कहने को हैं नेपाल के बाशिंदे, भारत के रहमोकरम से कट रही इनकी जिंदगी
साइकिल से ये मजदूर भारत की सरहद में मजदूरी करने के लिए जा रहे हैं। नेपाल में बीड़ी जलाते हैं और धुंआ भारत में आकर उगलते हैं। नेपाल में बाजार अधिक दूर है। इस लिए भारतीय क्षेत्र के बाजार पर निर्भरता है।
पश्चिम चंपारण, जासं। ये भारत- नेपाल सीमा पर बसा गांव भेड़िहरवा है। करीब 200 घरों की बस्ती। नेपाल का भेड़िहरवा और भारत का भी भेड़िहरवा। दोनों देश के सीमांकन के लिए नाले के पास ये पिलर लगा है। कहने के लिए दोनों देश की सरहद की सीमा रेखा ये ईंट सोलिंग है। लेकिन यहां के वाशिंदों के दिलों का कोई सीमांकन नहीं है। सीमा की सारी पाबंदियां यहां फेल है। सड़क की दायीं और नेपाल का भेड़िहरवा है तो बाईं तरफ भारत का भेड़िहरवा। साइकिल से ये मजदूर भारत की सरहद में मजदूरी करने के लिए जा रहे हैं। नेपाल में बीड़ी जलाते हैं और धुंआ भारत में आकर उगलते हैं। नेपाल में बाजार अधिक दूर है। इस लिए भारतीय क्षेत्र के बाजार पर निर्भरता है। कोई बाहरी व्यक्ति आए तो पहचान नहीं सकता कि भारत और नेपाल की सरहद कहां है? बता दें कि कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन में भले हीं बॉर्डर पर आवाजाही पर पाबंदी लगी थी। लेकिन सरहद पर बसे नेपाल के भेड़िहरवा गांव के 125 घरों में रहने वाले एक हजार लोगों की जिंदगी भारत के भरोसे है। इनके घरों का चूल्हा भारतीय बाजार से खरीदी गई सामग्री से जलता है। प्रतिदिन यहां के सैकड़ों मजदूर भारत के मैनाटांड़, इनरवा आदि इलाके में खेतों में मजदूरी करने के लिए आते हैं। दिन भर मजदूरी करने के बाद शाम को भारतीय बाजार से चावल, दाल, नमक, साग- सब्जी खरीदकर अपने घरों को लौट जाते हैं।
राजनीतिक रूप से भले अलग, भारत से दिल का नाता नेपाल के भेड़िहरवा गांव निवासी सचिदानंद प्रसाद का कहना है कि जब से भारत और नेपाल देश है, जब से ये गांव है और यहां के लोगों की जिंदगी भारत पर निर्भर है। भारतीय से प्रेम भी वर्षों पुराना है। राजनीतिक रूप में भले हीं दोनों देश अलग है, लेकिन यहां के लोगों की जिंदगी एक - दूसरे से जुड़ी है। यहां तक की नेपाल के कृषि उत्पाद को भी भारतीय बाजारों में हीं बेचा जाता है।
सिर्फ खाने और सोने के लिए आते नेपाल नेपाल के भेड़िहरवा के उपेंद्र साह का कहना है कि सिर्फ घर हीं नेपाल में है। सारी व्यवस्था भारत पर निर्भर है। दिन भर भारत में कमाते हैं और खाने - सोने के लिए नेपाल में आते हैं। भारत में काम करने के लिए जाते हैं। वहां के लोगों से काफी प्रेम मिलता है। दस वर्ष से भारत में काम करते हैं।
भारत में लेते हैं सांस आशा कुमारी का कहना है कि नेपाल से कुछ नहीं मिलता। बीरगंज बाजार जाने का कोई साधन नहीं है। सबकुछ भारत पर निर्भर है। सांस भी भारत से लेते हैं। कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन को लेकर थोड़ी दिक्कत थी। लेकिन सीमा पर एसएसबी के जवानों से आग्रह करने पर वे मान जाते थे और यहां के सभी लोग भारत के मैनाटांड़ बाजार से खरीदारी करते थे।
नमक के लिए भी भारत पर निर्भर भेड़िहारी के रामनाथ दास कहते हैं कि नमक के लिए भी भारत पर हीं निर्भरता है। गन्ना ऊपजाते हैं और आपूर्ति के लिए भारत की राह देखते हैं। नरकटियागंज चीनी मिल में गन्ने की आपूर्ति होती है। अगर नरकटियागंज चीनी मिल में गन्ने की आपूर्ति नहीं हो तो गन्ना खेत में हीं खड़ रह जाएगा। नेपाल से एक रुपये का कारोबार नहीं होता। पईन की सफाई अनिवार्य भारत के भेड़िहरवा के नागेंद्र पड़ित का कहना है कि सिंचाई के लिए वर्षो पूर्व बना पईन अतिक्रमण के शिकार है। दोनों देश के नागरिकों ने मिलकर पईन का अतिक्रमण कर लिया है। 20 बिघा के आसपास की भूमि जलजमाव के कारण बर्बाद है। कोई भी फसल नहीं हो रहा। दोनों देश के नागरिकों की आपसी सहमति से पईन की सफाई आवश्यक है।
भारत के भरोसे आजीविका नेपाली नागरिक सोहन पटेल का कहना है कि कहने के लिए तो नेपाल में हैं, लेकिन भारत में हीं जिंदगी है। गन्ना एवं धान की बिक्री करने के लिए भारत के नरकटियागंज जाना पड़ता है। नेपाल में नाते - रिश्तेदार हैं। भारतीय नागरिकों से सहयोग मिलता है। किसी तरह की दिक्कत नहीं है।