Muzaffarpur: नक्सली संगठन से जुड़े अभियुक्त को जमानत देने में पुलिस ने ही की मदद
Muzaffarpur News सहायक अभियोजन पदाधिकारी ने एसएसपी को भेजे पत्र में कहा जांच पूरी होने के बाद भी नहीं दी चार्जशीट। अभियुक्त को डिफॉल्ट बेलÓ मिलने के अगले ही दिन न्यायालय में आरोपपत्र जमा करने को लेकर उठाए गए सवाल।
मुजफ्फरपुर, जागरण संवाददाता। छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ जवानों पर नक्सली हमले से देश गुस्से में है। नक्सलियों पर कार्रवाई को लेकर सरकार रणनीति बना रही है। वहीं जिला पुलिस नक्सलियों को लेकर गंभीर नहीं है। यहां तक कि नक्सली संगठन से जुड़े अभियुक्तों को जमानत देने में मदद ही पहुंचा रही। जिला के सहायक अभियोजन पदाधिकारी ने एसएसपी जयंत कांत को इस संबंध में पत्र लिखा है। इसमें कहा है कि मीनापुर के एक कांड में पुलिस पदाधिकारियों ने जान बूझकर एक अभियुक्त संजीव कुमार को डिफॉल्ट बेल का लाभ दिलाया। नक्सली संगठन से जुड़े अभियुक्त को 17 फरवरी को जमानत दी गई जबकि उसके खिलाफ 15 फरवरी को ही जांच पूरी हो गई। जान बूझकर उसके खिलाफ चार्ज शीट जमानत मिलने के अगले दिन 18 फरवरी को न्यायालय में समर्पित की गई। नक्सलियों से जुड़ा उक्त अभियुक्त संगठन के प्रचार-प्रसार के लिए लेवी मांगने जैसा अपराध करता है।
सहायक अभियोजन पदाधिकारी ने उक्त मामले के अलावा भी कई कांडों में पुलिस पर जान बूझकर अभियुक्तों को मदद पहुंचाने की बात कही है। इसमें महिला थाना में वर्ष 2017 के एक दुष्कर्म कांड के अभियुक्त अभियुक्त गौतम सिंह को भी डिफॉल्ट बेल मिल गया। दुष्कर्म जैसे मामलों की जांच दो माह में पूरी की जानी चाहिए थी। ऐसा नहीं किया गया। चार वर्षों में भी जांच लंबित होने से महिला के विरुद्ध अपराधों में घोर लापरवाही को दर्शाता है।
हत्या के मामले में अहियापुर थाना की रिपोर्ट में विरोधाभास
अहियापुर थाना से जुड़े हत्या समेत कई संगीन अपराध के मामले में पुलिस पदाधिकारी की रिपोर्ट में विरोधाभास का जिक्र सहायक अभियोजन पदाधिकारी ने रिपोर्ट में की है। इसमें कहा गया है कि कांड के आइओ ने मुख्य अभियुक्त शिवचंद्र चौधरी के विरुद्ध वारंट जारी करने के लिए आवेदन दिया था। इसमें मेमो ऑफ इविडेंस में अभियुक्त के घर छोड़कर फरार होने और उसके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य पाए जाने की बात कही थी। उक्त अभियुक्त ने पटना हाईकोर्ट में भी अग्रिम जमानत की याचिका डाली।
न्यायालय में आत्मसमर्पण करने का आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। आत्मसमर्पण के बाद जिला सत्र न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका रद कर दी, मगर 24 फरवरी को उसे डिफॉल्ट बेल का लाभ दिया गया। पुलिस ने उसके खिलाफ चार्जशीट समर्पित नहीं की। यहां यह महत्वपूर्ण है कि हाईकोर्ट में विभिन्न तिथियों में केस डायरी भेजी गई, मगर दूसरी ओर जांच की प्रगति से पुलिस पदाधिकारी अनभिज्ञता जता रहे। यह विरोधाभासी है। सहायक अभियोजन पदाधिकारी ने आधा दर्जन मामले में पुलिस पदाधिकारी की लापरवाही को उजागर किया है।