चित्र व अक्षर से निकलकर वीडियो पर आ गई कल्पना की दुनिया, जानिए क्या है बड़ा कारण
Muzaffarpur News सूचना क्रांति के दौर ने कॉमिक्स की दुनिया को पूरी तरह कर दिया समाप्त। कॉमिक्स की जगह अब कार्टून चैनल्स और वीडियो गेम का क्रेज। डिजिटाइजेशन ने कॉमिक्स के रूप में चित्र व शब्दों की दुनिया को पूरी तरह समाप्त कर दिया। जानिए वजह..
मुजफ्फरपुर [प्रेम शंकर मिश्रा]। अगर आपकी उम्र 40 से 50 के बीच की है तो खुद को थोड़ा पीछे ले जाएं। 1980 से 90 के दशक में। स्कूली किताब में छुपाकर कॉमिक्स लाना। एक दिन का किराया 50 पैसा। बमुश्किल मिलने वाली नई सीरीज की कॉमिक्स के लिए एक रुपये प्रतिदिन। घर लाकर भी मां व बाबूजी से छुपाकर पढऩा। मगर, वर्ष 2000 आते-आते ये चीजें लुप्त होने लगीं। टीवी ने माहौल ही बदल दिया। पात्र बदलने लगे।
दूरदर्शन पर धार्मिक धारावाहिक के बाद मोगली की दुनिया, शक्तिमान, स्पाइडरमैन आदि चाचा चौधरी, नागराज, अंगारा जैसे पात्रों को दूर करने लगे। नतीजा लाखों की संख्या में बिकने वाली कॉमिक्स हजारों में सिमट गई। फिर आया सूचना क्रांति का दौर। डिजिटाइजेशन ने कॉमिक्स के रूप में चित्र व शब्दों की दुनिया को पूरी तरह समाप्त कर दिया। वह भी अब मोबाइल व कंप्यूटर में कैद हो गई।
परिवेश बड़ा कारण
ऐसा क्यों हुआ? क्या अमर चित्र कथा, इंद्रजाल कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स, चंपक, चंदामामा, तुलसी कॉमिक्स, मनोज कॉमिक्स, राज कॉमिक्स, लोटपोट आदि सीरीज चलाने वालों ने सरेंडर कर दिया? इसके जवाब में साहित्यकार व शिक्षक बबिता सिंह कहती हैं, डिजिटल दुनिया में बच्चों का रुझान मोबाइल या टीवी की ओर गया। ऐसा इसलिए हुआ कि संचार या संवाद को जो भी माध्यम मजबूत होता, मानव उसे ही अपनाने लगता है। जब कॉमिक्स की ओर बच्चों या किशोरों का रुझान था, तब यही मजबूत माध्यम था। पत्र-पत्रिकाओं की पहुंच लोगों के घरों तक थी। अब टीवी व मोबाइल ने उसकी जगह ले ली है। वहीं, परिवेश भी इसका बड़ा है। अब नई शिक्षा नीति में ऑफलाइन के साथ ऑनलाइन क्लास को जोड़ दिया गया है। समझा जा सकता है कि बच्चे मोबाइल के ही संपर्क में रहेंगे। हम चाहकर भी इससे अलग नहीं हो सकते।
तब हर मुहल्ले में था कॉमिक्स बैंक
शहर में मैगजीन की दुकान चलाने वाले दीपक कुमार की मानें तो तब मुहल्ले-मुहल्ले में कॉमिक्स बैंक रहता था। हजारों की संख्या में कॉमिक्स। स्कूली बच्चों की सबसे अधिक भीड़ वहीं रहती थी। सिर्फ शहर में ही पांच दर्जन से अधिक ऐसे बैंक थे। ये मैगजीन दुकानों से अलग हुआ करते थे। मगर, धीरे-धीरे यह समाप्त हो गया। अब तो मैगजीन की दुकान भी बंद होने लगी हैं।
मनोचिकित्सक डॉ. संजय कुमार के अनुसार चीजें नहीं बदली हैं, बस उसका स्वरूप बदल गया है। कॉमिक्स अब कार्टून बन गए। कार्टून इसलिए भी बच्चों में लोकप्रिय हो गया कि इसके लिए अक्षर ज्ञान की जरूरत नहीं। बस देखना व सुनना रहता है। इसलिए यह आसान है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अब पत्र लिखने वाले गिन-चुने लोग हैं। मगर, वहीं काम हम मोबाइल से मैसेज के माध्यम से कर रहे। आगे भी बदलाव इसी तरह होता रहेगा।