तालाबों के अस्तित्व को बचाने के लिए सभी को होना होगा जागरूक
किसी भी स्थान की भौगोलिक एवं जलवायु विशेषताओं के अनुरूप वहां के निवासी,जीव जंतु, पेड़ पौधे आदि समेकि
किसी भी स्थान की भौगोलिक एवं जलवायु विशेषताओं के अनुरूप वहां के निवासी,जीव जंतु, पेड़ पौधे आदि समेकित रूप से विकास करते है। उतरोत्तर विकास ही मानव समाज का स्वभाव है। जब विकास की कोई भी कार्ययोजना, पर्यावरण के कारकों को कम से कम नुकसान पहुंचाता है, तो हम ऐसी कार्ययोजना को पर्यावरण के अनुकूल मानते हैं। इसके विपरीत यदि कोई भी कार्य योजना, मात्र किसी एक लक्ष्य को लेकर, एक या अन्य सभी कारकों को अलग-अलग कर दे या नष्ट कर दे तो ऐसी कार्ययोजना को पर्यावरण की जरूरतों के विपरीत माना जाता है। इस तरह के कार्य क्षेत्र तत्कालिक लाभ को ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ाए जाते है। जिसके परिणाम घातक एवं दूरगामी होते है। हमारे संविधान निर्मातों ने भी पर्यावरण की महत्ता को रेखांकित करते हुए संविधान की धारा 51 (क) छ में हर भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य निर्धारित किया है कि प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, नदी, तालाब, झील और वन्य जीव है। इत्यादि की रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें। जागरण संवाददाता, बिहारशरीफ : एक समय था कि जिले में ¨सचाई व्यवस्था के लिए किसान तालाबों पर निर्भर रहते थे। लेकिन आज परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत है। अब या तो तालाब खेत में तब्दील हो गए है। या फिर उसका अतिक्रमण हो गया है। कुल मिलाकर तालाब शब्द का वर्तमान समय में नामोनिशान खत्म सा हो गया है। आज कुछ तालाबों का अस्तित्व बचा है। लेकिन कुछ में पानी नहीं है तो किसी तालाब में गाद से भरा है। जिसे जीर्णोद्धार की शीघ्र आवश्यकता है। अब हम कुछ तालाबों की इतिहास पर एक नजर डालते है। नालंदा खंडहर के पास स्थित ह्वेनसांग मेमोरियल के पास करीब 50 से 60 एकड़ में फैला तालाब पुष्पकरणी तालाब आज जीर्ण अवस्था में है। वहीं पास में स्थित नूरसराय प्रखंड का दिग्घी पोखर जो पूरे जिले में सबसे बड़ा तालाब है। आज उस तालाब की भी स्थिति काफी दयनीय है। पर्यटन के ²ष्टिकोण से तालाब की महत्ता पर्यावरण के जानकार एवं स्थानीय समाजसेवी सीपी ¨सह ने बताया कि जिले के तत्कालीन डीएम संजय अग्रवाल ने उक्त पुष्पकरणी एवं दिग्घी पोखर तालाब को मिलाकर पर्यटन के क्षेत्र में काफी संभावनाएं देखी थी। जैसे पर्यटकों को ध्यान में रखकर नौका विहार के अलावा एक सुंदर पार्क विकसित किया जाना था। लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद इन सारी योजनाओं पर ग्रहण लग गया है। यहां बता दें कि ह्वेनसांग मेमोरियल से लगे पश्चिम बेगमपुर गांव में दिग्घी पोखर तालाब स्थित है। इससे थोड़ी ही दूरी पर दिगबंर जैनियों का पुराना धर्मशाला एवं नवनिर्मित नंद्यावर्त महल है। जैन सर्किट को ध्यान में रखते हुए ग्रामीणों की सुविधा के साथ इसका विकास हो तो अति उत्तम होता। लेकिन देखभाल के कारण यह तालाब भी उपेक्षा का शिकार होता जा रहा है। और सारी पर्यटन की योजनाएं ऐसे धरी की धरी रह गई। इन तालाबों के जीर्णोद्धार से बढ़ेगा नालंदा का महत्व नव नालंदा महाविहार के पास स्थित तालाब की स्थिति आज अच्छी है। चूंकि महाविहार का स्थापाना का मुख्य उद्?देश्य ही था बुद्धिष्ट स्टडीज का विकास करना। बुद्ध की मूर्ति को केन्द्र में रखकर एक लाइट एंड साउंड शो की व्यवस्था जिसमें महाविहार की परिकल्पना, देश के प्रथम राष्ट्रपति के द्वारा शिलान्यास और आज तक की यात्रा के साथ ही भविष्य की योजनाओं का भी जीवंत चित्रण किया जाना चाहिए। इसके अलावा बो¨टग की भी सुविधा उपलब्ध कराई जाय। ताकि पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केन्द्र बने। वहीं तीसरा तालाब पुरातत्व संग्रहालय से लगे छोटा तालाब है। जिसका काफी हिस्सा आज खेत बन चुका है। नालंदा नाम की सार्थकता को दर्शाता इस जगह को विभिन्न किस्म के कमल के पौधों को लगाकर एक थीम पार्क के रूप विकसित किया जाना चाहिए। तालाबों को बचाने के लिए होना होगा जागरूक जिले के तालाबों के मिटते जा रहे अस्तित्व को बचाने के लिए एक समाजसेवी सीपी ¨सह की ही जिम्मेदारी नहीं बनती है। इसके लिए पूरे जिले के लोगों को जागरूक होना होगा। तभी हम नालंदा जिले की जो तालाबों के लिए पहचान बनी थी। उसे वापस लाने के लिए हम सभी लोगों को कदम से कदम मिलाकर काम करना होगा। तभी हम अपने आने वाले पीढि़यों के परेशानी को कम कर सकते है। अन्यथा आने वाले दिनों में लोग एक-एक बूंद पानी के लिए तरसेगें।