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बौद्ध धर्म में कहीं भी असहिष्णुता स्वीकार नहीं: प्रो. लाभ

संवाद सूत्र नालंदा नव नालंदा महाविहार (सम विश्वविद्यालय) में बुद्ध जयंती समारोह आयोजित किया गया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 17 May 2022 12:06 AM (IST)Updated: Tue, 17 May 2022 12:06 AM (IST)
बौद्ध धर्म में कहीं भी असहिष्णुता स्वीकार नहीं: प्रो. लाभ
बौद्ध धर्म में कहीं भी असहिष्णुता स्वीकार नहीं: प्रो. लाभ

संवाद सूत्र, नालंदा: नव नालंदा महाविहार (सम विश्वविद्यालय) में बुद्ध जयंती समारोह आयोजित किया गया। इस दौरान आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि यह बुद्ध की 2566वीं जयंती का वर्ष है। यह परम सौभाग्य की बात है और अजीब संयोग है कि इसी दिन सिद्धार्थ का अवतरण भी हुआ था। इसी दिन बोधगया में उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी और आगे चलकर इसी दिन यानी कि वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें परिनिर्वाण की प्राप्ति हुई। जन्म, बोधिप्राप्ति और परिनिर्वाण तीनों का वैशाख पूर्णिमा के दिन ही होना अपने आप में एक विचित्र संयोग है।

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उन्होंने कहा कि बुद्ध और धर्म दोनों पर्यायवाची हैं। बौद्ध धर्म में कहीं भी इनटोलरेंस अथवा असहिष्णुता की बात नहीं की गई है। हमेशा सहिष्णुता,प्रेम,भाईचारा, करुणा, अहिसा और मानव कल्याण की कामना की गई है। बैशाख पूर्णिमा के पावन अवसर पर पहले नालंदा महाविहार के ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल के सांस्कृतिक ग्राम परिसर के थीमेटिक पार्क में स्थापित बुद्ध की मूर्ति पर कुलपति प्रोफेसर वैद्यनाथ लाभ एवं डॉ निहारिका लाभ,महाविहार के आचार्य, कर्मचारी गण एवं छात्र छात्राओं ने श्रद्धा सुमन अर्पित किया। इसके बाद महाविहार के इंटरनेशनल हॉस्टल में अवस्थित प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। फिर पूजा हॉल में एक समारोह आयोजित किया गया। सभी लोगों ने भगवान बुद्ध के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मंगल पाठ किया एवं 10 मिनट ध्यान किया। बौद्ध परंपरा में ध्यान का बड़ा महत्व है। इसे विपस्सना के नाम से जाना जाता है। ध्यान अथवा विपस्सना अंत: करण की शुद्धि का एक प्रमुख साधन है। इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में कुलपति प्रो लाभ ने कहा कि आज के इस अशांत और तनावपूर्ण माहौल में बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता बनी हुई है। जयंती केवल मनाने की चीज नहीं है बल्कि कुछ सीखने की चीज है। और जीवन में उसे उतारने की जरूरत है। उन्होंने नव नालंदा महाविहार की चर्चा करते हुए कहा के बुद्ध के संदेश को जन जन तक पहुंचाने के लिए और बौद्ध शिक्षा का प्रचार प्रसार करने के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह, डॉक्टर जगदीश चंद्र माथुर एवं बद्री प्रसाद वर्मा के प्रयत्नों एवं सहयोग से नव नालंदा महाविहार की स्थापना हुई। यहां दक्षिण पूर्व एशियाई देशों श्रीलंका, बर्मा थाईलैंड, म्यानमार आदि देशों के बौद्ध भिक्षु अध्ययन करने के लिए आते हैं।

ममता महाविहार दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ सांस्कृतिक संबंध को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। दुर्भाग्यवश कोरोना संकट के समय यह विदेशी भिक्षु छात्र अपने देश चले गए। मैं उम्मीद करता हूं कि वे जल्द वापस लौटेंगे। नव नालंदा महाविहार उनके पदछापों एवं उनके मंगल पाठ से पुन: गूंजायमान होगा। प्रो. श्रीकांत सिंह ने कहा कि बौद्ध धर्म विभिन्न देशों में विभिन्न स्वरूप ग्रहण करके आगे बढ़ रहा है और आज इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। प्रो. राम नक्षत्र प्रसाद ने कहा इस धर्म में मूर्ति अथवा प्रतिमा को स्वीकृति नहीं मिली है। प्रो. मुकेश वर्मा ने इस अवसर पर प्रतीक प्राणियों के प्रति सद्भावना रखने की अपील की गोष्ठी का संचालन प्रोफेसर राणा पुरुषोत्तम सिंह ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन रजिस्ट्रार डा. एसपी सिन्हा ने किया। मैडम कुलपति डा. निहारिका लाभ, महाविहार के आचार्यगण कर्मचारी गण व छात्र-छात्राएं आदि उपस्थित थे।


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