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लोगों के साथ धरती की प्यास भी बुझाते थे कुएं

मुजफ्फरपुर। पहले पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए बुजुर्गो ने गली-मोहल्लों में कुएं खुदवाए थे और हम

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Jun 2018 09:00 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jun 2018 09:00 AM (IST)
लोगों के साथ धरती की प्यास भी बुझाते थे कुएं
लोगों के साथ धरती की प्यास भी बुझाते थे कुएं

मुजफ्फरपुर। पहले पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए बुजुर्गो ने गली-मोहल्लों में कुएं खुदवाए थे और हमलोगों ने उसे पाट दिया। ये कुएं लोगों के साथ-साथ धरती की भी प्यास बुझाते थे। वर्तमान में बो¨रग केवल भूजल का दोहन करते हैं, रीचार्ज नहीं। कुएं लोगों के पानी की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ बारिश के दिनों में भू-जल को रीचार्ज भी करते थे। बदले परिवेश में हम उसकी उपयोगिता को भूल गए और एक-एक कर कुओं को पाट दिया। जो बचे हैं वे भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

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पहले थे सैकड़ों कुएं : संपन्न लोगों का घर हो या फिर सार्वजनिक स्थल। पहले हर जगह एक न एक कुआं जरूर होता था। जब सुविधाएं बढ़ीं तो एक-एक कर कुएं समाप्त होते चले गए। कुछ को कूड़ेदान बनाकर लोगों ने भर दिया तो कुछ को पाट दिया। कुओं के भरे जाने से भू-जल रीचार्ज करने का एक जरूरी माध्यम हमने समाप्त कर दिया और इसका खामियाजा भू-जल स्तर में गिरावट के रूप में हमें भुगतना पड़ रहा है।

कुएं के आसपास नहीं गिरता भू-जल स्तर : प्रोजेक्ट ऑक्सीजन के संयोजक रवि कपूर कहते हैं कि जहां भी कुआं होता था, उसके आसपास भू-जल स्तर में सालों भर गिरावट नहीं होती थी। क्योंकि यह वाटर हार्वेस्टिंग का काम करता था। कुआं में जमा होकर बारिश का पानी भू-जल को रीचार्ज कर देता था। लेकिन अब कुओं की जगह बो¨रग ने ले ली है। बो¨रग सिर्फ भू-जल का दोहन करता है। कुआं समाप्त होने का खामियाजा हमें जल संकट के रूप में भुगतना पड़ेगा। भले ही हमारे यहां भू-जल की कमी नहीं हो, लेकिन गर्मी के मौसम में जब जलस्तर नीचे जाता है और बो¨रग से पानी नहीं आता है तो कुओं की जरूरत महसूस होती है। इसलिए बचे कुओं के संरक्षण की जरूरत है।

डॉ. एसके पॉल, विभागाध्यक्ष, अंग्रेजी, बीआरएबीयू शहर में बहुत से ऐसे कुएं हैं जिनकी उड़ाही करा दी जाए तो उसके पानी का उपयोग आमलोग कर सकते हैं। गरमी में जब जलसंकट की स्थिति हो तो लोग कुएं के पानी का उपयोग कर संकट से बच सकते हैं।

किरण शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता शहर में कई ऐसे सार्वजनिक कुएं हैं जिनका कायाकल्प कर उसे उपयोग में लाया जा सकता है। लेकिन न तो निगम प्रशासन इसे जरूरी समझ रहा है और न ही जल संरक्षण को समर्पित संस्थाओं को इसकी सुध है।

कृष्ण मोहन तिवारी, वरिष्ठ नागरिक शहर अपने जल स्रोतों को खोते जा रहा है। भू-जल रीचार्ज करने के उपाय कम होते जा रहे हैं। समय रहते पूर्वजों के वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, कुआं एवं तालाब को समाप्त होने से नहीं बचाया तो हमें जल संकट से जूझना होगा।

अनिल कुमार सिन्हा, सामाजिक कार्यकर्ता


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