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दरभंगा की यह डॉक्टर शिक्षा का दीप जलाकर पाट रहीं समाज में मौजूद असमानता व गरीबी की खाई

दरभंगा की स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक की कोशिश से लोगों के घरों में गूंज रही किलकारी। गरीबी को मात देकर बनीं चिकित्सक तो गरीबों के लिए माफ किया शुल्क। जिससे गरीबों में शिक्षा का प्रचार प्रसार हो रहा।

By Ajit KumarEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 08:54 AM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 05:17 PM (IST)
दरभंगा की यह डॉक्टर शिक्षा का दीप जलाकर पाट रहीं समाज में मौजूद असमानता व गरीबी की खाई
कोई मां पुत्री को जन्म देती है तो उनसे एक रुपया भी नहीं लिया जाता है।

दरभंगा, जेएनएन। बचपन गरीबी में गुजर गई। मोहल्ले में शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी। शिक्षा पाने के लिए बेटियों का घर के बाहर जाना अपराध माना जाता था। ऐसी स्थिति में दरभंगा शहर की बहू डॉ. रूही यासमीन ने गरीबी और सामाजिक बंधनों के बीच काफी संघर्ष किया। सफल हुई और आज महिलाओं की चिकित्सा करती हैं। ज्ञायनिक चिकित्सक बनने के बाद रूही ने बच्चों के सुख से वंचित दंपतियों के घर में खुशियां दी। जिन्हें देखकर लोग घर के दरवाजे और खिड़कियां बंद कर लेते थे। उसके घरों में रूही के प्रयास से बच्चों की किलकारी गूंज रही है।

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महावत टोली की रूही ने मिथिला में बनाई पहचान

बेतिया के महावत टोली में जन्म लेने वाली रूही यासमीन सात भाई-बहनों में छठे स्थान पर थी। पिता मिसबाहूल हक छोटा से एक जेनरल स्टोर की दुकान चलाते थे। ऐसी स्थिति में परिवार चलाना मुश्किल था। भाई पास के सरकारी स्कूल तो जाता था, लेकिन बहनों को घर में ही शिक्षा दी जाती थी। ऐसी स्थिति में रूही ने स्कूल जाने की जिद की तो पास के ही संत टेरेसा स्कूल में उसने पांचवीं वर्ग के लिए टेस्ट दिया। उसमें वह टॉप कर गई।

स्कूल संचालक के लिए आइकॉन

अपनी मेहनत के बदौलत स्कूल संचालक के लिए आइकॉन बन गई। लेकिन, कुछ वर्षों के बाद पिता आगे की पढ़ाई के लिए तैयार नहीं हुए। आर्थिक तंगी ने रूही को स्कूल जाने से बंद कर दिया। हालांकि, जब इसकी जानकारी स्कूल संचालक को मिली तो घर पहुंच गए। रूही के प्रतिभा को निखारने की सलाह दी और पूरी पढ़ाई करने के लिए दबाव दिया। इसमे बड़े भाई अनवर ने मदद की। इसके बाद 12वीं तक पढ़ाई पूरी की। सपना कुछ बनने का था, सामाज और बेटियों के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी। ऐसी स्थिति में वह पटना जाकर तैयारी की। रुपये नहीं थे, ऐसी स्थिति में वह कंकड़बाग मोहल्ला से पैदल रोजाना महेंदरूघाट पढऩे के लिए पैदल जाती थी। मेडिकल की तैयारी उसके जीवन में रंग भर दिया। मुजफ्फरपुर एसकेएमसीएच में नामांकन हुआ। एमबीबीएस किया।

मुख्यमंत्री ने दिया बिहार श्री अवार्ड

वर्ष 2008 में पटना मेडिकल कॉलेज से पीजी की और वह बिहार टॉपर बनी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार श्री अवार्ड देकर सम्मानित किया। उन्होंने अपने कॅरियर को गायनीक के रूप में चुना। लेकिन, उनके अंदर कुछ अलग हटकर करने की ललक थी। जिस समाज में उसने दर्द को सहा और देखा उन पीडि़त महिलाओं के लिए मरहम बनने लिए विदेश गई। एक वर्ष का कोर्स किया। वापस हुईं। दरभंगा के लहेरियासराय स्थित दारूभट्टी चौक के डॉ. सलीम अहमद से शादी हुई। पति का साथ मिला और उत्तर बिहार का पहला टेस्ट ट््यूब बेबी सेंटर खोला। बताती हैं कि जिस बांझ महिलाओं से लोग नफरत करते हैं उसके सुनी गोद को भरना मेरा सपना था। आईवीएफ तकनीक को समाज के ठेकेदार नहीं मानते हैं बावजूद, हिम्मत की। पहला केस कामयाब रहा। इसके बाद तो वहीं कभी रूही कभी रूकी नहीं। सैकड़ों मां की सूनी गोद को उसने भरने का काम किया।

गरीब महिलाओं को खास सुविधा

मां बनने के सपने को साकार करने के लिए डॉ. रुही अपने सेंटर में गरीब महिलाओं को निश्शुल्क सेवा देती हैं। पांच से सात महिलाओं के समूह में एक गरीब महिलाएं शामिल रहती है। जिसके पास रुपये तो नहीं होते लेकिन, मां बनने की इच्छाएं जरूरी होती है। ऐसी महिलाओं को खुशी देकर रूही काफी सुकून पाती है।

बेटी जनने पर फीस माफ

कहती है डॉ. रूही आज भी पुत्री जनने पर समाज के लोग खुश नहीं होते हैं। उसे खर्च का बोझ मानते हैं। ऐसी स्थिति में उनके संस्थान में अगर कोई मां पुत्री को जन्म देती है तो उनसे एक रुपया भी नहीं लिया जाता है। यही कारण है कि आज उनके सूनी गोद को भरने के लिए काफी दूर-दूर से महिलाएं आती है।  


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