Muzaffarpur : उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की धरती पर महकेगी मुजफ्फरपुर की शाही लीची
Muzaffarpur news राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर की पहल रुड़की सहारनपुर मुजफ्फरनगर बिजनौर व बुलंदशहर भेजे गए पौधे वहां के किसानों को इसकी खेती के लिए प्रशिक्षण भी दिया गया है। कोरोना काल से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के एक दर्जन किसान मुजफ्फरपुर आए थे।
मुजफ्फरपुर [ अमरेंद्र तिवारी ] । मुजफ्फरपुर की शाही लीची अब उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक पहुंच गई है। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर की पहल पर वहां के एक दर्जन से अधिक किसानों को लीची के 14 हजार पौधे भेजे गए हैं। वहां के किसानों को इसकी खेती के लिए प्रशिक्षण भी दिया गया है। कोरोना काल से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के एक दर्जन किसान मुजफ्फरपुर आए थे। उनकी मांग पर उत्तराखंड के रुड़की के किसानों को दो हजार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, देवबंद व बुलंदशहर के किसानों को 12 हजार पौधे जून, जुलाई और अगस्त में भेजे गए थे।
सहारनपुर जिले के समगौर गुमटी निवासी लीची के बड़े उत्पादक चौधरी कृष्ण लाल बजाज ने बताया कि उन्होंने ट्रक से पौधे मंगाए थे। समय-समय पर मुजफ्फरपुर के विज्ञानियों से टिप्स लेते रहते हैं। यहीं के करतार सिंह का कहना है कि यहां की मिट्टी भी मुजफ्फरपुर जैसी है।
देवबंद के किसान चौधरी सुखपाल सिंह का कहना है कि केवल सहारनपुर मंडल में डेढ़ से दो हजार छोटे-बड़े किसान आम के साथ लीची की खेती करते हैं। जलोढ़ मिट्टी उत्पादन के लिए उपयुक्त : राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशालनाथ ने बताया कि जलोढ़ मिट्टी लीची के लिए बेहतर है। यही वजह है कि नदियों के आसपास के क्षेत्रों में ही इसकी बागवानी ज्यादा होती है। बिहार में गंगा, गंडक और उत्तर प्रदेश में गंगा व यमुना के किनारे का क्षेत्र लीची की पैदावार के लिए अनुकूल है।
भेजे गए पौधे और उनकी खासियत शाही : यह मई के अंत में तैयार होता है। पल्प, मिठास और खुशबू के लिए प्रचलित है।
चायना : जून के शुरू में यह प्रजाति तैयार हो जाती है। मिठास व रस के लिए यह खास है।
गंडकी संपदा : चायना के बाद यह प्रभेद होता है। पकने पर इसका ऊपरी रंग सिंदूर जैसा हो जाता है। इसका पल्प मलाईदार-सफेद, नरम और रसीला होता है।
गंडकी योगिता : यह प्रजाति जुलाई के मध्य में पकती है। इस वेरायटी में सुगंध, चीनी व एसिड की मात्रा प्रचुर होती है।
गंडकी लालिमा : यह प्रभेद जून के मध्य में तैयार हो जाता है। इसका पल्प नरम और रसीला होता है।
चायनीज मूल का है फल : लीची चायनीज मूल का फल है। इसी कारण ही इसे चायनीज फल कहा जाने लगा। बाद के वर्षों में यहां की जलवायु और मिट्टी पर शोध कर अन्य प्रजातियां विकसित की गईं, जिन्हें शाही सहित अन्य नाम दिए गए।