बिहार के इस व्यक्ति ने देश के लिए पानी में चलनेवाली साइकिल बनाई, लेकिन उनकी अपनी जिंदगी को ही नहीं मिला किनारा, आज यह है हाल
पानी पर चलने वाला रिक्शा बिना बिजली से चलने वाला पंखा जैसी नायाब चीजें बनाने का रिकॉर्ड एमडी सैदुल्लाह के खाते में दर्ज है। उन्होंने कई पुरस्कार भी हासिल किए। आज वे वक्त के हाथों मजबूर होकर साइकिल रिपेयरिंग व पंक्चर बनाने की दुकान चला रहे हैं।
पूर्वी चंपारण, [ धीरज श्रीवास्तव शानू ]। इनके प्रयोग लोगों को हतप्रभ कर देते थे। कभी तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने सैदुल्लाह द्वारा बनाए गए ट्रैक्टर को देखकर कहा था 'खेत देहम जोते के, गांधी मैदान मत जोत दिहअ'। पानी पर चलने वाला रिक्शा, बिना बिजली से चलने वाला पंखा जैसी नायाब चीजें बनाने का रिकॉर्ड एमडी सैदुल्लाह के खाते में दर्ज है। उन्होंने कई पुरस्कार भी हासिल किए। लेकिन, कहीं से भी उन्हें आर्थिक मदद नहीं मिली। आज वे वक्त के हाथों मजबूर होकर साइकिल रिपेयरिंग व पंक्चर बनाने की दुकान चला रहे हैं। पूर्वी चंपारण के जिला मुख्यालय मोतिहारी शहर से सटे बंजरिया प्रखंड के जटवा चौक पर फिलहाल साइकिल रिपेयरिंग की दुकान चला रहे सैदुल्लाह कहते हैं, किसी को बर्बाद करना हो तो उसे पुरस्कार थमा दीजिए। उनके साथ भी यही हुआ। लोगों की तारीफ व पुरस्कार तो खूब मिले, लेकिन किसी ने भी आर्थिक मदद नहीं की। राज्य व केंद्र की सरकारों से भी अबतक बस सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा है। ऐसे में जब परिवार चलाना ही मुश्किल है तब इनोवेशन के बारे में क्या सोचना?
राष्ट्रपति ने किया था पुरस्कृत
नई चीजें बनाने के लिए सैदुल्लाह कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके हैं। उनके द्वारा बनाए गए पानी पर चलने वाले रिक्शे की तारीफ तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी की थी। तब उन्होंने सैदुल्लाह को उनके इस अनूठे प्रयास के लिए पुरस्कृत भी किया था। सैदुल्लाह अपनी इस साइकिल पर सवार होकर पटना में गंगा नदी भी पार कर चुके हैं। उनके इस इनोवेशन को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल एआर किदवई ने भी देखा था व तारीफ की थी। हालांकि सैदुल्लाह का अब इन पुरस्कारों से कोई लगाव नहीं रह गया है। कहते हैं कि मुफलिसी में भी बचत के पैसे से कई चीजें बनाईं। लेकिन, पुरस्कारों के अलावा कहीं से भी आर्थिक मदद नहीं मिली। आर्थिक समस्या के कारण उन्होंने अब इस तरफ सोचना छोड़ दिया है। साइकिल रिपेयरिंग की दुकान से हुई कमाई से वो किसी तरह अपना व परिवार का गुजारा कर रहे हैं।
बुज़ुर्ग का जज़्बा
सैदुल्लाह ने अपनी पूरी ज़िंदगी इन्हीं इनोवेशन में खपा दी। मगर, उनको कहीं से आर्थिक मदद नहीं मिली। न ही उनके आविष्कारों का समाज की भलाई के लिए इस्तेमाल ही किया गया। यहां बता दें कि पूर्वी चंपारण का अधिकांश इलाका हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाता है। ऐसे में अगर सैदुल्लाह के बनाए गए पानी पर चलने वाली साइकिल व रिक्शा पर और शोध करके इसका वृहत पैमाने पर उत्पादन किया जाता तो बाढ़ प्रभावित लोगों को आवागमन में काफी राहत मिल सकती थी।
और फिर पानी पर दौड़ पड़ी थी साइकिल
