सीतामढ़ी जिले एक ऐसा गांव जहां पैक्स के प्रयास से मिला सबकों रोजगार, जानिए खुशहाली की कहानी
Bihar newsपैक्स के सहयोग से सीतामढ़ी का अथरी गांव बना खुशहाल राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की क्षेत्रीय उत्कृष्टता एवं मेरिट पुरस्कार के लिए चयनित इस गांव की जिले में एक अलग पहचान है। यहां सादय ही कोई बेरोजगार होगा।
सीतामढ़ी {देवेंद्र प्रसाद सिंह} । करीब एक हजार की आबादी वाले अथरी गांव को हम आज पिछड़ा नहीं कह सकते। यहां का कोई ऐसा घर नहीं होगा, जो रोजी-रोजगार से न जुड़ा हो। छोटे-मोटे रोजगार व खेती के लिए आसानी से ऋण मिल जाता है। यह सब हुआ है गांव के प्राथमिक कृषि साख सहयोग समिति (पैक्स) के चलते। इसके काम को देखते हुए राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की क्षेत्रीय उत्कृष्टता एवं मेरिट पुरस्कार योजना-2021 के तहत इसे सूबे में प्रथम पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। द्वितीय पुरस्कार सासाराम की मुरादाबाद पैक्स को मिला है।
अथरी पैक्स की स्थापना वर्ष 1981 में हुई थी। इसके प्रयास से 9800 आबादी वाले इस गांव के लोगों का जीवनस्तर सुधरा है। इससे ऋण लेकर कोई रोजगार कर रहा तो कोई खेती। कृषि यंत्र बैंक भी है, जिसका लाभ किसानों को मिल रहा है। इसके प्रयास से 155 परिवार छोटे-मोटे व्यवसाय से जुड़े हैं।
नहीं रहे बेरोजगार
किराना की दुकान चलाने वाले राजेश कुमार गुप्त और मोबाइल फोन रिपेयरिंग तथा फोटो स्टेट की दुकान चलाने वाले कृष्ण मोहन राम कभी बेरोजगार थे। आज इनका खुद का काम है। जूते-चप्पल की दुकान चलाने वाले राहुल गुप्ता व चाय-समोसा बेचने वाले सीताराम साह की जिंदगी भी इसी के चलते बदली। गांव में ऐसे दर्जनों लोग हैं, जिनके जीवन में बदलाव आया है।
जरूरतमंदों की करते मदद
इतना ही नहीं कोरोना की पहली लहर में जब लोगों के सामने परेशानी आई तो पैक्स की ओर से मदद की गई। मास्क व सैनिटाइजर सहित अन्य सामान जरूरतमंदों को दिया गया। साथ ही समय-समय पर जरूरतमंदों को धोती, साड़ी व कंबल भी दिया जाता है।
पैक्स के अध्यक्ष यदुनंदन प्रसाद सिंह कहते हैं कि कठिन परिश्रम से हम इस सफलता तक पहुंचे हैं। 215 सदस्यों से शुरू इस पैक्स में आज 960 सदस्य हैं। पूंजी 41 हजार 547 रुपये से बढ़कर 34 करोड़ पांच लाख चार हजार 772 हजार रुपये हो गई है। पैक्स के जिम्मे किसी भी बैंक अथवा वित्तीय संस्थान का एक भी रुपया बकाया नहीं है। हमारा उद्देश्य ग्रामीणों के जीवनस्तर में बदलाव लाना है। इसमें हम सफल रहे हैं। खेती में किसानों की हर तरह से मदद की जाती है। आधुनिक तरीके से खेती के लिए किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण दिलाया जाता है। प्रयास के चलते 50 प्रतिशत किसान जैविक खेती करने लगे हैं। वे जैविक खाद भी खुद बनाते हैं।