बिहार के शिवहर में बागमती की लहरों का कहर, दो माह में तीन बार उजड़ा आशियाना, तटबंध ठिकाना
हर साल बाढ़ की तबाही का दर्द झेल रहे इलाके के लोग तटबंध पर वक्त काट रहे बाढ़ पीड़ित अब तक राहत की दरकार पिपराही प्रखंड के बेलवा नरकटिया सिंगाही और पुरनहिया प्रखंड के दोस्तियां दक्षिणी गांव के लोग तीसरी बार तबाही का सामना कर रहे हैं।
शिवहर, {नीरज} जासं। बागमती की बेचैन लहरों ने शिवहर में इस कदर कहर बरपाया कि दो माह में तीन बार लोगों का आशियाना उजड़ गया। हर बार लोगों को तटबंधों पर आशियाना बनाना पड़ा। गांवों में हालात थोड़े सामान्य होते और जिंदगी शुरू करने की कोशिश होती कि बाढ़ सब कुछ बहा ले जाती है। जिले के पिपराही प्रखंड के बेलवा, नरकटिया, सिंगाही और पुरनहिया प्रखंड के दोस्तियां दक्षिणी गांव के लोग तीसरी बार तबाही का सामना कर रहे हैं। इन गांवों के 200 से अधिक परिवार बागमती नदी के तटबंध पर शरण लिए हैं। इसमें बारिश भी परेशानी बढ़ा रही है। वर्तमान तस्वीर यह है कि नीचे बाढ़ की तबाही तो ऊपर से बारिश भी कहर बरपा रही है।
मचलती हैं बागमती तो मचती हैं तबाही
शिवहर जिले के पिपराही प्रखंड के बेलवा नरकटिया गांव में दशकों से बागमती नदी तबाही का सबब बनी हुई है। बारिश बाद जब बागमती की धाराएं मचलती हैं तो बेलवा-नरकटिया में तबाही मचती है। नदी की मुख्य धारा नरकटियां गांव से बहती है। इसके चलते हर साल यह गांव बाढ़ में बह जाती है। इस बार दो माह के भीतर तीन बार गांव बह चुका है।
नरकटिया के अलावा सिंगाही और दोस्तिया दक्षिणी गांव भी बाढ़ की तबाही का दंश झेल रहा है। कई इलाकों में अब बाढ़ का पानी उतरा है तो कई इलाकों में अब भी पानी बरकरार है। लोग बागमती नदी तटबंध पर वक्त काट रहे है। शंभु सहनी बताते हैं कि, तीन किमी भाग में देवापुर तक को तटबंध नहीं है। नदी में उफनाहट के साथ ही गांव बह जाता है। तटबंध पर रह रहे दौलतिया देवी बताती हैं कि, बरसात में चार महीना सैलाब का सितम झेलना पड़ता है। देवेंद्र मांझी और अरविंद मांझी बताते हैं कि, सबकुछ बह गया। खेत में लगी फसल भी बर्बाद हो गई। इस समस्या के समाधान की दिशा में कोई पहल नहीं हो सकी।
16 साल में एक बार मिला बाढ़ राहत का लाभ
बेलवा, नरकटिया, सिंगाही और दोस्तिया के ग्रामीणों के लिए बाढ़ की तबाही कोई नई बात नहीं है। हर साल इन्हें बर्बादी झेलने की आदत सी बन गई है। हैरत कि, बात यह कि बर्बादी के बावजूद ग्रामीणों को राहत नहीं मिल रहा है। इस साल पहली जुलाई को सुरक्षा तटबंध टूटने के बाद उत्पन्न बाढ़ की स्थिति में प्रशासन द्वारा चार दिनों तक राहत कैंप का आयोजन कर भोजन उपलब्ध कराया गया। इसके अलावा कोई सहायता नहीं मिली। दूसरी और तीसरी बार आई बाढ़ के दौरान भोजन भी नहीं मिला। नरकटिया के शंकर सहनी बताते हैं कि, 16 साल में केवल एक बार वर्ष 2017 में बाढ़ राहत के छह हजार रुपये मिले। न पिछले साल मिला और नहीं इस साल अबतक मिल सका है।
तीन दिन तक घर में पानी, तभी राहत का लाभ
बाढ़ राहत का प्रशासनिक मापदंड भी अजीबोगरीब है। सरकार उसी घर को बाढ़ प्रभावित मानती है जहां तीन दिन तक पानी रहता हैं। यहीं वजह हैं कि, इलाके के पीड़ितों को बाढ़ राहत का लाभ नहीं मिल पा रहा है। पिपराही बीडीओ मो. वाशिक हुसैन बताते हैं कि, सरकार का राहत का जो मापदंड है। उसके आधार पर ही बाढ़ राहत का लाभ मिलेगा।