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सैकड़ों गौरैया की चहचहाहट से गूंजता इनका घर-आंगन, बड़े जतन से प्रजाति को बचाने में ये लगे

मोतिहारी के एक आंगन में तकरीबन तीन सौ गौरैयों का बसेरा है। यह परिवार पूरी शिद्दत से इनकी देखभाल करता है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Tue, 25 Aug 2020 01:53 PM (IST)Updated: Tue, 25 Aug 2020 01:53 PM (IST)
सैकड़ों गौरैया की चहचहाहट से गूंजता इनका घर-आंगन, बड़े जतन से प्रजाति को बचाने में ये लगे
सैकड़ों गौरैया की चहचहाहट से गूंजता इनका घर-आंगन, बड़े जतन से प्रजाति को बचाने में ये लगे

पूर्वी चंपारण, [शशिभूषण कुमार]। ग्लोबल वार्मिंग, बढ़ते प्रदूषण का कुप्रभाव पशु-पक्षियों पर भी व्यापक रूप से पड़ रहा और उनकी कई प्रजातियां शनै:-शनै: विलुप्त होती जा रहीं। इन्हीं में एक गौरैया भी है। कुछ दशक पहले तक घर-आंगन में फुदकती दिखने वाली गौरैया अब यदा-कदा ही नजर आती हैं। लेकिन पूर्वी चंपारण के जिला मुख्यालय मोतिहारी स्थित शांतिपुरी मोहल्ले में एक परिवार ऐसा है जो डेढ़ दशक से इन गौरैया को बड़े जतन से संभालने में जुटा हुआ है। यहां रागिब और रिजवान आजम का आवासीय परिसर सैकड़ों गौरैया की चहचहाहट से गूंजता रहता है।

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अम्मी की नसीहत पर अमल कर रहे

रागिब और रिजवान आजम की अम्मी मासूमा बानो को पर्यावरण से बड़ा प्रेम था। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझा और ताउम्र उसपर अमल किया। डेढ़ दशक पहले उनके आंगन में नींबू के एक पौधे पर गौरैया का आना शुरू हुआ था। वे उन्हें दाना-पानी देने लगीं और देखते ही देखते गौरैया की संख्या बढऩे लगी। मासूमा बानो का अब निधन हो चुका है। लेकिन उन्होंने अपने पुत्रों को ताकीद कर दी थी कि यह पेड़ इन गौरैयों के नाम है। इनके लिए दाना- पानी रखने की परंपरा कायम रखना। रागिब और उनकी पत्नी फरहाना करीम तथा रिजवान और उनकी पत्नी अजमत परवीन पूरी शिद्दत से उसपर अमल कर रहे हैं।

एक साथ दिखतीं तीन सौ से ज्यादा गौरैया

नींबू के इस पेड़ पर आज भी तीन सौ से ज्यादा गौरैया एक साथ दिख जाती हैं। गोरैया की चहचहाहट सुबह से ही कानों में गूंजने लगती है। इन्हें ये दाना देते हैं। दाना मिलने में देर होने पर गौरैया घर के अंदर कमरों तक पहुंच जाती हैं और अपनी आवाज से भूख का एहसास कराती हैं। तब घर का कोई सदस्य इन्हेंं दाना डालने पहुंच जाता हैं। इन गोरैयों की देखभाल में इनका काफी वक्त बीतता हैं।

गौरैया के दाना-पानी के साथ स्नान की भी व्यवस्था

रिजवान बताते है कि गैरैया के भोजन पर साल में चार क्विंटल धान, एक क्विंटल चावल व कौनी (गौरैया का दाना) की व्यवस्था होती है। वहीं उनके पीने के लिए साफ पानी व नहाने के लिए टब की व्यवस्था हैं। प्रतिदिन टब में जमा नहाने का पानी भी बदला जाता है। इसका पूरा ख्याल रखा जाता है कि उन्हेंं दाना-पानी की कमी न हो।

परिवार के सभी सदस्यों का संरक्षण में योगदान

इन गौरैयों की देखभाल में परिवार के अन्य सदस्य साजिद रजा व सोनी रहमान सहित बच्चे इरफान आजम, अफाक आजम, हमाद आजम, आफिया रिजवान, आलिया हबीब भी हाथ बंटाते हैं। भोजन के लिए लगे कटया (मिट्टी के बर्तन) में दाना अथवा पानी कम दिखते ही बारी-बारी से उसे भरने का काम ये करते हैं। बच्चों की दिनचर्या में यह कार्य शामिल हो गया है। पशु-पक्षी विशेषज्ञ डॉ. नरेंद्र कुमार कहते हैं कि इतनी बड़ी तादाद में शहर के एक आंगन में गौरैया हैं, यह शुभ संकेत है। इस प्रजाति के संरक्षण के लिए ऐसे ही काम होने चाहिए। होने चाहिए।


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