Valmiki Tiger Reserve: वीटीआर में संकटग्रस्त प्रजाति गिद्धों के कुनबे की है मौजूदगी, इसके संरक्षण पर होगा काम
Valmiki Tiger Reserve संपूर्ण वीटीआर में मिले 150 गिद्ध इसके संरक्षण पर होगा काम। विलुप्त एवं संकटग्रस्त प्रजाति को बचाने की दिशा में सूबे में पहली बार होगी पहल। अलग - अलग पांच प्रक्षेत्रों में पाई गई हैं यह प्रजाति।
बेतिया (पचं) [शशि कुमार मिश्र]। गिद्ध संकटग्रस्त एवं विलुप्त प्रजाति की श्रेणी में पहले से ही शामिल है। इसके संरक्षण पर कई जगह काम भी हो रहे हैं। लेकिन हाल के कुछ महिनों से वीटीआर में गिद्धों की मौजूदगी पाई जा रही है। इसे देखते हुए वीटीआर प्रशासन विलुप्त एवं संकटग्रस्त होते गिद्धों के संरक्षण पर काम करेगा। सूबे में पहली बार इसके संरक्षण एवं संवर्द्ध्न की दिशा में पहल की जा रही है। इसके लिए वीटीआर प्रशासन सरकार को इस वर्ष भेजी गई वार्षिक कार्ययोजना में इसे शामिल किया है। इसके लिए 57 लाख की कार्ययेजना बनाई गई है, जिसकी स्वीकृति मिलने के बाद इस पर काम शुरू कर दिया जाएगा। यदि इसकी स्वीकृति मिल जाती है, तो यह पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि होगी। गिद्ध को वातावरण के सफाईकर्मी के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह मरे हुए पशुओं को खाकर वातावरण को स्वच्छ रखता है। गिद्ध संरक्षण परियोजना पर पांच प्रक्षेत्रों में काम किया जाएगा। इसमें मदनपुर, मंगुराजा, ठोरी तथा गोनौली के दो प्रक्षेत्र शामिल हैं। केवल गोनौली प्रक्षेत्र में 90 गिद्धों की मौजूदगी बताई गई है। शेष अन्य तीनों प्रक्षेत्रों में पाए गए हैं। कुल मिलाकर यहां 150 गिद्ध पाए गए हैं। क्षेत्र निदेशक के अनुसार अनुकूल वातरण के कारण इस क्षेत्र में गिद्धों की उपस्थिति हुई है।
- Photo- वीटीआर के गोनौली में पेड़ पर बैठा गिद्ध
गिद्धों के लिए बनाया जाएगा रेस्क्यू सेंटर
गिद्धों के सरंक्षण के लिए गोनौली वन प्रक्षेत्र के कंपार्टमेंट संख्या 22 में गिद्धों के लिए रेस्क्यू सेंटर बनाए जाने का प्रस्ताव है। इसमें गिद्धों की संख्या में बढ़ोत्तरी के लिए उपाय अख्तियार किए जाएंगे। ताकि इस क्षेत्र में सुरक्षित ढ़ंग से इस प्रजाति का अधिवास हो सके। इसके लिए दूसरे राज्यों से पक्षी वैज्ञानिकों को लाकर उनकी सलाह ली जाएगी।
क्या है गिद्धों के विलुप्त होने का कारण
क्षेत्र निदेशक के अनुसार पशुओं में दर्द की दवा के रूप में डायक्लोफेनिक का इस्तेमाल किया जाना गिद्धों की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण है। जब मरे पशुओं को गिद्धा खाता है, तो इस दवा का असर सीधे किडनी पर पड़ता है, इससे उसकी मौत हो जाती है। इसे देखते हुए इस दवा के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दी गई है। इसके अलावा फसलों में कई कीटनाशी दवाओं का प्रयोग भी मुख्य कारण है।
ग्रामीणों को किया जाएगा जागरूक, आयोजित होंगे सेमिनार
गिद्धों के संरक्षण के लिए आसपास के ग्रामीणों को इस बात को लेकर जागरूक किया जाएगा कि यह पक्षी पर्यावरण प्रहरी के रूप में है। इसे बचाने के लिए फसलों में कीटनाशी दवाओं के साथ -साथ पशुओं को प्रतिबंधित दवाएं नहीं दें। इस पर सेमिनार भी आयोजित किए जाएंगे। सेमिनार में बाहर के राज्यों से पक्षी विशेषज्ञों को बुलाया जाएगा।
इस संबंध में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के क्षेत्र निदेशक एचके राय ने कहा कि विलुप्त एवं संकटग्रस्त प्रजाति गिद्धों कीे मौजूदगी वीटीआर में देखते हुए इसके संरक्षण के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। स्वीकृति पर इसके संरक्षण एवं संवर्द्धन पर का काम किया जाएगा।