प सुनिश्चित करें। अशरफ अस्थानवी ने नालंदा वासियों से आग्रह किया है कि उर्दू के संरक्षण के लिए हर क्षेत्र से आवाज बुलंद करेंगे। इस अवसर पर हसनैन आलम को अस्थि आवामी उर्दू निफाज कमेटी का जिलाध्यक्ष मनोनीत किया गया।
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