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दरभंगा के केवटी से राजद के दिग्गज की हार ने वर्तमान राजनीति के लिए दिया यह संदेश

दरभंगा जिले की दस में से नौ सीटों पर एनडीए की जीत हो गई। लेकिन उनमें सबसे खास रही केवटी विधानसभा सीट पर एनडीए की जीत और महागठबंधन की हार। भाजपा के डॉ. मुरारी मोहन झा 5126 वोटों से जीत गए और जेपी आंदोलन की उपज अब्दुलबारी सिद्दीकी हार गए।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 06:09 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 06:09 AM (IST)
दरभंगा के केवटी से राजद के दिग्गज की हार ने वर्तमान राजनीति के लिए दिया यह संदेश
मिथिलांचल में यदुवंशियों की राजनीति राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की राजनीति से जुदा है। फाइल फोटो

दरभंगा, जेएनएन। इस बार (2020) का विधानसभा चुनाव कई मायनों में मिथिलांचल के लिए अहम रहा। दरभंगा जिले की दस में से नौ सीटों पर एनडीए की जीत हो गई। लेकिन, उनमें सबसे खास रही केवटी विधानसभा सीट पर एनडीए की जीत और महागठबंधन की हार। यहां से भाजपा के डॉ. मुरारी मोहन झा 5126 वोटों से जीत गए और जेपी आंदोलन की उपज अब्दुलबारी सिद्दीकी हार गए। सिद्दीकी की हार ने एक बात साबित कर दिया कि मिथिलांचल में यदुवंशियों की राजनीति राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की राजनीति से जुदा है। दरअसल, केवटी सीट पर कभी विधायक रहे हुकुमदेव नारायण यादव की पूरे मिथिलांचल के यदुवंशियों पर मजबूत पकड़ रही। उपर से यह विधानसभा मधुबनी लोकसभा के अधीन है। यहां के एमपी आज भी हुकुमदेव के पुत्र डॉ. अशोक कुमार यादव हैं। ऐसे में इस बार मिथिलांचल के यादवों ने विकास की राह को मजबूत किया और खुद को पुरानी राजनीति से अलग रखा। बताते हैं कि इस बार के चुनाव में महागठबंधन ने केवटी में जातीय समीकरणों को केंद्र में रखकर सिद्दीकी को चुनावी मैदान में उतारा और समीकरणों को जनता ने नकार दिया।

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ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र नारायण बताते हैं कि राजनीति में बहुत कुछ साफ होता है। कई बार समीकरण व्यक्तित्व के आगे उलट जाते हैं। कुछ ऐसा ही है मिथिलांचल में एमवाई समीकरण का हाल है। इस इलाके के यदुवंशी हुकुमदेव नारायण यादव को अपना आदर्श मानते हैं। हुकुमदेव की मजबूत पकड़ मिथिलांचल में है। वजह यह कि वो जमीन से जुडे नेता हैं। पद्मश्री से सम्मानित श्री यादव ने लोगों को विकास के मायने बता दिए हैं। बताया है कि विकास और जातीय राजनीति में क्या अंतर है। सो, इस बार केवटी से महागठबंधन की हार ने यह बता दिया कि हर बार एमवाई समीकरणों की दुहाई देना ठीक नहीं, विकास भी कोई चीज है। इस तरह से डॉ. मुरारी मोहन झा यहां से चुनाव जीते। समीकरणों के बूते चुनावी समर में कूदे लगातार विभिन्न विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर लेनेवाले राजद के बड़े नेता और जेपी आंदोलन के सक्रिय नेता को जनता नकार दिया।

केवटी में अबतक के विधायक

1967- हुकुमदेव नारायण यादव (संसोपा)

1969- हुकुमदेव नारायण यादव (संसोपा)

1972- हुकुमदेव नारायण यादव (संसोपा)

1977- दुर्गा दास राठौर (जनता पार्टी)

1980- श्यायले नबी (कांग्रेस)

1985- कलीम अहमद (कांग्रेस)

1990- गुलाम सरवर (जनता दल)

1995- गुलाम सरवर (जनता दल)

2000- गुलाम सरवर (राजद)

2005- अशोक कुमार यादव (भाजपा फरवरी व नवंबर के चुनाव में)

2010- अशोक कुमार यादव (भाजपा)

2015- डॉ. फराज फातमी (राजद)

2020 - मुरारी मोहन झा (भाजपा) 


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