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बगहा के नहरों के माइनरों की 'चोरी', कैसे उपजे गेहूं और तोरी

अनुमंडल की पइनों के पक्कीकरण कार्य पर 50 लाख रुपये से अधिक खर्च हुए। इसके बावजूद पक्की पइनों की चोरी हो गई। दरअसल किसानों ने ही पइनों को काटकर खेत बना लिया। अब पांच दर्जन से अधिक पइनों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 11:37 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 11:37 AM (IST)
बगहा के नहरों के माइनरों की 'चोरी', कैसे उपजे गेहूं और तोरी
समय से नहरों में नहीं छो़ड़ा जाता पानी, प्यासे रह जाते खेत। फाइल फोटो

बगहा, जासं। बगहा दो प्रखंड की बेलहवा मदनपुर पंचायत। करीब पांच साल पूर्व तक त्रिवेणी नहर के माइनरों से 100 एकड़ से अधिक जमीन पर पानी पहुंचता था। बीते कुछ वर्षों में विभागीय उदासीनता का काला साया पड़ा तो चोर सक्रिय हो गए। 15 से 30 फीट की चौड़ाई वाली पइनों का अस्तित्व मिट गया। कुछ यहीं हाल बकुली पंचगांवा, खरहट त्रिभौनी, बैरागी सोनवर्षा समेत करीब करीब सभी पंचायतों का है। खेतों तक नहरों का पानी पहुंचाने के लिए माइनरों की स्थापना की गई। इन माइनरों से निकले पइन खेत तक पहुंचते। सरकार ने बीते एक दशक में पइनों पर बढ़ते अतिक्रमण को देखते हुए सिंचाई विभाग के माध्यम से इनका पक्कीकरण कराया। अनुमंडल की पइनों के पक्कीकरण कार्य पर 50 लाख रुपये से अधिक खर्च हुए। इसके बावजूद पक्की पइनों की चोरी हो गई।

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दरअसल, किसानों ने ही पइनों को काटकर खेत बना लिया। अब, पांच दर्जन से अधिक पइनों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। ऐसी स्थिति में नहर लबालब भरे हैं, लेकिन खेतों में पानी की एक बूंद तक नहीं है। अधिकांश खेतों की नमी धीरे-धीरे गायब हो जाती और किसान अपनी किस्मत को कोसते। जागरूकता के अभाव और अभियंताओं की उदासीनता के कारण ऐसी स्थितियां उत्पन्न हुईं हैं। चुनौती अभियंताओं के लिए कि गायब पइनों की खोजबीन कर उन्हें पुनर्जीवित करना। चुनौती किसानों के लिए सिंचाई की समस्या से पार पाना। देखना होगा, इस मुद्दे पर अधिकारी कितने सजग होते।

25 दिसंबर को छोड़ा गया पानी, खेत सूखे

25 दिसंबर को त्रिवेणी नहर में करीब 600 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। ताकि किसानों की रबी फसलों की सिंचाई हो सके। पर, अधिकांश खेत सूखे पड़े हैं। अधिकांश माइनर गायब हो गए हैं, जो बचे हैं उनकी साफ-सफाई की हालत ठीक नहीं है। नतीजा सिंचाई का पानी आगे नहीं बढ़ पाता। दूसरी ओर, जिस खेत तक पहुंचता, उसमें जलजमाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती। जिसके कारण फसलों की क्षति होती है। यह समस्या तिरहुत, त्रिवेणी व दोन नहर से सिंचाई की व्यवस्था के साथ बरकरार है। बगहा एक, बगहा दो व रामनगर की कहानी एक ही सी लगती है।

तीन वर्षों तक सिंचाई के लिए नहीं मिला था पानी

करीब आठ साल पहले नहरों के पुनर्स्थापन का कार्य हुआ था। इस क्रम में तीन वर्षों तक नहरों का पानी बंद रहा। इधर मौका देखकर कई लोगों ने पइनों को अपने खेत का रकबा बढ़ाने के लिए काटकर मिला लिया। जिसके कारण कुछ सालों से इससे सिंचाई का लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। वहीं विभाग की अनदेखी के कारण भी यह समस्या ज्यादा बढ़ी है।सिलवटिया के किसान गिरेन्द्र दूबे कहते हैं कि कई माइनरों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। इस कारण सिंचाई संभव नहीं हो पा रही। किसान ही दूसरे किसानों का पानी को बंद कर रहा है। जिसमें विभाग की अनदेखी भी है। मुजरा के विनोद प्रसाद का कहना है कि रख रखाव एवं सफाई से माइनरों को ठीक किया जा सकता है। वैसे विभाग को इनकी पैमाइश कराकर इनका जीर्णोद्धार कराना चाहिए। त्रिवेणी नहर के कनीय अभियंता चंदन कुमार ने कहा किमाइनरों की साफ सफाई का कार्य मनरेगा से हो रहा है। अगर कहीं माइनर गायब हुए हैं तो किसान इसकी लिखित जानकारी दें, त्वरित कार्रवाई होगी। सभी माइनरों का भी जीर्णोद्धार कराया जाएगा। 


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