Hinglish से कोई खास नुकसान नहीं लेकिन, हिंदी मूल स्वरूप में ही खूबसूरत, जानिए विद्वानों की चिंताएं
इग्नू के समकुलपति डॉ.सत्यकाम ने कहा कि हिंदी को बचाने के लिए अंग्रेजी के उन्हीं शब्द का प्रयोग होना चाहिए जिसका कोई विकल्प हमारे सामने नहीं हो। हर भाषा की अपनी प्रवृति होती है।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। बीआरए बिहार विवि के हिंदी विभाग की राष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल होने आए देश के सुविख्यात साहित्यकारों ने हिंदी लेखन में Hinglish के धड़ल्ले से हो रहे प्रयोग पर चिंता जताई है। दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि इससे हिंदी को नुकसान नहीं है। लेकिन यह चिंता का विषय जरूर है।
हिंदी की प्रकृति हो रही विखंडित
हिंग्लिश के प्रयोग पर इग्नू के समकुलपति डॉ.सत्यकाम ने कहा कि हिंदी को बचाने के लिए अंग्रेजी के उन्हीं शब्द का प्रयोग होना चाहिए जिसका कोई विकल्प हमारे सामने नहीं हो। हर भाषा की अपनी प्रवृति होती है। लेकिन हिंग्लिश हिंदी की प्रकृति को विखंडित कर रही है। अंग्रेजी व हिंदी की संरचना अलग-अलग है। उसको समझने की जरूरत है। हिंदी की रचना में अंग्रेजी को ठूंसना वैसा ही है जैसे किसी व्यक्ति को शरीर के हिसाब से कपड़ा नहीं पहनाना।
हिंदी को हिंदी की तरह लिखें
पद्मश्री उषा किरण खान ने कहा कि हिंग्लिश से हिंदी को नुकसान हो रहा है। इसलिए हिंदी का हिंदी की तरह की लिखा जाए। हिंदी में जो शब्द आत्मसात है जैसे टेबल, स्टेशन आदि का प्रयोग ही हिंदी लेखन में हो। लेखन में हिंग्लिश से बचने की जरूरत है। नई पीढ़ी को इसके प्रति प्रेरित करने की जरूरत है कि हमारी हिंदी बहुत ही समृद्ध है तथा इसको आम आदमी बेहतर तरीके से समझता है। अंग्रेजी तथा हिंदी को अलग-अलग पढ़े तथा लेखन में अलग-अलग प्रयोग हो।
हिंदी में रोजगार के बेहतर अवसर
अंतरराष्ट्रीय हिंदी शिक्षण संस्थान व केंद्रीय हिंदी शिक्षण संस्थान आगरा के विभागाध्यक्ष प्रो.उमापति दीक्षित ने कहा कि इन दिनों लेखन में हो रहा हिंग्लिश का प्रयोग चिंता का विषय है लेकिन, उससे कोई नुकसान नहीं है। उनके संस्थान में फिलहाल 28 देश के 72 बच्चे हिंदी सीख रहे हैं। हिंदी जानने वालों को देश ही नहीं विदेश में बेहतर रोजगार मिल रहा। खासकर दो भाषिया के लिए। राजदूतावास व अन्य जगह पर। हिंग्लिश रीमिक्स गीत की तरह है।