यहां बनी थी गांव की पहली 'लोकसभा' , ऐसे होता था काम
भारत के कई हिस्सों में नक्सलवाद बड़ी समस्या है। अक्सर खून-खराबे की बात सामने आती है।
मुजफ्फरपुर । भारत के कई हिस्सों में नक्सलवाद बड़ी समस्या है। अक्सर खून-खराबे की बात सामने आती है। लेकिन, 48 साल पहले संपूर्ण क्रांति के प्रणेता जयप्रकाश नारायण ने बिना हथियार नक्सल प्रभावित मुशहरी में ग्रामसभा के माध्यम से विकास की रोशनी फैलाई। नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ा। उनके चलते यहां शांति आई।
जेपी ने 1970 में मुजफ्फरपुर में समाज निर्माण की दिशा में एक प्रयोग किया था। तब मुशहरी नक्सली ¨हसा से ग्रस्त था। यहां सर्वोदयी कार्यकर्ता बद्री नारायण सिंह व गोपालजी मिश्र को नक्सलियों ने जान से मारने की धमकी दी थी। तब जेपी ने कहा, नक्सली ¨हसा तब तक नहीं खत्म हो सकती, जब तक जड़ से इसका रोग दूर नहीं किया जाता। इसके लिए उन्होंने परिकल्पना की कि गांव को एक बड़ा परिवार बनाया जाए। उन्होंने तय किया कि ग्राम दान के बाद गांव में ग्रामसभा का गठन हो और यही ग्रामसभा गांव की 'लोकसभा' होगी।
कार्यकर्ताओं की बनाई टीम :
जेपी ने नक्सल प्रभावित मुशहरी प्रखंड के सलहा गांव में शिविर लगाया। पांच जून 1970 की बैठक में तय हुआ कि प्रत्येक गांव में ग्रामसभा की स्थापना की जाएगी। इसके माध्यम से नक्सल प्रभावित गांवों का विकास किया जाएगा। दो-दो कार्यकर्ताओं की टीम बनी। प्रत्येक टीम को एक-एक गांव की जिम्मेवारी सौंपी गई। तीन माह तक ग्रामीण जेपी की टीम से बातचीत करने से डरते रहे लेकिन, उनकी मेहनत रंग लाई। सलहा गांव में पहली ग्रामसभा का गठन हुआ। इसके बाद माधवपुर, विंदा, द्वारिका नगर, छपरा मेघ व डुमरी समेत दो दर्जन गांव इससे जुड़ गए। इसके माध्यम से दबे-कुचलों को मुख्यधारा से जोड़ा गया। सरकार भी मदद के लिए आगे आई। धीरे-धीरे नक्सल प्रभावित क्षेत्र में शांति आई।
या तो उद्देश्य पूरा होगा या फिर हड्डी यहीं गलेगी : जेपी के सानिध्य में रहने वाले वयोवृद्ध सर्वोदयी कार्यकर्ता रामेश्वर ठाकुर बताते हैं कि सलहा में जेपी ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापित करने के विषय पर बैठक बुलाई थी। जेपी के सामने जो टेबल लगा था, उस पर एक पर्चे में लिखा था, 'आप लौट जाएं नहीं तो हत्या हो जाएगी'। पर्चा पढ़कर जेपी ने कहा, वे जिस उद्देश्य से आए हैं या तो पूरा होगा या फिर उनकी हड्डी यहीं गलेगी।
गांव की 'लोकसभा' में ऐसे होता था काम
-ग्राम दान के तहत प्रति बीघा एक कट्ठा जमीन दान में ली जाती थी।
-गांव में हस्ताक्षर अभियान चलाया जाता था। जब 75 प्रतिशत लोग व 51 प्रतिशत जमीन अभियान से जुड़ता था तब ग्रामसभा की स्थापना होती थी।
-ग्राम कोष की स्थापना की गई थी।
-किसानों को 40 सेर अनाज में से एक सेर, नौकरी करने वालों को एक दिन का वेतन, व्यापारियों को एक दिन का मुनाफा व मजदूरों को एक दिन का पारिश्रमिक इस कोष में दान करना पड़ता था।
-पुलिस मुठभेड़ में मरने वाले नक्सलियों के बच्चों को गया आश्रम भेजा जाता था ताकि पालन-पोषण हो सके।