मुजफ्फरपुर में ए लेल जे हाथ वहीं साथ, बाकी अन्नदाता करते रहे बाप रे बाप
शहर के आसपास बाढ़ प्रभावित इलाके के किसानों की फसल चली गई और घर डूब गया। उसकी राहत सूची बन रही है। नाम जोड़वाने के लिए सूखल में रहे वाला नेता लोग जुगाड़ लगा रहे हैं। पीड़ितों की परेशानी आजकल बढ़ गई है।
मुजफ्फरपुर,[अमरेंद्र तिवारी]। अन्नदाता को बीज की होम डिलीवरी हुई या नहीं इसकी चिंता नहीं, बाकी इसके नाम पर भोज-भात व सम्मानित होने का सिलसिला जारी है। कटरा के एक किसान की मुलाकात कुढऩी वाले किसान नेता से हुई। कटरा वाले किसान मुशहरी इलाके में चल रहे कृषि की निगरानी करने वाले हाकिम के दफ्तर के बाहर मुंह पोंछते हुए निकल रहे थे। कुढऩी वाले किसान ने पूछ दिया भाई साहेब की बात हई। चेहरा पर हरीहरी देख रहल छी। कटरा वाले नेता बोले अरे भाई अन्नदाता के घर पर होम डिलीवरी में जिला का सम्मान बढ़ा ए लेल दो दिन से भोज-भात चल रहा है। कुढऩी के किसान बोले भाई साहेब पांच रुपये किलो टैक्स देकर कौन बीज लेता रे भाई। हमको लग रहा कि सब खेला हो गया। बड़का हाकिम के चल-चलंती के बेरा हई। ए लेल जे हाथ वहीं साथ, बाकी अन्नदाता करते रहे बाप रे बाप।
डूबी जनता,जुगाड़ भिड़ा रहे भाई साहेब
शहर के आसपास बाढ़ प्रभावित इलाके के किसानों की फसल चली गई और घर डूब गया। उसकी राहत सूची बन रही है। नाम जोड़वाने के लिए सूखल में रहे वाला नेता लोग जुगाड़ लगा रहे हैं। मिठनपुरा इलाके के एक नेता की मुलाकात पड़ाव पोखर के तीर वाले प्रोफेसर साहेब से हुई। समाहरणालय के लिटटी चौक पर दुआ-सलाम चल रहा था। इस बीच माड़ीपुर के एक लालटेन वाले नेता पहुंच गए। लालटेन वाले ने मिठनपुरा वाले नेता से पूछ दिया इ हाथ में कौन सूची है। नेता बोले कि बालूघाट वाला बाढ़ राहत सूची में नाम जोड़वाने के जुगाड़ में हैं। प्राफेसर साहेब बोले पिछला बार आंधी में फसल किसी का नुकसान बाकी फोटो लगा के कई नेता बीमा लाभ ले लिए। अपने काहे पीछा रहब बाढ़ में डूबे कोई बाकी पूरा फायदा अपने उठा लू, जनता जाए भाड़ मेें। सूखले में मछली पकड़े में अपने त माहिर हती। मिठनपुरा वाले नेता जी फजीहत देख धीरे से निकल लिए।
बिना मौसम बरसात करा रहे उर्वरक वाले साहेब
बिना मौसम बरसात करा रहे उर्वरक वाले साहेब। थर्मल नगरी के एक अन्नदाता को फोन आया आपने यूरिया लिया कितना दाम देना पड़ा। किसान तबाह। कचहरी चौक पर थर्मल नगरी के उस किसान की मुलाकात जुब्बा सहनी के इलाके के अन्नदाता से हुई। जुब्बा सहनी इलाके वाले बोले अरे भाई साहेब बढ़ा परेशान हती, कि बात। थर्मल नगरी वाले बोले अरे भाई साहेब सारा खेत बाढ़ में डूब गया। अब उवर्रक वाले हाकिम का फोन आ रहा कि यूरिया लेली कि न। अब अपने बताउ खेत डूब गेल, अब हम छप्पर पर खाद डालू। इ हाकिम सब को सूझता नहीं। रबी के समय निगरानी करता तो उस समय लूट की छूट। अब बाढ़ त निगरानी। अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता। जांच के नाम पर बनता रहे टीए-डीए...।
कटहल के लासा से चिपक गए हाकिम
अन्नदाता की ङ्क्षचता करने वाले विभाग में हाकिम से लेकर सहयेागी तक को इधर उधर कर दिया गया, लेकिन वनस्पति वाले हाकिम यहां से जाने को तैयार नहीं। बाजार से अपना पुराना हिसाब-किताब करने में जुट गए हैं। सकरा के तीर पसंद करने वाले छोटे ठाकुर साहेब ने अचानक किसान पर निगरानी करने वाले कार्यालय में दस्तक दी। खरीफ फसल की जानकारी लेने आए थे। उनकी नजर बड़का व वनस्पति वाले हाकिम पर पड़ी। उन्होंने वहां पहले से मौजूद मुरौल के किसान से पूछ दिया, अरे भाई पिछले दिनों तक बड़का से लेकर छोटा हाकिम सब बदल गेल बाकि सब इहें दिखाई दे रहे। मुरौल के किसान बोले अरे ठाकुर साहेब इ कामधेनु वाला कुर्सी हई कटहल के लासा से सटल हई। बिना सरसों यानी करू तेल डलले इ न छोड़े वाला हई। ए चलू बाहर चाय-पान हो जाए। कुछ नया पुराना हिसाब सब हाकिम कर रहल हई।