पर्यावरण बचाओ का संदेश देने बाइक से निकल पड़े दंपती
घटते जंगल व मचती तबाही के बीच वन्यजीवों के संरक्षण का संकल्प ले कोलकाता निवासीरथीन दाका कारवां नालन्दा पहुंचा। रतींद्रनाथ दास (रथीन दा) अपनी पत्नी गीतांजलि के साथ जंगल जमीन व जीव बचाओ अभियान के तहत न केवल पूरे भारत बल्कि विश्व के कई देशों में में जाने की तमन्ना लिए नालन्दा पहुंचे हैं। ं
बिहारशरीफ: घटते जंगल व मचती तबाही के बीच वन्यजीवों के संरक्षण का संकल्प ले कोलकाता निवासी'रथीन दा'का कारवां नालंदा पहुंचा। रतींद्रनाथ दास (रथीन दा) अपनी पत्नी गीतांजलि के साथ जंगल, जमीन व जीव बचाओ अभियान के तहत न केवल पूरे भारत बल्कि विश्व के कई देशों में जाने की तमन्ना लिए नालंदा पहुंचे हैं। जहां बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान ( बिपसा) के राहुल ने अगवानी कर उनका स्वागत किया। बता दें कि ये एक बार अकेले 2016 में 24 राज्य तथा 05 संघीय शासित राज्यों का दौरा कर चुके हैं। दूसरे चरण में 15 फरवरी 19 को कोलकाता से अपनी पत्नी गीतांजलि दास गुप्ता के साथ यात्रा आरंभ की है। यह यात्रा इसी साल दिसंबर या जनवरी 2020 तक पूरी होने की संभावना है। इसके बाद 2020 में फरवरी के बाद 12 एशियाई देशों खासकर म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, चीन, रशिया, नेपाल व भूटान की यात्रा पर निकलेंगे। जिसका एकमात्र उद्देश्य पर्यावरण बचाओ है।'पर्यावरण बचाओ, बाघ बचाओ'के स्लोगन के साथ फिलहाल इन्होंने अपनी यात्रा कोलकाता के साल्ट लेक सिटी से शुरू की है। वहां से नार्थ ईस्ट के प्रदेश आसाम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम होते हुए पूर्णिया के रास्ते बिहार में प्रवेश कर भागलपुर होते हुए नालंदा पहुंचे। जहां बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान( बिपसा) के राहुल कुमार ने नालंदा के विभिन्न स्पॉटों का भ्रमण कराया। इसी क्रम में थरथरी के एक शिक्षण संस्थान में छात्र-छात्राओं की क्लास भी लगी। जहां सैकड़ों छात्र-छात्राओं के अलावा पर्यावरण प्रेमी उपस्थित हुए। इस दौरान रथीन दा ने लोगों का आह्वान किया कि पर्यावरण बचाने में हर व्यक्ति जिम्मेवारी लें। केवल सरकार के भरोसे न रहें। तभी यह अभियान सफल हो सकता है। उन्होंने बताया कि उनका अगला पड़ाव वाल्मीकीनगर टाइगर रिजर्व बगहा है। पटना, मुजफ्फरपुर व चंपारण होते हुए वे बगहा पहुचेंगे। रथीन दा ने बताया कि बिहार के नालन्दा खासकर राजगीर में भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने की जरूरत है। सप्तगिरि पहाड़ी की सुंदरता तभी निखरेगी, जब तक जंगल रहेंगे।
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राजगीर के जंगल से गायब हो गए भालू व पैंगोलिन
नालंदा यात्रा के दौरान रथीन दा को बिपसा के राहुल कुमार का साथ मिला। बंगलोर की संस्था एक्सप्लोरिग नेचर'ने दोनों को मिलाया। राहुल ने बताया कि बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान पारितंत्र के संरक्षण में विश्वास रखती है। आज स्थिति बहुत भयावह हो गयी है। जिसका सबसे अच्छा उदाहरण है कि राजगीर से भालू जैसे जीव खत्म हो गए हैं। संकटग्रस्त पैंगोलिन बिहारशरीफ तक देखने को मिल जाते थे। आज राजगीर के जंगल से भी गायब हैं। इसके प्रमाण •ोडएसआई की रिपोर्ट में है। जो 2004 में'फॉना ऑफ बिहार, इन्क्लूडिग झारखंड'के नाम से प्रकाशित हुए थे। तब बिहार और झारखंड का बंटवारा नही हुआ था। 1995 में प्रकाशित जॉर्नल में इस बात की चर्चा है कि बिहारशरीफ के सोहडीह मोहल्ले में जान बचाने की फिराक में एक घर में घुसने पर पेन्गलीन की हत्या कर दी गयी तथा 1981 की वन विभाग बिहार सरकार की रिपोर्ट के अनुसार राजगीर का वन्य आश्रयणी पेन्गलीन का सुगम बसेरा था जो अब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है। वहीं नवादा के रजौली के जंगल में स्लोथ बियर( आलसी भालू) का भी यही है। जिस तरह बाघ जंगल रूपी पारितंत्र में शीर्ष पर है, तो हमें बाघ के संरक्षण के लिए हिरणों के लिए ग्रासलैंड और जंगल को बचाना होगा। ताकि बाघ को प्राकृतिक आवास में उन्हें भोजन मिल सके। एक तरफ संकटग्रस्त प्रजाति मेंढक है, पक्षी है तो दूसरी तरफ संकटग्रस्त बाघ भी है। इसे भी देखना होगा। संरक्षण की ²ष्टि से दोनों को समान रूप से देखा जाना चाहिए। हमें बाघ के साथ साथ दूसरे संकटग्रस्त वन्यजीवों को भी उतनी ही गंभीरता से लेना होगा। हमारे आसपास बाघ नहीं हैं लेकिन जो पेड़-पौधे और पशु-पक्षी हैं। हम उन्हें बचाएं। उनके आवास को क्षति न पहुंचाये। नालंदा यात्रा के दौरान राहुल ने रथीन दा को नालन्दा के भग्नावशेषों का भ्रमण कराया। उनके साथ ए टू जेड क्लासेस के धीरज कुमार व अविनाश शर्मा थे। जिन्होंने नालन्दा के पर्यावरण की बारीकियों से अवगत कराया।
