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बिहार में देसी नस्ल की गायों को बचाने के लिए मुहिम, किए जा रहे ये उपाय

सुधा डेयरी के माध्यम से होना है फ्री सीमेन का वितरण। भारतीय देसी नस्ल की गायों के संरक्षण-संवर्धन के लिए सरकार ने वर्ष 2014 में राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत की। वहीं एनएआईपी नैप-1 कार्यक्रम के तहत देसी नस्ल के गायों के लिए फ्री सीमेन का वितरण आरम्भ किया गया।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 20 Dec 2020 08:35 AM (IST)Updated: Sun, 20 Dec 2020 08:35 AM (IST)
बिहार में देसी नस्ल की गायों को बचाने के लिए मुहिम, किए जा रहे ये उपाय
वर्तमान में नैप-2 कार्यक्रम सुधा डेयरी के माध्यम से चलाया जा रहा है। फाइल फोटो

पूर्वी चंपारण, जासं। देसी गायें उपेक्षित हो रही हैं। वहीं विदेशी नस्ल की जर्सी गाय के प्रति लोगों का आकर्षण बढा है। सरकार भी इस बात से बखूबी वाकिफ है। यही वजह है कि सरकार ने देश में श्वेत क्रांति लाने और दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में पहल शुरू की है। भारतीय देसी नस्ल की गायों के संरक्षण-संवर्धन के लिए सरकार ने वर्ष 2014 में राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत की। वहीं एनएआईपी नैप-1 कार्यक्रम के तहत देसी नस्ल के गायों के लिए फ्री सीमेन का वितरण आरम्भ किया गया। इससे देसी नस्ल के गायों का संवर्धन हो सके। वर्तमान में नैप-2 कार्यक्रम सुधा डेयरी के माध्यम से चलाया जा रहा है। परंतु पशुपालकों तक यह योजना नहीं पहुंचने से श्वेत क्रांति के नारों के बीच सरकार की देसी नस्ल की गायों की संवर्धन की मंशा गुम हो गई है। 

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प्रखंड पशु अस्पताल के प्रभारी डॉ.रिशु कुमार ने बताया कि प्रखंड में दस हजार मवेशियों में 5500 गाय व 4500 भैंस हैं। जिसमें करीब दो हजार क्रॉस कराई गई देसी गाय है। बताया कि नैप योजना के तहत फ्री सीमेन वितरण की योजना किसी प्राइवेट दुग्ध उत्पादन कंपनी को दिया गया है। बताया जाता है कि इन प्रजातियों की देसी नस्ल की गायें विलुप्त हो रही हैं। कई संस्था से जुड़े लोग बताते हैं कि गीर प्रजाति की गायों की संख्या अपने देश में मात्र 35 हजार हैं। इसी तरह अन्य प्रजातियों की गायों की संख्या भी घटती जा रही है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो देसी प्रजाति की गायें ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेंगी।

दूध में कई बीमारी से लड़ने की क्षमता

डॉ.रिशु कुमार ने बताया कि इन देसी गायों के दूध में अल्फा केसिन नामक प्रोटीन पाया जाता है। इस दूध को ए-2 कहा जाता है। हाल के वर्षो में दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने भी अपने अनुसंधान में पाया है कि ए-2 दूध सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसमें न केवल कैंसर सहित अन्य बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, बल्कि यह बच्चों को कुपोषण से भी बचाता है। इसके अलावा इस नस्ल की गायों को अपने वातावरण में आसानी से पाला जा सकता है। ये बीमार भी कम पड़ती हैं।

विदेशों में बढ़ी मांग

भारतीय नस्ल की देसी गायों की मांग विदेश में बढ़ रही है। ब्राजील, अर्जेटीना सहित कई अन्य देशों में भारत से यहां की देसी गायों को ले जाया जा रहा है। विदेश में भारतीय नस्ल की गायों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन अपने यहां घट रही है।

बढ़ेंगे रोजगार के अवसर

देसी गायों के संरक्षण और संवर्धन से रोजगार के काफी अवसर पैदा होंगे। साथ ही किसानों के लिए आय का एक नया स्रोत सृजित होगा। देसी नस्ल की गायों पर आधारित किसानों में आर्थिक आत्मनिर्भरता एवं खुशहाली लाएगी। ए-2 दूध के प्रति जागरूकता बढ़ाकर व देसी गायों के पालन को बढ़ावा देकर श्वेत क्रांति की शुरुआत की जा सकती है। 


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