सीतामढ़ी के लोग पूछ रहे आखिर कब मिलेगी जलजमाव व बजबजाती गंदगी से निजात
वादे और आश्वासनों में गुजर जाता पांच साल नवनिर्वाचित विधायकों से विकास की उम्मीद। पानी की तरह बहा पैसा बावजूद एक बूंद न टपका पानी हर साल यही कहानी। लोगों को हो रही परेशानी। आधारभूत ढांचा का भी विकास नहीं।
सीतामढ़ी, जेएनएन। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद निर्वाचित विधायकों से विकास की उम्मीद जगी है। आम शहरी पांच साल तक नए शहर का सपना बुनता रहा। वादों और आश्वासनों में पांच साल गुजर गए। समस्याओं के घाव गहरे हैं। अतिक्रमण, पेयजल, टूटी सड़कों और जाम की समस्या पुरानी है। गली मोहल्लों में पानी निकासी नहीं होती। गली-मोहल्लों में अंधेरा रहता है। बुनियादी जनसमस्याओं के निदान पर विधायकों का ध्यान कब जाता है यह देखने वाली बात होगी।
अतिक्रमण जैसी समस्याएं बढ़ीं
आम शहरी का कहना है कि पांच वर्ष में शहर सौंदर्यीकरण की बात कौन करे, गंदे पानी की निकासी, सफाई-रोशनी, अतिक्रमण जैसी समस्याएं बढ़ी ही हैं। नए-पुराने वार्डों के में सड़कों, स्ट्रीट लाइट और अतिक्रमण है जिनके समाधान वास्ते कार्ययोजना जरूरी है। जगह-जगह अतिक्रमण। कस्बे में कई जगह स्थाई एवं अस्थाई अतिक्रमण है। खानापूर्ति के लिए कभी कभार अभियान चलाया जाता है।
चुनाव के समय हुए बहुत वादे
बाढ़ और जलजमाव के बीच पेयजल की समस्या अपनी जगह कायम है। आदर्श नगर मुहल्ले के नंदकिशोर सिंह का कहना है कि चुनाव के समय वादे तो बहुत किए गए अब उसको जमीन पर अमल करने की बारी है। सड़क, नाली, पेयजल सहित समस्याएं विकराल बनी हुई है। शहर में नल जल योजना में पानी की तरह पैसा बहाया गया। जलापूर्ति व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत है। अराजपत्रित प्रारंभिक शिक्षक संघ, सीतामढ़ी के प्रमंडलीय सचिव ज्ञान प्रकाश ज्ञानू कहते हैं कि महज दो साल पहले शहर के विभिन्न चौक-चौराहों पर अलग-अलग मद से सैकड़ों चापाकल गाड़े गए थे।
जल संकट बरकरार
अधिकांश चापाकल खराब हो गए। इतना ही सिस्टम की लापरवाही के कारण पाइप रह गए और हेड गायब हो गया। शहर में अब गिने-चुने स्थानों पर ही चापाकल नजर आ रहे हैं। सीतामढ़ी शहर व जिला मुख्यालय डुमरा में में करोड़ों रुपये की लागत से विशालकाय पानी टंकी का निर्माण हुआ। इसके बाद भी जल संकट बरकरार है। पेयजल की समस्या शहर ही नहीं, कमोवेश गांव में भी एक जैसी दिख रही है। पूर्व में गांव-गांव में पंचायत व विधायक मद से लगाए गए चापाकल मरम्मत व उखाड़-गाड़ के अभाव में जमींदोज हो गए। नियम को ताख पर रख कर गाड़े गए चापाकलों में अधिकांश पर लोगों ने निजी संपत्ति बता कब्जा जमा लिया। शहर की अधिकांश सड़कें गंदगी से पटी हुई है। यूं तो हर मौसम में यहां गंदगी का अंबार लगा रहता है। लेकिन, बरसात के मौसम में तो शहर की सूरत और भी बिगड़ जाती है। हल्की सी बारिश में ही यहां की सड़कों पर बहने वाले नाले का गंदा पानी और गाद नगर परिषद की पोल खोलने के लिए काफी है। बारिश के मौसम में यहां की सड़कों व उसके चारों ओर फैली गंदगी से लोग कई तरह की बीमारियों के भी शिकार हो रहे हैं।
गंदगी से निजात दिलाने की लड़ाई रंग न लाई
ऐसा नहीं है कि शहर को गंदगी से निजात दिलाने की लड़ाई शहरवासियों ने नहीं लड़ी है। जब भी शहर की सफाई को लेकर आवाजें बुलंद की जाती हैं तो विभाग दिखावे के तौर पर सफाई का काम शुरू तो करवा देता है, लेकिन जैसे ही मामला ठंडा पड़ता है शहर की स्थिति ढाक के तीन पात की तरह जस की तस बन जाती है। एक तरफ बाढ़ तो दूसरी तरफ स्वच्छ पेयजल का रोना लगा हुआ है। अभी भी एक-एक चापाकल पर सैकड़ों की आबादी निर्भर है। बारिश के मौसम में यहां की सड़कों व उसके चारों ओर फैली गंदगी से लोग कई तरह की बीमारियों के भी शिकार हो रहे हैं।
हर साल बाढ़ की त्रासदी
इकोफ्रेंडली शहर का सपना शहरवासियों के लिए सपना ही बनता जा रहा है। शहरी पेयजल की समस्या भी दूर नहीं हो पाई। संपन्न लोग वाटर प्यूरीफायर से काम चला रहे हैं तो आम लोग वहीं सरकारी पाइप लाइन वाला पानी पीने को विश हैं। कई दशकों से ज्यादा समय से हर साल बाढ़ की त्रासदी झेल रहा है। हर नई सरकार के दावे के बावजूद तमाम व्यवस्थाएं प्रत्येक साल ध्वस्त हो जाती हैं। और लाखों की आबादी इसका दंश झेलने को विवश होती है। सब कुछ लील लेने को पानी की रफ्तार भी उतनी ही तेजी से बढ़ती गई। और विनाश की कहानियों के नए अध्याय जुड़ते चले गए। ऐसा नहीं है कि हर साल की इस विनाशलीला से निपटने के उपाय सोचे व ढूंढे नहीं गए मगर नतीजा ढाक के ती पात ही रहा...!