आचार्य कृपलानी की मंत्रणा से बनी थी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चंपारण आंदोलन की रूपरेखा
आंदोलन की राह में छोड़ दी थी एलएस कॉलेज में प्राध्यापक की नौकरी। कृपलानी ने 1915 में कोलकाता के शांति निकेतन में मुलाकात के दौरान गांधीजी से दक्षिण अफ्रीका जैसा आंदोलन खड़ा करने का आग्रह किया था। मुजफ्फरपुर में बापू का साथ देना कृपलानी के लिए भारी पड़ा।
मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। चंपारण आंदोलन बापू के स्वतंत्रता संघर्ष की पहली पाठशाला थी। आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी (जेबी कृपलानी) इसके 'अध्यापक' साबित हुए। गांधीजी के बिहार आगमन से लेकर चंपारण जाने तक की रणनीति तैयार करने में उनकी अहम भूमिका रही। इसमें कृपलानी गांधीजी के हमकदम रहे। यहां तक कि उन्हेंं ग्रियर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज (अब एलएस कॉलेज) के प्राध्यापक की नौकरी तक छोड़ दी।
कृपलानी ने 1915 में कोलकाता के शांति निकेतन में मुलाकात के दौरान गांधीजी से दक्षिण अफ्रीका जैसा आंदोलन खड़ा करने का आग्रह किया था। इसके दो साल बाद ही चंपारण में आंदोलन शुरू करने की जमीन मिल गई। किसान पंडित राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर चंपारण के किसानों की समस्या जानने गांधीजी के 10 अप्रैल, 1917 को बिहार आते ही पहली निराशा पटना में हुई थी। राजेंद्र प्रसाद के पुरी में होने से कोई मदद नहीं मिली। पूर्व परिचित मजहरूल हक की मदद से मुजफ्फरपुर की ट्रेन पकड़ी। यहां आने का संदेश गांधीजी ने सिर्फ कृपलानी को भेजा था।
गांधी को अर्थशास्त्र के प्राध्यापक प्रो. मलकानी के आवास पर ठहराया गया। कृपलानी अपनी पुस्तक गांधी : हिज लाइफ एंड थॉट में लिखते हैं कि 11 अप्रैल की सुबह कॉलेज के प्रिंसिपल से मिलकर गांधीजी के बारे में बताया। ब्रिटिश प्रिंसिपल का यह सवाल कि 'नोटोरियस मैन ऑफ दक्षिण अफ्रीका इज योर गेस्ट' समझने के लिए काफी था कि बापू का यहां रहना उन्हेंं पसंद नहीं। उधर, गांधीजी चंपारण के किसान और उनके प्रति अंग्रेजों के व्यवहार की जानकारी हासिल करने को बेचैन थे। रास्ता कृपलानी ने निकाला। शहर के कुछ अधिवक्ताओं से उनका परिचय कराते हुए उनमें से एक गया बाबू के रमना स्थित आवास में ठहरने की व्यवस्था कराई। यहीं चंपारण आंदोलन की रूपरेखा तय हुई। पहले बिहार प्लांटर्स एसोसिएशन के सेकेट्री जेएम विल्सन और बाद में तिरहुत के कमिश्नर एलएफ मोर्शेड से मुलाकात में भी कृपलानी गांधीजी के साथ रहे।
चंपारण आंदोलन के बाद भी बापू के रहे करीब
मुजफ्फरपुर में बापू का साथ देना कृपलानी के लिए भारी पड़ा। गांधीजी का साथ देने के आरोप में उनकी नौकरी की अवधि कम कर दी गई। इस पर उन्होंने 1917 में त्यागपत्र दे दिया। यहां पांच साल नौकरी की। हॉस्टल के व्यवस्थापक भी रहे। एलएस कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक रहे डॉ. भोज नंदन प्रसाद सिंह कहते हैं कि कृपलानी और गांधीजी की विचारधारा में अंतर था। कृपलानी क्रांतिकारी और स्वतंत्र व्यक्तित्व के थे। इसके बावजूद उन्होंने गांधीजी के आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई।