कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज को माता जानकी की जन्मस्थली दिखाने की चाह रह गई अधूरी
दरभंगा के ओडिसी नृत्य कलाकार जयप्रकाश पाठक ने साझा कीं पंडित बिरजू महाराज से मुलाकात की यादें। माता जानकी की जन्मस्थली और मिथिला नगरी देखना चाहते थे कथक सम्राट।कमर दर्द के कारण 2018 में नहीं आ सके थे पटना से दरभंगा।
मुजफ्फरपुर, अजय पांडेय। सहज और सरल प्रवृत्ति की अद्भुत शख्सियत... कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज। चपल गतियों में समाईं मुद्राएं मन को झकझोर रही हैं। उनके जाने से मन भारी है, एक कसक पैदा हो रही कि मिथिला भ्रमण की उनकी इच्छा पूरी नहीं कर पाया। दरभंगा निवासी ओडिसी नृत्य कलाकार जयप्रकाश पाठक अपने उन जुड़ावों को याद करते हैं, जिनकी शुरुआत 2008 में दिल्ली से शुरू हुई थी। कहते हैं, 2018 में पटना में आखिरी बार मुलाकात और ढेरों बात जीवनभर की पूंजी बन गई। अब तो इसे सहेज लेना है।
दरभंगा महाराज के यहां पारिवारिक समारोह में आए थे बिरजू महाराज
जयप्रकाश बताते हैं कि 12 अक्टूबर, 2018 को पटना के मौर्या होटल में गुरुजी से आखिरी बार मिले थे। वे पटना में निनाद नृत्य अकादमी की ओर से आयोजित कथक नृत्य कार्यशाला में एक सप्ताह के लिए आए थे। संस्था की ओर से मैं भी आमंत्रित था। उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने शाम में अपने कमरे में बुलावा भेजा। गुरुजी का मुझसे मिलना सहजता दर्शा रही थी। पाग, संस्था सृष्टि की स्मारिका और दोपटा (अंगवस्त्रम्) भेंट की तो उन्होंने कहा, पाठक तुमने मुझे मिथिला के मोहपाश में बांध लिया... बताओ वहां का भ्रमण कब करा रहे हो? 1968 में दरभंगा महाराज के यहां एक पारिवारिक समारोह में गया तो था, पर मिथिला नगरी नहीं देख पाया। अब माता जानकी की जन्मस्थली और मिथिला नगरी देखने की प्रबल इच्छा हो रही। मैंने तत्काल कहा, गुरुजी अभी समय और मौसम, दोनों अनुकूल हैं। तीन घंटे में पहुंच जाएंगे। इस पर वे तपाक से बोले-अरे जेपी, मेरा स्वास्थ्य प्रतिकूल है। कमर दर्द से परेशान हूं। गाड़ी या ट्रेन से लंबा सफर नहीं कर पाता। तुम्हारे यहां हवाई जहाज नहीं उड़ता? उस वक्त मायूसी हुई थी। दरभंगा एयरपोर्ट चालू होता तो गुरुजी को निश्चित दरभंगा और मिथिला की विरासत दिखा पाता। वर्ष 2020 में एयरपोर्ट शुरू होने के बाद संतोष हुआ, लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से उनके आने का कार्यक्रम नहीं बन पाया।
इसे बहुत आगे तक ले जाना...
गुरुजी कहते थे, अपने यहां नृत्य की जड़ें प्राचीन परंपराओं में हैं। तुम अपनी कला के माध्यम से एक परंपरा को आगे ले जा रहे हो। तुम इसके ध्वजवाहक हो। तुम्हारे कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी है। उनकी बातें आज भी ऊर्जा का संचार करती हैं। मेरे मन में अब ये ग्लानि जीवनभर रहेगी कि उनकी एक इच्छा मैं पूरी नहीं कर पाया। वहां से चलते समय सिर पकड़कर उनका दिया हुआ आशीर्वाद ईश्वरीय वरदान से कम नहीं।