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बांस की झोपडिय़ाें में कुछ दिन गुजारिए, खेती देखने-सीखने के साथ पर्यटन का भी आनंद

कृषि पर्यटन पर काम कर रहा समस्तीपुर के पूसा स्थित डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय। विश्वविद्यालय में ग्रामीण परिवेश के अनुसार ठहरने की होगी व्यवस्था खेती व शोध के बारे में जान सकेंगे पर्यटक। पर्यटक खुद भी चूल्हे पर खाना बनाकर खा सकेंगे।

By Ajit KumarEdited By: Published: Tue, 17 May 2022 11:07 AM (IST)Updated: Tue, 17 May 2022 11:07 AM (IST)
बांस की झोपडिय़ाें में कुछ दिन गुजारिए, खेती देखने-सीखने के साथ पर्यटन का भी आनंद
विश्वविद्यालय आने वाले समय में एग्री टूरिस्ट सर्किट का विकास करेगा। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी]। बड़े शहरों में रहने और वहां की पृष्ठभूमि से जुड़े लोग खेती के तौर-तरीके नहीं जानते। बहुत सी फसलों के बारे में जानकारी नहीं होती है। इसी को ध्यान में रखते हुए समस्तीपुर के पूसा स्थित डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय कृषि पर्यटन पर काम कर रहा है।इसमें रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए विश्वविद्यालय ने काम शुरू किया है। प्रथम चरण में विश्वविद्यालय में आधा एकड़ जमीन चिह्नित की गई है। यहां रहने के लिए बांस की झोपडिय़ां सहित अन्य पूरा परिवेश ग्रामीण होगा। एक बार में तीन से पांच पर्यटक परिवार ठहर सकेंगे। एक साथ 15 लोगों के भोजन की सुविधा होगी। पर्यटक खुद भी चूल्हे पर खाना बनाकर खा सकेंगे। इसके लिए विश्वविद्यालय के फार्म हाउस से सब्जी सहित अन्य की खरीदारी कर सकेंगे। यहां पर्यटक लीची, हल्दी व मशरूम सहित अन्य की खेती की जानकारी लेने के साथ नक्षत्र वन और विश्वविद्यालय में होनेवाले विभिन्न शोध को भी देख सकेंगे।

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एग्री टूरिस्ट सर्किट का विकास करने की योजना

विश्वविद्यालय आने वाले समय में एग्री टूरिस्ट सर्किट का विकास करेगा। इसमें बौद्ध और रामायण सर्किट से जुड़े जिलों के अलावा प्रमुख कृषि उत्पाद वाले क्षेत्र शामिल किए जाएंगे। इसमें पटना, गया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, किशनगंज, गोपालगंज, सिवान, छपरा और दरभंगा होंगे। पर्यटक वैशाली में केला, दरभंगा में मखाना, किशनगंज में चाय और मुजफ्फरपुर में लीची की खेती देख सकेंगे। इसके लिए इन जिलों के प्रगतिशील किसानों को जोड़ा जाएगा। उन्हें विश्वविद्यालय तीन से पांच सप्ताह का प्रशिक्षण देगा। उन्हें अपने गांव में पर्यटकों के लिए सुविधाएं विकसित के बारे में बताया जाएगा। पर्यटक किसान के यहां ठहरकर कृषि कार्य का अनुभव प्राप्त कर सकेंगे। गांव में रहने का आनंद ले सकेंगे। उन्हें ग्रामीण परिवेश की अनुसार सुविधा दी जाएगी। पहले चरण में 500 किसानों को जोडऩे की योजना है।

प्रोजेक्ट को-आर्डिनेटर डा. मोहित शर्मा के अनुसार इस योजना का उद्देश्य रोजगार के नए पैदा करने के साथ उन लोगों को ग्रामीण और कृषि संस्कृति से जोडऩा है, जो इससे दूर हैं। पर्यटन पैकेज दो से पांच दिन का होगा। शुरुआती चरण में तीन से पांच परिवारों के ठहरने और एक साथ 25 किसानों को ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की जाएगी। बाद में विस्तार किया जाएगा। इस साल के अंत तक यह सुविधा शुरू करने की योजना है। बौद्ध व रामायण सर्किट से जुड़े जिलों को जोडऩे से वहां आने वाले पर्यटक इसका लाभ भी आसानी से ले सकेंगे। डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के कुलपति डा. आरसी श्रीवास्तव ने कहा कि एग्री टूरिज्म के लिए स्थल का चयन किया गया है। इस काम पर दो करोड़ की लागत आएगी। इसके लिए राज्य सरकार को प्रस्ताव दिया गया है। विश्वविद्यालय अपने स्तर से भी व्यवस्था कर रहा। 


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