इस दौरान बिपसा टीम ने थरथरी में बच्चों को सांप और पक्षियों के बारे में जानकारी दी। जिसमें सांप को पहचानने से लेकर काटने व उपचार आदि के बारे में भी विस्तार से बताया गया। इस दौरान रथीन दा ने अपने अभियान के बारे में बच्चों से खूब बातें भी की।
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नब्बे के दशक के बाद पेंगोलिन का दर्शन हुआ दुर्लभ
अस्सी-नब्बे के दशक तक राजगीर के वन्य क्षेत्रों में पैंगोलिन के पाए जाने की बात सामने आई है। फिलहाल इसके दर्शन दुर्लभ ही हैं । यह शेड्यूल-1 केटेगरी का वन्य जीव है। यह ज्यादातर मैदानी तथा हल्का पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी खाल या किसी अंग की खरीद बिक्री प्रतिबंधित है। यहां बता दें कि ड्रग्स से लेकर मर्दानगी बढ़ाने के लिए इसके अंगों का प्रयोग किया जाता है। इसके खाल अथवा अंग बिक्री करते पाए जाने पर सात साल तक कि सजा का प्रावधान है। दक्षिण ऐशियाई देशों में इसकी काफी मांग है। इन देशों में केवल खाल की कीमत डेढ़ से दो लाख तक मिल जाती है। यह एक स्तनधारी प्राणी है। इसके शरीर पर केराटिन के बने शल्क (स्केल) नुमा संरचना होती है। जिससे यह अन्य प्राणियों से अपनी रक्षा करता है। पैंगोलिन ऐसे शल्कों वाला अकेला ज्ञात स्तनधारी है। इसे भारत में सल्लू सांप भी कहते हैं।
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फेसबुकिया फ्रेंड सहित कुछ संस्थाओं से मिलती है मदद दुनिया को नापते हुए जंगल व जीव बचाओ अभियान में निकले रथीन दा को नियमित रूप से कोई सरकारी फंडिग नहीं होती है। अपने जुनूनी रथ पर सवार उन्हें फेसबुकिया फ्रेंड के अलावा कुछ गिनती भर की संस्था, जो पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही है का सहयोग मिल रहा है। जिनमें एक्सप्लोरिग नेचर, साउथ एशियन फॉर्म ़फॉर इन्वाइरनमेंट( कोलकाता इकाई), एशियन वाइल्डलाइफ ़फोटोग्राफर्स क्लब (हॉन्गकॉन्ग), डव्लूयूएफ, आईयूसीएन आदि के अलावा हीरो मोटोकोर्प तथा दुर्गापुर दत्ता ऑटोमोबाइल का सहयोग मिला है। इसी ने घुमने के लिए बाइक उपलब्ध करायी है। वहीं एक्सप्लोरिग नेचर घुमने के दौरान लाइजनिग का काम करती है। एशियन वाइल्डलाइफ ़फोटोग्राफर्स क्लब ने उन्हें हाल में ही ब्रांड एम्बेसडर घोषित किया है।
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बाघ की दहाड़ अतीत भर रह जाएगी रथीन दा ने बताया कि फिलहाल दुनिया भर में महज 3890 बाघ ही बचे हैं। जिनमें ढाई हजार के करीब भारत में हैं। जबकि आज से 50 साल पहले यह आंकड़ा 40,000 हुआ करता था। अगर घटने की रफ्तार यही रही तो आगामी कुछ वर्षों में बाघ तस्वीरों तक ही सिमट कर रह जाएंगे औऱ बाघ की दहाड़ अतीत बन कर रह जाएगी। हम रोज 300 से 400 किमी की दूरी तय कर भारत सहित विश्व के वनांचल क्षेत्रों में जा रहे हैं औऱ उस क्षेत्र के लोगों को जागरूक कर रहे हैं।
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वन प्रमंडल नालन्दा से नहीं मिला कोई रिस्पांस हजारों किमी की यात्रा के बाद नालन्दा पहुंचे रथीन दा राजगीर वन्य आश्रयणी में ठहरने का इरादा लेकर आये थे। परंतु जिला वन पदाधिकारी की ओर से अच्छा रिस्पांस नहीं मिलने पर देर रात में ही पटना के लिए रवाना हो गए। वन प्रमंडल नालन्दा की ओर से कोई प्रतिनिधि मिलने तक की जरूरत नहीं समझे। नालन्दा पहुंचते ही शाम हो गयी थी। वे लोग करीब 8 से 9 बजे के करीब नालन्दा के इलाके में थे। परंतु फारेस्ट का गेस्ट हाउस बुक होने की जानकारी मिलने पर उन्होंने अपनी मंशा बदल ली। रथीन दा ने बताया कि पिछले दिनों भागलपुर में डीएफओ एस सुधाकर ने उनका स्वागत किया तथा गंगा डॉल्फिन परियोजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
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