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लॉकडाउन व मौसम की दोहरी मार में भी रखा हौसला, इन महिलाओं ने लिखी कृषि क्रांति की नई गाथा

लॉकडाउन में बंद काम शुरू हुआ तो कुछ महिलाओं ने कुछ दिनों में ही फसल की कटाई कर उसे मौसम की मार से बचा लिया। बिहार के मधुबनी में ये महिलाएं कृषि क्रांति की गाथा लिख रहीं हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Sat, 23 May 2020 12:08 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 11:46 PM (IST)
लॉकडाउन व मौसम की दोहरी मार में भी रखा हौसला, इन महिलाओं ने लिखी कृषि क्रांति की नई गाथा
लॉकडाउन व मौसम की दोहरी मार में भी रखा हौसला, इन महिलाओं ने लिखी कृषि क्रांति की नई गाथा

मधुबनी, प्रेम शंकर मिश्रा। एक तरफ लॉकडाउन (Lockdown) में मजदूरों की कमी, ऊपर से बेमौसम आंधी-पानी व ओलाव़ृष्टि की समस्या। इस दोहरी मार से पूरे राज्य में किसान परेशान हैं, लेकिन मधुबनी जिले के खजौली प्रखंड में ऐसा नहीं है। वहां की पांच दर्जन महिला किसानों (Women Farmers) ने अपने हौसले के बल पर बता दिया है कि कोई भी काम मुश्किल नहीं। स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) से जुड़ीं इन महिलाओं ने खेतों में उतरकर कृषि यंत्र चला कामयाबी व कृषि क्रांति की नई गाथा लिख डाली है। अपने बल पर उन्होंने फसल को बर्बाद होने से बचा लिया है। आगे वे खरीफ फसल के लिए भी तैयार हैं।

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कृषि कार्य की छूट मिलते ही खेतों में उतरीं महिलाएं

खजौली की इन महिला किसानों की सफलता की कहानी की शुरुआत एक साल पहले हुई थी। स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं इन महिलाओं ने खेतीबाड़ी के तौर-तरीकों को सीखा व समझा। उन्होंने कृषि यंत्रों को चलाने के गुर सीखे। जैसे ही लॉकडाउन 2 में कृषि कार्य की छूट मिली, खेतों में उतर गईं।

मौसम खराब होने के पहले पूरी की फसल की कटाई

उन्होंने समूह से जुड़े 261 लोगों के सौ एकड़ खेतों की कटनी शारीरिक दूरी का पालन करते हुए महज नौ दिनों में कर दी। जबकि, सामान्य तौर पर इसमें 16 से 20 दिन लगते। उन्‍होंने यह काम कृषि के आधुनिक यंत्रों के सहारे किया। इससे समय की बचत हुई। साथ ही जब तक मौसम खराब होता, कटनी (फसल की कटाई) पूरी हो चुकी थी।

कृषि यंत्रों को चलाना सीख कर रहीं बेहतर इस्तेमाल

महिला किसानों के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी सुक्की गांव की गौरी देवी कहती हैं, ''हाथ से कटनी में समय व मेहनत अधिक लगता था। अब मशीन से मेहनत कम लग रही और काम भी ज्यादा हो रहा है।'' इसी गांव की अमेरिका देवी और दौलत देवी ने इससे पहले रीपर बाइंडर या ब्रश कटर से काम नहीं किया था। अब ये कृषि यंत्र उनके लिए कचिया (हंसिया) के समान हो गए हैं। वे इनका बेहतर इस्तेमाल कर रही हैं।

मशीन से धान रोपनी सीख अब खरीफ के लिए तैयार

पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहीं महिलाएं अब खरीफ फसल के लिए भी तैयार हैं। धान रोपने की मशीन (पैडी ट्रांसप्लांटर) चलाना सीख चुकी हैं। समूह की अधिक से अधिक महिलाएं इसे चलाना सीखना चाहती हैं, क्योंकि मधुबनी में धान ही मुख्य फसल है। मशीन का उपयोग कर महिलाएं हाथ से धान रोपने में लगने वाला अधिक समय में बड़ी बचत कर सकेंगी।

महिलाओं ने रखी ग्रामीण क्षेत्र में कृषि क्रांति की नींव

इन महिलाओं को सहयोग करने वाले हेम नारायण हिमांशु कहते हैं कि मशीन से कटाई के कारण कम संख्या में महिलाएं खेतों में गईं। इससे शारीरिक दूरी का पालन हुआ। कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं रहा। इन महिलाओं ने ग्रामीण क्षेत्र में नई कृषि क्रांति की नींव रख दी है। खजौली प्रखंड की 261 महिलाएं अभी कृषि यंत्रों से काम करना सीख चुकी हैं। एक-दो सीजन में जिले में यह संख्या हजारों में हो जाएगी।

जीविका के माध्यम से कृषि यंत्र चलाने का प्रशिक्षण

जीविका की डीपीएम (डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट मैनेजर) ऋचा गार्गी कहती हैं कि करीब 80 लाख रुपये के 21 कृषि उपकरण खरीदे गए हैं। इन्हें चलाने का प्रशिक्षण जीविका के माध्यम से महिलाओं को दिया जा रहा है। कुछ वर्षों बाद मजदूरों के कारण खेती का काम नहीं रुकेगा।

कृषि विभाग सहायता व प्रोत्साहन देने को तैयार

मधुबनी के जिला कृषि पदाधिकारी सुधीर कुमार कहते हैं कि खजौली की ये महिलाएं महिला सशक्तीकरण का उदाहरण हैं। कृषि विभाग उन्हें हर तरह से प्रोत्साहन देने के लिए तैयार है। 10 लाख रुपये तक के कृषि यंत्रों की खरीद पर 80 फीसद सब्सिडी दी जाती है। अगर वे इन यंत्रों का बेहतर इस्तेमाल करना सीख गईं तो उन्हें भी इस योजना का लाभ दिया जाएगा।


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