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मधुबनी का नेउर गांव आजादी के संघर्ष में स्वतंत्रता सेनानियों का था प्रमुख केंद्र

1942 के आंदोलन में नेपाल की तराई से गिरफ्तार सेनानियों को छुड़ाने के लिए हनुमाननगर पुलिस चौकी पर बोला गया था धावा। स्वतंत्रता सेनानियों को मुक्त करा इसी जगह लाया गया यहां से सब भागलपुर हुए थे रवाना।

By Ajit KumarEdited By: Published: Wed, 26 Jan 2022 11:36 AM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 11:36 AM (IST)
मधुबनी का नेउर गांव आजादी के संघर्ष में स्वतंत्रता सेनानियों का था प्रमुख केंद्र
नेउर गांव में स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में बने द्वार का संरक्षण जरूरी। फोटो- जागरण

मधुबनी (लौकही), जासं। लौकही प्रखंड अंतर्गत नेपाल-भारत सीमा पर अवस्थित नेउर गांव में स्वतंत्रता सेनानियों के स्मृति में बनाया गया द्वार आज भी उनके देशप्रेम की भावना और देश के लिए मर-मिटने के संकल्प की याद दिलाता है। बता दें कि लौकही प्रखंड का नेउर गांव स्वतंत्रता संग्राम में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रमुख केंद्र था। डॉ. राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, सूरज नारायण सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी, बाबू श्याम नंदन मिश्र, कार्तिक प्रसाद सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानी यहां पहुंचते थे। 

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इस गांव के अवध किशोर सिंह के सहयोग से यहां स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका गया था। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में इन लोगों ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। इन लोगों पर जब अंग्रेजी हुकूमत ने अंकुश कसा तो ये लोग नेपाल के तराई क्षेत्र के जंगल में भूमिगत हो गए थे। इसकी सूचना ब्रिटिश सरकार को मिलने के बाद उन्होंने नेपाल के सरकार पर दबाव बनाया और जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया सहित अन्य सेनानियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

सूरज बाबू के नेतृत्व में आजाद दस्ता का संगठन किया गया था। जब उन्हें यह जानकारी मिली कि लोहिया, जयप्रकाश नारायण सहित अन्य लोगों को नेपाल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और उसे हनुमान नगर पुलिस चौकी में रखा गया है तो इन लोगों ने उस चौकी पर धावा बोल दिया और सभी स्वतंत्रता सेनानियों को वहां से छुड़ाकर इसी स्थान पर लाया गया। यहां से अगले दिन सभी भागलपुर के लिए रवाना हो गए। डॉ. दीपक कुमार सिंह, अधिवक्ता रणधीर सिंह, जयविंद् सिंह सहित ग्रामीणों ने बताया कि 1979 में वर्तमान नेउर सीमा स्तंभ 228/1 के समीप उन विभूतियों के स्मृति में यह द्वार बनाया गया। इनलोगों का कहना है कि बिहार में लगभग 30 वर्षों से इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों के अनुयायियों की सरकार रही, लेकिन आज तक किसी जनप्रतिनिधि ने इस द्वार के संरक्षण व सुंदरीकरण का कार्य नहीं किया। इन लोगों ने राज्य सरकार से इस द्वार के संरक्षण व सुंदरीकरण का अनुरोध किया है। 


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