सीतामढ़ी: बेजुबान पशुओं का इलाज करनेवाला अस्पताल खुद लाचार, 31 में 14 अस्पतालों को अपना भवन नहीं
Sitamarhi News108 डाक्टर-कर्मचारी में से सिर्फ 19 कार्यरत जिले में 31 पशु अस्पतालों में 14 को अपना भवन नहीं चार किराये पर भवनों के निर्माण के लिए सरकार नहीं दे रही फंड कई अस्पताल खंडहर में तब्दील ।
सीतामढ़़ी {कुमार कन्हाई 'गौरव'} जिला पशुपालन विभाग कितनी मजबूती से कार्य कर रहा है जिला पशुपालन कार्यालय को देखकर ही अंदाजा लग जाता है। इस कार्यालय को अपना भवन मयस्सर नहीं है। जिससे वह डुमरा पशु अस्पताल में चल रहा है। यह भवन भी जर्जर हालत में है। 31 पशु अस्पतालों में 14 किराये पर चल रहे हैं। चार खपड़ैल मकान में हैं। परसौनी, सुरंड, मेहसौल अस्पताल की हालत इतनी जर्जर है कि उनको दूर से देखकर ही डर लग जाता है। पशु चिकित्सालयों का हाल किसी से छिपा नहीं है। कुछ किराये पर तो कुछ जर्जर भवन में चल रहे।
विभाग का कहना है कि पीडब्ल्यूडी अस्पताल के लिए भवन बनाता है। लेकिन, विभाग की ओर से फंड नहीं मिलने से वह काम शुरू नहीं करा पा रहा। इसलिए भवन निर्माण का काम नहीं हुआ। डाक्टर के स्वीकृत पद 46 हैं जिनमें 11 कार्यरत हैं। कर्मी 62 चाहिए उनमें से आठ हैं। जिला पशुपालन पदाधिकारी बताते हैं कि सीमित संसाधनों के बावजूद महीने में 800 से 850 पशुओं का उपचार किया जाता है। कृषि प्रधान इस देश की अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा स्तंभ होता है किसान व किसानों की अर्थव्यवस्था टिकी होती है पशुपालन पर. परंतु इन दिनों जिले के पशुपालक जिले में पशु चिकित्सकों के अभाव के कारण अपने मवेशियों का इलाज झोलाछाप चिकित्सकों से करवाने को विवश हैं। जिला पशुपालन कार्यालय चिकित्सकों की कमी के कारण खुद लाचार व बदहाल दिखता है। कर्मियों की मानें तो पशु चिकित्सकों की कमी के कारण समय पर न टीकाकरण हो पाता है न सरकार की किसी योजना का संचालन।
इन जगहों में पशु अस्पतालों को अपना भवन नहीं
ढ़ेंग, कुम्मा, बोखरा, माधोपुर चतुरी, योगबाना बाजार, पचटक्की, गुलाठीपुर, राघोपुर, बखरी, परतापुर, बेलाही नीलकंठ , तिलक ताजपुर, राजोपुर, रीगा। खपड़ैल माकान में चार अस्पताल : रीगा, बेलाही नीलकंठ, राघोपुर, गुलाठीपुर।
इन 14 स्थानों पर अस्पतालों को अपना भवन: बेलसंड, रून्नीसैदपुर, मेजरगंज, सोनवरसा, भूतही, बथनाहा, बाजपट्टी, पुपरी, चोरौत, पकटोला, नरगाह, परिहार, डुुमरा, नानपुर। जर्जर हालात में तीन पशु अस्प्ताल हैं उनमें परसौनी, सुरंड, मेहसौल शामिल हैं।
- हम लोग खुद लाचार हैं। विभाग और अधिकारियों को कई बार पत्राचार किया गया है। फंड का अभाव बताकर कोई सुनवाई नहीं होती। भवन के साथ चिकित्सा पदाधिकारी व कर्मचारी सबका टोंटा है। -डा. राजीव रंजन चौधरी, जिला पशुपालन पदाधिकारी, सीतामढ़ी