Tantra Ke Gan:असहयोग आंदोलन की उपज नेशनल स्कूल से तय होती थी स्वतंत्रता आंदोलन की रूप-रेखा
दरभंगा राज की तत्कालीन महारानी कामेश्वरी प्रिया ने स्वतंत्रता सेनानियों को भेंट की थी रॉयल राइस कार आजादी की दीवानों ने कार बेचकर बनाया था नेशनल स्कूल का दिव्य भवन। वर्तमान व्यवस्था की उपेक्षा का शिकार होकर झाड़ियों में गुम हो रहा ऐतिहासिक भवन।
दरभंगा, [मुकेश कुमार श्रीवास्तव ]। इस भवन के पास आने के साथ स्वतंत्रता आंदोलन की कहानी स्वत: स्फूर्त साफ हो जाती है। साफ हो जाता है इसका स्वर्णिम अतीत। यह भवन स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास का एक अध्याय है। झाड़ियों में गुम होते इस विशाल भवन को पहचान मिली नेशनल स्कूल भवन के रूप में। शहर के लालबाग स्थित यह इमारत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे आजादी के दीवानों के ठहराव स्थल के रूप में स्थापित है।
इतिहास के जानकार बताते हैं महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के दौरान 1920 में दरभंगा आए। यहां से सरकारी संस्थाओं के बहिष्कार की अपील की। शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैकल्पिक व्यवस्था के लिए साधन संपन्न लोगों का आगे आने का आह्वान किया। नेपाली कैंट में महात्मा गांधी की सभा हुई। न्यू बलभद्रपुर स्थित गांधी ग्रामोद्योग भवन के पास अधिवक्ता धरीन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में बैठक हुई। मौके पर देश के प्रथम राष्ट्रपति स्व. डॉ. राजेंद्र प्रसाद के समधी ब्रजकिशोर प्रसाद ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने का प्रस्ताव कमलेश्वरी चरण सिन्हा को दिया। महात्मा गांधी ने सर्वसम्मति से उन्हें यह जवाबदेही दी। कमलेश्वरी चरण सिन्हा, शिवनंदन नाथ अग्रवाल, छेदू साह आदि ने अपनी अपनी भूमि दान में दी। कमलेश्वरी चरण सिन्हा के नेतृत्व में समाज को शिक्षित करने व राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाने के उद्देश्य से 1920 में नेशनल स्कूल की स्थापना हुई थी। वक्त के साथ विद्यालय का संचालन 1924 में बंद हो गया। फिर यह स्थान स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र बन गया। उस समय के महान सेनानियों की आवाजाही जारी रही। उस समय देश में पांच नेशनल स्कूल खोले गए थे।
जननायक कर्पूरी ठाकुर ने यहां की थी पढ़ाई
जानकारों के मुताबिक जननायक कर्पूरी ठाकुर समेत बिहारी राजनीति के मानक कई लोगों ने यहां से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उनमें पूर्व एमएलसी नीलांबर चौधरी, राधानंदन झा, भूपनारायण झा, गोपालजी झा शास्त्री, कुलानंद वैदिक, यदुनंदन शर्मा आदि लोगों ने यहां रहकर शिक्षा ग्रहण की थी।
27 साल तक यह स्कूल स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र रहा
पं. रामनंदन मिश्र की पत्नी ने यहां से पर्दा प्रथा से अपने को मुक्त कर नारी चेतना का शंखनाद किया। 27 वर्षों तक यह स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बिंदु बना रहा।
महारानी द्वारा दिए गए दान से बना था स्कूल
स्वतंत्रता सेनानियों की भाग-दौड़ से द्रवित होकर दरभंगा की तत्कालीन महारानी कामेश्वरी प्रिया रॉयल राइस कार दान में दे दी। स्वतंत्रता सेनानियों के अनुरोध पर भी महारानी दान में दी गई कार लेने को राजी नहीं हुई। कमलेश्वरी चरण सिन्हा ने उनकी सहमति से इस कार को बेचकर उससे मिले धन का उपयोग नेशनल स्कूल के निर्माण पर लगाया। लेकिन, वर्तमान व्यवस्था की उपेक्षा के कारण यह भवन खंडहर में तब्दील होकर झाड़ियों में गुम हो रहा है।