कठिन डगर, फिर भी न थकते और थमते पांव
रास्ते दुर्गम थे, मगर हौसले बुलंद।
मुजफ्फरपुर। रास्ते दुर्गम थे, मगर हौसले बुलंद। पांव थकते थे, लेकिन थमते नहीं। रोम-रोम में भक्ति का भाव था। कारवां आगे बढ़ता तो जोश दोगुना हो जाता। बाबा के नारे लगते तो दूर-दूर तक पहाड़ों में आवाज गूंजती। आखिरकार हम गुफा के करीब आ ही गए। दर्शन भी हो गए..यह बात अमरनाथ यात्रा से लौटे पंडित प्रभात मिश्रा ने मंगलवार को जागरण से विशेष बातचीत में कही।
कोल्हुआ चकमुरमुर के रहने वाले पंडित प्रभात मिश्रा ने कहा कि वे पहली बार अमरनाथ यात्रा पर गए थे, लेकिन अगले साल भी जाएंगे। कठिन डगर के बाद भी वहां से लौटने की इच्छा नहीं हो रही थी। कश्मीर में आए दिन आतंकी घटनाएं होती रहती हैं, लेकिन इसका प्रभाव यात्रा करनेवालों पर कहीं नहीं दिखा। सभी बेखौफ थे। हां, लौटने तक परिवार के सदस्य जरूर चिंतित रहे। डॉ. जनक लली सिन्हा भी यात्रा में उनके साथ थे। कहते हैं-हमलोग गुफा में लगभग 20 मिनट रुके और मंत्रोच्चारण किए।
जज्बे को सलाम करतीं दुर्गम राहें
प्रभात कहते हैं कि कठिन यात्रा के दौरान एक हादसा भी हुआ। पंचकरनी से पहले पहाड़ टूटकर गिर गया। नदी में पांच लोग बह गए थे। रास्ता बंद था, सो दो दिन यात्रा रुक गई। मगर, फिर भी हौसले में कमी नहीं आई। ऊंची पहाड़ियों, कठिन रास्ते और कई जगहों पर ग्लेशियर पर फिसलन होने से श्रद्धालु संभल-संभल कर आगे बढ़ते हैं। अमरनाथ यात्रा के लिए दो रास्ते हैं-एक पहलगाम से और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। बलटाल का रास्ता दुर्गम, कई जगहों पर ग्लेशियर हैं और काफी फिसलन। पहलगाम, पिस्सू घाटी का रास्ता संकरा और पहाड़ों पर चढ़ाई करनी पड़ती है।
जहां शांति और विश्वास, वहीं पहुंचता इंसान
मनुष्य शांति की तलाश में हर जगह भटकता है। ईश्वर के दर से लेकर संत-महात्मा के दरबार तक, जहां शांति मिले वहीं इंसान पहुंचता है। वास्तव में अमरनाथ धाम की कथा ईश्वर की अद्भुत लीला है। जहां बर्फ जमने की कोई संभावना नहीं होती, वहां बर्फ जमती है। यह अपने आप में ईश्वर का साक्षात्कार स्वरूप है। इसी रूप को बर्फानी बाबा कहते हैं।
हर जगह प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद
इतनी बर्फ, फिर भी वहां जाकर हर कोई आनंदित हो जाता। नई उर्जा का संचार हो जाता शरीर में। जो जिस भावना को लेकर जाता है, वहां वह उस भावना की तत्क्षण पूर्ति हो जाती है। कठिनाई के बावजूद लोगों के हौसले बुलंद रहते।