अबतक तकरीबन सात दशक देख चुके सैदुल्लाह बताते हैं कि वर्ष 1975 में इसी तरह की एक बाढ़ के दौरान एक मल्लाह ने बिना पैसे लिए नाव में बैठाने से मना कर दिया। तभी से उन्होंने ठान लिया था कि वो इस बाढ़ से निपटने के लिए अपना ही कोई इंतज़ाम करके रहेंगे। काफी मशक्कत के बाद उन्हें पानी पर चलने वाली साइकिल व रिक्शा बनाने में सफलता हासिल की थी। यह एक ऐसी साइकिल थी जो पानी पर नाव की तरह तैर सकती थी। बस पैडल चलाइए और ये साइकिल आगे बढ़ती जाएगी। इसके लिए उन्होंने साइकिल के साथ चार खाली कनस्तर जोड़ दिए। जो इसे पानी के ऊपर रखते हैं। इसके अलावा साइकिल के पहियों के साथ दो पंखुड़ियां भी लगाईं जिनकी मदद से साइकिल उसी तरह आगे बढ़ती है जैसे कोई नाव चप्पुओं के सहारे आगे चलती है। उनकी इस साइकिल में खास बात यह है कि ये पानी में अपने पैडल के सहारे पीछे की तरफ़ भी चल सकती है।
अब तक मिले अवार्ड
सैदुल्लाह को अब तक इतने पुरस्कार मिल चुके हैं कि वो तो इनकी गिनती भी भूल चुके हैं। वर्ष 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रीय नवप्रवर्तन संस्थान यानी 'नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन' (एनआइएफ) की तरफ़ से 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट' पुरस्कार से नवाज़ा था। इसी साल सैदुल्लाह को 'वॉल स्ट्रीट जरनल' का 'एशियन इनोवेशन अवार्ड' भी मिला। इस प्रतियोगिता में उन्होंने 11 प्रतियोगियों के बीच बाज़ी मारी थी। सैदुल्लाह के बारे में डिस्कवरी चैनल के कार्यक्रम 'बियांड टुमॉरो' में भी बताया गया था।
एनआइएफ से भी मिला सिर्फ आश्वाशन
साइकिल-नाव से प्रभावित एनआइएफ़ ने पेटेंट कराने के लिए सैदुल्लाह से उनकी यह साइकिल वर्षों पहले ली थी। लेकिन, न तो उनको साइकिल ही वापस मिली और न ही पेटेंट। सैदुल्लाह कहते हैं कि एनआइएफ़ ने दिल तोड़ा है। उन्होंने अपने प्रचार के लिए मेरा इस्तेमाल किया। उनके दिल का दर्द उनके चेहरे पर ही नुमायां हो जाता है। सैदुल्लाह पूछते हैं, क्या कोई मुझे ये बता सकता है कि एनआइएफ़ ने कितने लोगों को बेवकूफ़ बनाया है या मेरी तरह के कितने लोगों को वो अब तक तबाह कर चुके हैं।
खोज का जुनून
उनके हालात हमेशा ऐसे नहीं रहे हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक उनके पिता को विरासत में कई एकड़ ज़मीन, बाग़, एक बड़ा घर और एक हाथी मिला था। लेकिन नई-नई चीज़ें ईजाद करने के लिए उन्होंने काफी पैसा खर्च कर दिया। हालात ऐसे हो गए कि बाद में सैदुल्लाह ने कई सालों तक आजीविका के लिए घूम घूम कर शहद बेचा।
सैदुल्लाह के इनोवेशन
सैदुल्लाह ने चाबी से चलने वाला पंखा, बिना ईंधन के चलने वाला पानी का पंप, कम ईंधन में चलने वाले ट्रैक्टर के साथ ही एक ऐसे पानी के पंप को भी ईजाद कर चुके हैं जो बिना किसी ईंधन के चल सकता है। सईद की खोजों में एक छोटा ट्रैक्टर भी शामिल है जो सिर्फ़ पांच लीटर डीज़ल में दो घंटे चल सकता है। सईदुल्लाह ने कभी यह दावा किया था कि एक हेलीकॉप्टर भी बना सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें तक़रीबन ढाई लाख रुपए की ज़रूरत होगी। इसके अलावा एक ऐसी कार बनाने की भी उनकी ख्वाहिश थी जो हवा से चल सके। हालांकि सैदुल्लाह अब इन चीजों को भूलना चाहते हैं। सरकार व लोगो की बेरुखी ने उन्हें इन चीजों के प्रति उदासीन कर दिया है।