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खतरे में पश्चिम चंपारण के बेतिया राज में गंडक से जोड़ी गई चंद्रावत नदी का अस्तित्व

जलमार्ग से व्यापार को वर्ष 1659 में राजा गज सिंह ने कराया था यह काम। मिर्जापुर से पत्थर और कोलकाता के जरिए इंग्लैंड से आता था लोहा। बेतिया राजा के उस काम की तारीफ पिछले दिनों पटना आए केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी की थी।

By Ajit KumarEdited By: Published: Thu, 15 Apr 2021 07:49 AM (IST)Updated: Thu, 15 Apr 2021 07:49 AM (IST)
खतरे में पश्चिम चंपारण के बेतिया राज में गंडक से जोड़ी गई चंद्रावत नदी का अस्तित्व
अतिक्रमण और गंदगी के चलते यह नदी दम तोड़ रही है। फोटो: जागरण

पश्चिम चंपारण, [सुनील आनंद]। जल संरक्षण के लिए राज्य से लेकर केंद्र सरकार अभियान चला रही है। नदी जोड़ो योजना पर भी काम हो रहा, लेकिन इस तरह की दूरदर्शिता का परिचय 17वीं शताब्दी में बेतिया के राजा गज सिंह ने दिया था। उन्होंने व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए गंडक से चंद्रावत नदी को जोडऩे का काम किया था। बेतिया राजा के उस काम की तारीफ पिछले दिनों पटना आए केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी की थी। आज उस चंद्रावत का अस्तित्व खतरे में है। अतिक्रमण और गंदगी के चलते यह नदी दम तोड़ रही है। 

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गंडक के रास्ते जलमार्ग विकसित करने के लिए वर्ष 1659 में बेतिया के राजा गज सिंह ने चंद्रावत को गंडक से जोडऩे का काम किया था। बेतिया के भवानीपुर गांव के सरेह से निकलने वाली कोहड़ा नदी संतघाट तक बहती थी। बीच में परसा और पतरखा के पास इसमें चमैनिया नदी मिलती हैं। कोहड़ा को संतघाट से भरवलिया गांव के पास गंडक में मिलाने के लिए तकरीबन 20 किलोमीटर खोदाई का काम राजा ने कराया। 15 से 20 फीट चौड़ी खोदाई कराई गई।

ढाई सौ वर्ष तक इस जलमार्ग का होता रहा उपयोग

'चंपारण की नदियांÓ नामक पुस्तक के लेखक व सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक बेतिया निवासी डॉ. देवीलाल यादव कहते हैं कि इसका नाम बेतिया की महारानी चंद्रावत के नाम से चंद्रावत रखा गया था। बेतिया राजशाही भवन के कुछ दूर पत्थरीघाट का निर्माण किया गया था। यह जलमार्ग का बड़ा केंद्र बन गया था। गंडक के जरिए विभिन्न जगहों से लाई गई सामग्री यहां उतारी जाती थी। ढाका से मलमल के कपड़े और उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से पत्थर लाया जाता था। इंग्लैंड से कोलकाता बंदरगाह के रास्ते जहाज से गंगा, फिर गंडक के रास्ते लोहा लाया जाता था। करीब ढाई सौ वर्षों तक इस जलमार्ग का उपयोग होता रहा। मिर्जापुर से आए पत्थरों का इस्तेमाल बेतिया राज की ओर से बनवाए गए मंदिरों में आज भी देखा जा सकता है।

विधानसभा में उठ चुका है मामला

आज इसमें कचरा डाला जाता है। अतिक्रमण कर नदी किनारे घर बना लिए गए हैं। संतघाट से पत्थरीघाट तक यह नाला बनी हुई है। स्थानीय विधायक नारायण प्रसाद चंद्रावत को बचाने के लिए विधानसभा में सवाल भी उठा चुके हैं। जेपी सेनानी पंकज का कहना है कि एक दर्जन पंचायतों के लिए सिंचाई का साधन इस नदी को बचाया नहीं गया तो, इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। उप विकास आयुक्त रवींद्र नाथ प्रसाद सिंह का कहना है कि चंद्रावत के जीर्णोद्धार की योजना बनी है। जहां अतिक्रमण नहीं था, वहां पिछले वर्ष मनरेगा से सफाई हुई। शेष जगहों से अतिक्रमण हटाकर सफाई होगी।  


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