मुजफ्फरपुर में जल संचयन की पुरानी तकनीक पर फिर से काम समय की मांग
हर आधा किमी पर हो एक पोखर तालाब या कुआं नदियों में गंदा पानी बहाने पर लगे रोक जलाशयों के चारों तरफ हो पौधारोपण धरोहर घोषित पोखर एवं तालाब। जमीन के नीचे संचित भंडार समाप्त होते जा रहे हैं। अभी बारिश का पानी बर्बाद हो जाता है।
मुजफ्फरपुर, जासं। आने वाले कल को पेयजल संकट से बचाने के लिए हमें जल संचयन की पुरानी तकनीक पर फिर से काम करना होगा। वर्तमान हालात की बात करें तो जल संचयन की पुरानी तकनीक बिल्कुल खत्म होती जा है। कुएं एवं तालाब भर दिए गए। नदियां सूख रही हैं। कई नदियां सूख कर नाले में तब्दील हो चुकी हैं। जमीन के नीचे संचित भंडार समाप्त होते जा रहे हैं। पेड़ काटे जा रहे, जबकि एक पेड़ काफी मात्रा में पानी सोख्ता है। पुराने जमाने में पोखर के किनारे हरियाली दिखती थी। अभी बारिश का पानी बर्बाद हो जाता है। इसे बचाने के लिए कारगर तकनीक अपनाई जानी चाहिए। पहले उत्तर बिहार में हजारों तालाबों की श्रृंखला थी जिसमें बारिश एवं बाढ़ का पानी संचित हो जाता था। यह बातें रविवार को दैनिक जागरण के सहेज लो हर बूंद अभियान को लेकर लोगों से हुई बातचीत के दौरान सामने आई।
भू-जल का जरूरत से ज्यादा दोहन
डॉ. अनिता घोष ने कहा कि शहर की अधिकांश सड़कें एवं नालियां पीसीसी बन रही हैं। पीसीसी सड़क से वर्षा का पानी जमीन के अंदर नहीं पहुंच पाता है। इसलिए मुख्य सड़क नहीं तो कम से कम गली-मुहल्ले की सड़क को पेवर ब्लॉक से बनाया जाना चाहिए। पेवर ब्लॉक से बनी सड़क से होकर बारिश का पानी जमीन के अंदर चला जाएगा और भू-जल का भंडार रिचार्ज होगा। कम से कम नगर निगम को इस पर ध्यान देना चाहिए। समाजसेवी जितेंद्र मंडल ने कहा कि हम भू-जल का जरूरत से ज्यादा दोहन कर रहे हैं। देश में जल संकट का यह एक बड़ा कारण है। इसलिए सबसे पहले भू-जल के दोहन पर नियंत्रण लगाया जाना चाहिए। नगर निगम शहरी इलाके में मोटर एवं सबमर्सिबल लगाने वालों के लिए कानून बनाए। सभी सबमर्सिबल लगने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। आरबीबीएम कॉलेज की प्राचार्या डा. ममता रानी ने कहा कि शहर में जो भी पोखर या तालाब बचे हैं उनको संरक्षित घोषित किया जाना चाहिए। ताकि कोई भी उसपर कब्जा कर मकान नहीं बना सके।