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दास्तान-ए-आजादी: क्रांतिकारियों ने मिलकर मौलनिया में डाला था डाका West Champaran News

जरा याद करो कुर्बानी जंग ए आजादी में गति देने के लिए धन की थी जरूरत। पढि़ए उन देशवीरों की कहानी जिन्‍होंने आजादी के लिए अपनी जान लुटा दी।

By Murari KumarEdited By: Published: Sun, 26 Jan 2020 01:49 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jan 2020 01:49 PM (IST)
दास्तान-ए-आजादी: क्रांतिकारियों ने मिलकर मौलनिया में डाला था डाका West Champaran News
दास्तान-ए-आजादी: क्रांतिकारियों ने मिलकर मौलनिया में डाला था डाका West Champaran News

पश्चिम चंपारण, जेएनएन। जैसे ही जंगे आजादी का प्रसंग शुरू होता है अधिवक्ता नसीब साहेब भावुक हो जाते हैं। अपनी बात रखने से पहले कहते हैं कि मैँ जंगे आजादी के दिवानों को प्रणाम करता हूं, जिन्होंने अपनी जान देकर भारत को आजाद कराया। नसीम बताते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में नरम दल का नेतृत्व  गांधी जी के हाथों में था। क्रांतिकारी अहिंसा से आजादी मिल जाएगी, इस विचारधारा से वे वास्ता नहीं रखते हैं। 1928 में बिहार बंगाल में क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे चन्द्रशेखर आजाद ने भगत सिंह को क्रांति का जायजा लेने चम्पारण भेजा।

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 बेतिया के निकटवर्ती गांव भितहां निवासी केदार मणि शुक्ल को भगत सिंह का मार्गदर्शन का जिम्मा सौंपा गया। श्री शुक्ला ने भगत सिंह को बताया कि जंगे आजादी को आगे बढ़ाने के लिए धन की कमी सबसे बड़ी बाधा है। भगत सिंह ने इसके समाधान के लिए चनपटिया के गुलालजी के यहां बैठक करने का निर्णय लिया। तुनिया निवासी नन्हकु सिंह, भगवा के पंडित कमलनाथ तिवारी, हाजीपुर निवासी योगेन्द्र शुक्ल आदि क्रांतिकारी बैठक में शामिल हुए।

 पता चला कि मौलनिया गांव के दर्शन महतो के घर काफी रुपये हैं और वहां कोई अस्त्र शस्त्र भी नहीं हैं। तब अस्त्र शस्त्र से लैस युवकों की टोली तैयार हो गई। 1925 के काकोरी षडयंत्र से बचकर बेतिया पहुंचे चन्द्रशेखर आजाद ने नगर के जोड़ा इनार स्थित हरिवंश सहाय के मकान में प्रवास के लिए आ गए और क्रांतिकारियों को पिस्टल चलाने की कला में पारंगत कर दिया। मलौनिया की डकैती में एक भी हत्या नहीं हो सके, इस पर जोर दिया जाय।

 सब कुछ तय हो जाने के बाद क्रांतिकारियों ने मौलनिया के दर्शन महतो के आवास पर हमला बोल दिया, लेकिन वहां भी दुर्भाग्य से क्रांतिकारियों एवं ग्रामीणों के बीच भिड़ंत हो गई। इस क्रम में ग्रामीण भी मारे गए। लेकिन इस बार क्रांतिकारी धन प्राप्त करने में सफल हो गए। पुलिस अनुसंधान में जुट गई। जांच करने के क्रम में पता चला कि एक क्रांतिकारी के हाथ की केहुनी खुखरी से कट गई है। यह भी पता चला कि घायल के साथ ही तिजोरी की चाबी नहीं देने पर जमींदार पर खुखरी से वार करना चाहा। एक क्रांतिकारी उसे रोकने का प्रयास किया।

 इसी क्रम में उनकी केहुनी कट गई है। पुलिस जाल बिछाया। पंडित कमलनाथ तिवारी अस्पताल में भर्ती थे। उनके हाथ के केहुनि पर पट्टी बंधी हुई थी। संदेह होने पर पुलिस ने उप पर पहरा बैठा दिया। समय ने पलटा लिया। फणिन्द्र नाथ घोष कोलकाता में पकड़ लिए गए। पुलिस जुर्म से घबड़ाकर घोष ने क्रांतिकारियों के सारे नेटवर्क का खुलासा कर दिया। मुमजात के नेतृत्व में पंजाब पुलिस के साथ सीआईडी की टीम बेतिया पहुंच गई। सभी लोग पकड़ लिए गए।

 मोतिहारी में उनपर मुकदमा चला। केदार मणि शुक्ल को बीस वर्ष एवं अन्य को दस वर्ष की सजा हुई। पंडित कमलनाथ तिवारी को लहौर षडयंत्र केस में सजा हुई। नन्हकू सिंह, कमलनाथ तिवारी, गुलाली जी, केदार मणि शुक्ल को अंडमान पोर्ट प्लैयर जेल भेज दिया गया। वहीं भगत सिंह को सुखदेव एवं राजगुरु के साथ सैंडर्स हत्या कांड में फांसी पर लटका दिया गया।


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