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निगम के लिए बेकार साबित हुई सांसद निधि, किसी ने नहीं ली सुध

शहरी मतदाताओं ने तय किया भाग्य विकास पर सांसदों ने नहीं दिया ध्यान। 03 दशक और चार सांसद निगम को मिले दो ट्रैक्टर और 12 कूड़ेदान। किसी भी सांसद ने नहीं ली नगर निगम की सुध।

By Ajit KumarEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 05:46 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 05:46 PM (IST)
निगम के लिए बेकार साबित हुई सांसद निधि, किसी ने नहीं ली सुध
निगम के लिए बेकार साबित हुई सांसद निधि, किसी ने नहीं ली सुध

मुजफ्फरपुर [प्रमोद कुमार]। तीन दशक और चार सांसद, फिर भी नगर निगम क्षेत्र का भला नहीं। एमपी लैड नगर निगम के लिए बंजर ही साबित हुआ। निगम का भाग्य देखिए, तीन दशक में दो टै्रक्टर व 12 कूड़ेदान उसके हिस्से में इससे आया है। वह भी तब जब सांसदों का भाग्य शहरी मतदाताओं ने तय किया। बावजूद किसी भी सांसद ने निगम की सुध नहीं ली।

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 नगर निगम का गठन वर्ष 1981 में हुआ था। जार्ज फर्नांडिस 1980, 1989, 1991 और 2004, कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद वर्ष 1996, 1998, 1999 एवं 2009 में तथा अजय निषाद वर्ष 2014 में मुजफ्फरपुर से सांसद बने। वर्ष 1984 में एलपी शाही यहां से सांसद रहे।

 वर्ष 2004 में अन्य क्षेत्रों से हार चुके जॉर्ज को शहरी मतदाताओं ने संसद तक पहुंचाया। बावजूद उन्होंने अपने एमपी लैड से निगम को फूटी कौड़ी भी नहीं दी। यह बात 2004 की है, जार्ज कुढऩी से 4505, बोचहां से 23,038, मीनापुर से 10,063 और सकरा से 3821 वोट से पिछड़ चुके थे, ऐसे में मुजफ्फरपुर शहर ने 49,351 वोटों से बढ़त देकर उन्हें संसद पहुंचाया था।

 वर्ष 1984 में एलपी शाही भी यहां से सांसद रहे, लेकिन उन्होंने भी अपने कार्यकाल में नगर निगम को किसी प्रकार की मदद नहीं की। जहां तक कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद की बात करें तो यहां की जनता ने उन्हें चार बार संसद पहुंचाया। उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में निगम को दो टै्रक्टर एवं एक दर्जन कूड़ेदान के लिए नौ लाख रुपये दिए। पिछले चुनाव में सांसद बनने के बाद अजय निषाद ने भी निगम की कभी सुध नहीं ली।

पार्षदों से मदद लेने के बाद भी नहीं देते ध्यान

सामाजिक कार्यकर्ता संजय कुमार सिंह कहते हैं कि सांसद निगम बोर्ड के सदस्य होते हैं। इस नाते एमपी लैड से निगम की मदद करना उनका कर्तव्य बनता है, लेकिन सांसदों ने ऐसा नहीं किया। पूर्व पार्षद शीतल गुप्ता कहते हैं कि सांसदों को शहरी क्षेत्र से सर्वाधिक वोट मिलता है, बावजूद वे निगम की सुध नहीं लेते। न वे बैठकों में भाग लेते और न ही एमपी लैड से निगम की मदद करते हैं। सांसद लोकसभा चुनाव में पार्षदों से मदद तो मांगते हैं, लेकिन निगम को किसी प्रकार की सहायता नहीं करते। 


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