Muzaffarpur News: गाय के गोबर के उत्पाद, मूर्तियों को दे रहे आकार
Muzaffarpur News औराई के चिकित्सक दंपती डॉ. शंकर रमण व डॉ. साधना कुमारी गाय के गोबर से बना रहे विविध उत्पाद। विभिन्न उत्पादों को बेचकर कर रहे महीने में 20-25 हजार तक की कमाई छह लोगों को दिया काम।
औराई (मुजफ्फरपुर), [शीतेश कुमार]। गाय के गोबर के उत्पाद, मूॢतयों को दे रहे आकार। कम पूंजी में भी अच्छा रोजगार। औराई प्रखंड के सरहंचिया निवासी होम्योपैथी चिकित्सक दंपती डॉ. शंकर रमण व डॉ. साधना कुमारी देसी गाय के गोबर से मूर्ति, गमला, धूपबत्ती, घनजीवामृत जैविक खाद व वर्मी कंपोस्ट जैसे उत्पाद बना रहे। मूल पेशे के साथ पिछले तीन साल से ये काम कर रहे हैं। इसमें उन्होंने छह लोगों को काम भी दिया है। उनके बनाए उत्पाद की अभी सीमित बिक्री हो रही है, फिर भी महीने में 20-25 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। लोग उनके आवास पर ही आकर उत्पाद की खरीद करते हैं।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के पोर्टल से मिली मदद
डॉ. शंकर बताते हैं कि गो विज्ञान की रुचि पहले से थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विभिन्न शाखाओं में भाग लेने का मौका मिला। वहां राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की जानकारी हुई। इसमें गो विज्ञान और गो उत्पाद के बारे में विस्तृत पढऩे-समझने का मौका मिला। आयोग के ऑनलाइन पोर्टल से सहूलियत हुई। इसमें विभिन्न उत्पाद बनाने के तौर-तरीके बताए गए।
गोबर के साथ मिट्टी व लकड़ी के बुरादे का इस्तेमाल
मूर्ति और गमला बनाने में 80 फीसद गोबर, 15 फीसद काली-पीली मिट्टी व पांच फीसद लकड़ी के बुरादे का इस्तेमाल किया जाता है। गोबर, लकड़ी का बुरादा, गाय का घी, धान की महीन भूसी के मिश्रण से धूपबत्ती तैयार होती है। जैविक खाद बनाने में गोबर के अलावा गोमूत्र, बेसन, गुड़ और तालाब या बरगद की जड़ की मिट्टी की जरूरत पड़ती है। लागत उत्पाद निर्माण की मात्रा पर निर्भर करती है।
अभी राधाकृष्ण व भगवान कृष्ण की मूॢतयां बनाई जा रही हैं। इन्हें सांचे में ढाला जाता है। एक मूर्ति बनाने में औसतन 40-50 रुपये का खर्च आता है, जबकि 100 से 200 तक में बिक्री हो जाती है।
देसी नस्ल को दे रहे बढ़ावा
डॉ. शंकर रमण बताते हैं कि तीन वर्षों से देसी नस्ल की गायों के संरक्षण एवं संवर्धन पर काम कर रहे। अभी चार गायें हैं। उनकी टीम किसानों को रासायनिक खाद की जगह वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करने के लिए भी प्रेरित कर रही है। गाय की देखरेख कर रहे प्रसाद राय व मार्केटिंग का कार्य देखने वाले सुरेश कुमार का कहना है कि पहले घर पर बेरोजगार थे। अब गांव के पास ही रोजगार मिल गया है।