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बिहार का एक गांव ऐसा भी, जहां महिलाएं बच्चों को लोरियों की जगह सुनाती हैं देशभक्ति के तराने

पूर्वी चंपारण स्थित बंधुबरवा गांव के हर परिवार से एक युवा भारतीय सेना में। बच्चों के जन्म के साथ ही मां-बाप की आंखों में उन्हें सेना में भेजने के पलने लगते ख्वाब।

By Murari KumarEdited By: Published: Tue, 18 Aug 2020 03:16 PM (IST)Updated: Wed, 19 Aug 2020 09:39 AM (IST)
बिहार का एक गांव ऐसा भी, जहां महिलाएं बच्चों को लोरियों की जगह सुनाती हैं देशभक्ति के तराने
बिहार का एक गांव ऐसा भी, जहां महिलाएं बच्चों को लोरियों की जगह सुनाती हैं देशभक्ति के तराने

पूर्वी चंपारण [धीरज कुमार शानू]। आज के अधिकतर अभिभावकों की ख्वाहिश होती है कि उनका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बनकर अधिक से अधिक धनार्जन करे। अपने और परिवार के लिए सुख और सुविधाओं का संसाधन जुटाए। लेकिन, पूर्वी चंपारण में एक ऐसा गांव है जो इसका अपवाद है। यहां के अभिभावकों की सोच जरा अलग है। बच्चे के जन्म के साथ ही मां-बाप की आंखों में उसे सेना में भेजने के ख्वाब पलने लगते हैं।

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लोरियों की जगह देशभक्ति के तराने गूंजते हैं। 

 हम बात कर रहे हैं पूर्वी चंपारण जिले के बंधुबरवा गांव की। नेपाल की सीमा से सटे रामगढ़वा प्रखंड स्थित इस गांव के युवाओं में बचपन से ही देश के लिए कुछ करने का जज्बा रहता है। इस गांव के तकरीबन हर घर में भारतीय सेना का एक जवान हैं। यहां की हर मां की चाहत होती है कि उसका लाल देश के काम आए। गांव के करीब 300 से ज्यादा युवा भारतीय सेना में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। गांव का संपूर्ण ताना-बाना भारतीय सेना पर निर्भर है। 

 भौगोलिक रूप से यह गांव तीन भागों में बंटा है। बंधु बरवा पूर्वी, पश्चिमी व मध्य। चार हजार से ज्यादा की आबादी वाले इस गांव के 250 से ज्यादा घरों के लाल देश की अलग-अलग सीमाओं पर तैनात हैं। यहां के युवा सेना की नौकरी को ज्यादा तरजीह देते हैं। यही कारण है कि सुबह से लेकर शाम तक सेना भर्ती की तैयारी कर रहे युवा सहज देखे जा सकते हैं। उनका जोश देखते ही बनता है। आसपास के ग्रामीण भी इस गांव को देशभक्ति के लिए उदाहरण के रूप में पेश करते हैं।

कण-कण में देशभक्ति का जज्बा

लोगों का मानना है कि अगर बंधुबरवा जैसे और कई गांव होते तो आज भारत और मजबूत होता। इसी गांव के निवासी हैं अर्जुन भारतीय। वे विदेश विभाग में हिंदी सलाहकार और जेपी सेनानी भी रह चुके हैं। बताते हैं, गांव का इतिहास आजादी की लड़ाई से भी जुड़ा हुआ है। नमक आंदोलन के दौरान गांव के लोगों की सक्रिय सहभागिता इसमें थी। देशभक्ति का जज्बा इस गांव की मिट्टी के हर एक कण में है। यही कारण है कि सेना के सभी विंग थल सेना, वायु सेना व नौ सेना में यहां के सपूत अपनी सेवाएं दे रहे।

व्यायाम से होती दिन की शुरुआत 

बंधुबरवा गांव के युवा दिन की शुरुआत व्यायाम से करते हैं। पौ फटने से पहले ही युवा बिछावन छोड़कर गांव के समीप स्थित एक मैदान में पहुंच जाते हैं। वे यहां दौड़ लगाने के साथ ही ऊंची कूद का अभ्यास करते हैं। कोई सूर्य नमस्कार तो कोई योग, प्राणायाम व अन्य प्रकार के व्यायाम करते नजर आते हैं। आर्मी में भर्ती के लिए दौड़ लगा रहे  अमन कुमार, सुमित कुमार, प्रकाश कुमार, राजा कुमार नसरुद्दीन गद्दी, छोटू कुमार और पम्मू कुमार ने बताया कि वे हर दिन अभ्यास करते हैं। उनके दिल में हर हाल में सैनिक बनकर देश की सेवा का जज्बा है। तमन्ना है कि वे भी अपने गांव के इतिहास को बरकरार रखते हुए एक सैनिक के रूप में देश की सेवा करें।

शहादत देने में भी रहते हैं आगे 

बंधुबरवा गांव के कई युद्ध वीर अलग-अलग मौकों पर अपनी शहादत भी देते रहे हैं। कारगिल युद्ध खत्म हुए कुछ दिन ही हुए थे कि दुश्मन द्वारा पोषित आतंकियों ने कश्मीर में फिर से हिंसा शुरू कर दी। तब इससे लोहा लेने के क्रम में गांव के आलोक कुमार पांडेय व अजय कुमार ने अपनी शहादत दी थी। दोनों ही शहीद अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते थे। आलोक जहां पूर्व विधायक पंडित राधा पांडेय के पौत्र थे तो अजय के दादा जी भी कभी सोशलिस्ट पार्टी से विधायक रह चुके थे। यहां के लाल सेवानिवृत्त सूबेदार यशवंत  ने भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को दिल्ली के लाल किले पर 15 अगस्त, 2002 को आयोजित परेड की सलामी के लिए सजी जीप पर घुमाया था।

दुश्मन से दो-दो हाथ करने को हैं तैयार 

आर्मी बहाली के लिए दिन रात पसीना बहा रहे अमन बताते हैं कि दूसरी कोई नौकरी के बारे में कभी सोचा ही नहीं। एक ही सपना है भारतीय सेना की वर्दी। सुमित बताते हैं कि जब तक लक्ष्य हासिल न कर लें प्रैक्टिस करता रहूंगा। बचपन से ही मेरा सपना है कि भारतीय सेना में जाकर देश की सीमाओं की रक्षा करें। गांव से सटे सिंहासिनी देवी स्थान है। यह बिहार, नेपाल व उत्तर प्रदेश समेत कई प्रदेश के लोगों के आस्था का केंद्र है। यहां के लोगों का विश्वास है कि माता की कृपा से ही गांव को यह प्रसिद्धि मिली है ।


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